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पूज्य पिताजी के जन्मदिन पर

 

गौरव शुक्ल मन्योरा 





शीर्षक - पूज्य पिताजी के जन्मदिन पर


पूज्य पिताजी जन्मदिवस पर लाखों लाख बधाई ।
एक वर्ष पश्चात आज शुभ घड़ी पुनः यह आई ।

शुभकामना अपार आपका जीवन अजर अमर हो,
 रचना सागर का अभिनंदित हर अक्षर अक्षर हो।
 यश फैले चहुँ ओर, परिस्थिति हो अनुकूल हमेशा, 
दुख के शूल मिटें, राहों में बिखरें फूल हमेशा। 
मुक्त हृदय से, मुक्त कंठ से आशीर्वाद लुटाते, 
कोटि-कोटि विघ्नों बाधाओं में यूँ ही मुस्काते; 
हम सबको जीवन जीने की कला सिखाते रहिए, 
अंधकार से हमें बचाते, दीप दिखाते रहिए।

वृद्धावस्था में हो हर पल प्रतिबिंबित तरुणाई। 
पूज्य पिताजी आज आपको लाखों-लाख बधाई। 

हम निश्चिंत मगन है सिर पर हाथ आपका पाकर, 
क्या अपनाना यह वटवृक्ष सदृश छाया अपनाकर। 
क्या अप्राप्य है हमें? आपका आशीर्वाद सुलभ है, 
इस तेजोमय आभा के समक्ष दिनकर निष्प्रभ है। 
इस अबाध आभा के हम सब निशि वासर अभिलाषी, 
इसकी आदत हमें जन्म से, हम इसके अभ्यासी।
विनत शीश हो पुत्र आपका करता अभिनंदन है, 
कोटि-कोटि शत कोटि आपके चरणों का वंदन है।

रहे आपके आशीषों की छाया हम पर छाई। 
पूज्य पिताजी आज आपको लाखों लाख बधाई। 

अलल सुबह में अनालसित हो रोज जागने वाले, 
उठा 'खरहरा' द्वार 'मुँधेरे' नित बढ़ारने वाले। 
बीमारी थकान में भी दिनचर्या नहीं बदलना, 
कोई सिखे आपसे नियमों में आजीवन ढलना। 
अनथक, अविश्रांत, परहित में तत्पर रहने वाले, 
बेबाकी से सीधी सच्ची बातें कहने वाले। 
घर कोई आ जाय, सामने हृदय खोल धर देना, 
सबकी खोज खबर, सबकी चिंता, अपने सर लेना। 

कहें कहाँ तक, करें कहाँ तक, हम आपकी बड़ाई।
पूज्य पिताजी आज आपको लाखों लाख बधाई।

देश प्रेम के पोषक, संस्कृति के संरक्षक न्यारे, 
मानवीय मूल्यों की गाथा गाने का व्रत धारे। 
चोटिल होती जाती परंपराओं के संवाहक, 
धनी कल्पना के अजस्र, माँ हिंदी के आराधक। 
नहीं विरुद्ध की लिप्सा, नहीं अभीप्सा सम्मानों की, 
नहीं महत्वाकांक्षा मन में भौतिक उत्थानों की। 
परे लोकप्रियता से सस्ती, कलम चलाने वाले, 
ऐकांतिक साधना कठिन में देह गलाने वाले। 

यही किताबें, कविताएँ, जीवन की यही कमाई। 
पूज्य पिताजी आज आपको लाखों लाख बधाई। 

आप बाँसुरी और बिगुल के एक सरीखे गायक, 
'ध्रुव' अवधी, 'कृष्णा' हिंदी में, प्रतिभा के परिचायक। 
 दोनों भाषाओं में एक समान पकड़ रखते हैं, 
लिखते हैं 'अरघान' अगर तो 'चंपा' भी रचते हैं। 
'प्यारे लाल' सदृश क्या कोई विशद गीत लिख पाया, 
रच 'बसंत का ब्याहु' कल्पना का लोहा मनवाया। 
उत्साहों के आप देवता, 'कवि दरबार' रचयिता, 
 गीत चहचहाने पर भावाकुल हो लिखते कविता। 

 शब्द अल्प, कैसे नापूँ यह हिमगिरि सी ऊँचाई, 
पूज्य पिताजी आज आपको लाख-लाख बधाई।

-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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