Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वह सपना जो हमने मिलकर

 

गौरव शुक्ल मन्योरा 

Tue, Feb 9, 6:13 PM (21 hours ago)




to me 



वह सपना जो हमने मिलकर देखा था, 


वह सपना जो हमने मिलकर देखा था, 
वह सपना, मिट्टी के घर सा बिखर गया। 
                     (1)
तुम भी साथ चले थे मेरा हाथ पकड़,
 मैं भी साथ चला था तेरा हाथ पकड़। 
 मंजिल तक जाने की ख्वाहिश पाले थे,
 आगे - पीछे, चारों तरफ, उजाले थे। 

 बीच राह में कुछ ऐसा तूफान उठा, 
 वक्त वहीं जैसे का तैसा ठहर गया। 
वह सपना जो हमने मिलकर देखा था, 
वह सपना, मिट्टी के घर सा बिखर गया। 
                   (2)
 आफताब ढल गया, दीप बुझ गए सभी।
 चाँद नजर आया उस दिन से नहीं अभी। 
हँसी खुशी गायब हो गई कहाँ जाने, 
आँखों से आँसू निकले कुछ समझाने। 

पर उनकी सारी कोशिश बेकार हुई, 
 सारे का सारा इलाज बेअसर गया। 
वह सपना जो हमने मिलकर देखा था, 
 वह सपना मिट्टी के घर सा बिखर गया। 
                       (3)
 सोच रहा हूँ, शायद यह तूफान थमे, 
 तू पहले के जैसी आकर मिले हमें। 
 जुदा हुए हम कभी नहीं, यह जाहिर हो, 
 मैं तेरी खातिर, तू मेरी खातिर हो। 

गुजरा वक्त जिंदगी में फिर से लौटे, 
 एकबारगी सोच यही मन सिहर गया। 
वह सपना जो हमने मिलकर देखा था, 
वह सपना मिट्टी के घर सा बिखर गया। 
                  - - - - - - - - 
गौरव शुक्ल 
मन्योरा 
लखीमपुर खीरी 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ