यह तुम्हारा छत पे' आना याद आएगा।
हाथ रह रह कर हिलाना याद आएगा।
राह तकना, मुस्कुराना याद आएगा।
गुनगुनाना, गीत गाना याद आएगा।
जब कभी भी राह से इस गुजरना होगा,
तब बहुत हमको तुम्हारी याद आएगी।
तुम नहीं मौजूद होगी इस जगह पर जब,
यह तुम्हारी आदतें हमको रुलाएँगी।
डूब जाऊँगा तुम्हारे ही खयालों में,
आँसुओं से आंँख मेरी डबडबाएगी।
हाथ रख दीवाल पर, कुछ खोजती जैसी,
छवि तुम्हारी कल्पना में घूम जाएगी।
क्या करूँगा तब यही चिंता मुझे भारी,
किस तरह अपना मचलता दिल सँभालूँगा।
देखने को जब तुम्हें यह मन करेगा तब,
क्या कहूँगा कौन सा उत्तर उसे दूँगा।
छटपटाऊँगा मगर कुछ भी ना पाऊँगा,
बस विवशता ही हमारे हाथ आएगी।
तुम न दिखलाई पड़ोगी दूर तक यद्यपि,
खोजती तुमको हमारी दृष्टि जाएगी।
कल्पना करके उसी दारुण अवस्था की,
यह हृदय मेरा अभी सेे धैर्य खोता है।
टीस उठती है यही सब सोच कर मन में,
बस यही सब सोच कर ही कष्ट होता है।
एक से बढ़ एक यह शैतानियाँ तेरी,
और यह नादानियाँ क्या भूल पाऊँगा।
किस तरह तुम ही बताओ हाथ से अपने,
झोंक अपनी आँख में मैं धूल पाऊँगा।
** ** **
स्नेह अच्छी बात है पर एक सीमा तक,
अधिक उससे दुःख ही मिलता सदा इसमें।
तुम किसी को खूब चाहो, पर नहीं इतना
भूलने की भी न गुंजाइश बचे जिसमें।
प्रेम उतना ठीक जिसको भूल सकने में,
हो न कोई कष्ट का आभास भी हमको।
लाभ क्या उस स्नेह से होगा भला कहिए,
बाद में जो दे व्यथा संत्रास ही हमको।
क्या बढ़ाना मोह ऐसे व्यक्ति से सोचो,
शीघ्र ही हो दूर जाना ही नियति जिसकी।
कौन सी उपलब्धि है उस वस्तु को पाना,
सिर्फ खोने के न हो अतिरिक्त गति जिसकी।
कुछ दिवस पहले कहाँ तुम थे कहाँ थे हम,
कुछ दिवस के बाद फिर हम तुम कहाँ होंगे।
आ रहा नजदीक दिन है फिर बिछड़ने का,
तुम रहोगी जिस जगह हम ना वहाँ होंगे।
कुछ दिनों का साथ है मेरा तुम्हारा यह
इसलिए आत्मीयता ज्यादा नहीं अच्छी।
राह जल्दी ही अलग हो जायगी अपनी,
इसलिए यह निकटता ज्यादा नहीं अच्छी।
देखकर मुझको तुम्हें यदि हो खुशी होती,
कष्ट होता हो मुझे यदि पास ना पाकर।
चाह हो मुझसे बहुत कुछ बात कहने की,
पर जुबाँ तक बात जाए लौट आ आकर।
भावनाएँ यदि हृदय की कसमसाती हों,
साध करके ही उन्हें रखना उचित होगा।
कामनाएँ यदि मचल विद्रोह करती हों,
बाँध करके ही उन्हें रखना उचित होगा।
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
14 अप्रैल सन 199
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY