Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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व्याध वध पर वध किये जाता निरंतर

 
व्याध वध पर वध किये जाता निरंतर, 

व्याध वध पर वध किये जाता निरंतर,
देश के वाल्मीकियों अब मौन तोड़ो। 
                  (1)
शीलता की पार सीमा हो चुकी है, 
साधुता को नित चिढ़ाया जा रहा है। 
सत्य की ली जा रही प्रतिदिन परीक्षा, 
अनृत को सिर पर बिठाया जा रहा है। 

है नहीं यशगान गाने की परिस्थिति, 
रौद्रता का रूप धरने का समय है। 
उपवनों को लीलते जाते मरुस्थल, 
मेघ बनकर के बरसने का समय है। 

राहु ने रवि को बनाया ग्रास अपना, 
हे पुरंदर! शीघ्र अपना वज्र छोड़ो। 
                  (2)  
भिक्षुओं का वेश धारा रावणों ने, 
स्वर्ण का मृग देख कर मत मुग्ध होना। 
द्यूतक्रीड़ा के निमंत्रण तो मिलेंगे, 
किंतु कौंतेयों नहीं स्वविवेक खोना। 

पद्मिनी जौहर दिखाये पूर्व इससे, 
खिलजियों के वंश का विध्वंस कर दो। 
है बड़ा दायित्व कंधों पर तुम्हारे, 
लेखनी की नोक पर अंगार धर दो। 

जीभ काटो कर्ण की, दुर्योधनों की, 
पातकी दुःशासनों के शीश फोड़ो। 
                    (3)
सीख लो इतिहास से, चोटिल नहीं हो, 
अस्मिता अब जानकी की, द्रोपदी की। 
अब न दूल्हाजू तथा जयचंद आकर, 
नष्ट गरिमा कर सकें नूतन सदी की। 

फिर महाराणा शिवा के शौर्य से लें, 
प्रेरणाएँ, पीढ़ियाँ भावी, हमारी। 
और झलकारी व पन्ना धाय जैसी, 
देवियों की आरती जाए उतारी। 

दे सके संसार को फिर शिष्टि भारत, 
कीर्ति में इसकी नए अध्याय जोड़ो। 
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गौरव शुक्ल 
मन्योरा 
लखीमपुर खीरी 


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