Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है

 
-'' तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है'' 


तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है। 
(१)
तुमसे बिछुड़े हो गये बहुत दिन हमको,
तू भूली नहीं अभी तक लेकिन हमको।
तेरे दर्शन की इच्छा घटी नहीं है,
मेरे मन में तू अब भी बसी वहीं है।

सचमुच तेरा मेरा अटूट नाता है।
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है।
(२)
सुनता था, सबसे बड़ा, समय मरहम है,
भारी से भारी करता घाव खतम है।
मैंने यह मरहम खूब लगाकर देखा,
काफी दिन यह नुस्खा अजमाकर देखा।

घावों पर कोई असर नहीं आता है।
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है।
(३)
नस नस अजीब उलझन अनुभव करती है, 
आँखों से भी गंगा - यमुना बहती है ।
संसार सकल, दुख - मग्न जान पड़ता है, 
भीतर कुछ अंतर्द्वंद्व विकट चलता है ।

तुमको जब हृदय समीप नहीं पाता है ।
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है ।
(4)
जीने की इच्छा नहीं मगर जीता हूँ, 
अंदर बाहर हर एक तरफ रीता हूँ ।
उल्लास, हास, उत्साह गया जीवन का, 
लुट गई शांति, संतोष छिन गया मन का ।

दुख का दुरंत दावानल धुँधुवाता है ।
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है।
(5)
तुम बिन जीवन निस्सार, निष्प्रयोजन है,
तुम बिन जीवन दिन रात मात्र रोदन है।
तुम बिन जीवन,आत्मा विहीन काया है,
तुम बिन जीवन यह निरुद्देश्य, माया है। 

तुम बिन जीवन से मरण अधिक भाता है।
तुम बिन जीवन यह भार हुआ जाता है।  
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-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी

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