Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज स्वामी विवेकानन्द जी की पुण्य तिथि पर

 

प्रकाशनार्थ : दुनिया को असली भारत की पहचान कराई  - स्वामी विवेकानन्द जी ने



सबसे पहले आज माता कालीजी के अनन्य उपासक, सन्त श्री रामकृष्ण परमहंसजी के प्रिय शिष्य, स्वामी विवेकानन्द जी को उनकी पुण्य तिथि पर शत-शत नमन। जैसा सभी प्रबुद्ध पाठक जानते हैं, स्वामीजी ने साधु बनकर दुनिया को असली भारत, यहां की संस्कृति और सभ्यता की पहचान करायी थी । कॉन्वेंट में पढ़े स्वामी जी अपनी जिज्ञासा के चलते ईश्‍वर को समझने व सनातन धर्म को जाना क्योंकि उनके पिताजी एक प्रख्यात अधिवक्ता थे और उनका झुकाव पाश्चात्य सभ्यता की ओर था। गुरु के प्रियतम स्वामीजी बहुत ही सरल स्वभाव एवं उच्च विचार वाले सनातनी थे।
अब आप सभी प्रबुद्ध पाठकों को याद दिलाना चाहूँगा कि जब शिकागो की विश्व धर्म परिषद् में उनको बड़ी मुश्किल से जो अल्प समय मिला, उसमें उन्होंने जिस तरह अपने विचार रखे उसे सुन सभी विद्वान चकित हो गए। उसके बाद उन्हें अमेरिका में सभी जगह बहुत आदर-सत्कार ही नहीं मिला बल्कि भक्तों का एक बड़ा समुदाय इनके अनुयायी बन गए यानि अनेक अमेरिकन विद्वानों ने इनका शिष्यत्व ग्रहण किया।
वैसे तो स्वामीजी से सम्बन्धित अनेकों यादगार प्रसंग हैं और सारे के सारे न केवल काफी प्रेरणादायक हैं बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं । उसमें से ही एक प्रसंग आप सभी के ध्याननार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । जो इस प्रकार है -
एक बार विदेश में स्वामीजी के भगवा वस्त्र और पगड़ी देख लोगों ने पूछ लिया - "आपका बाकी सामान कहाँ है ?"
तब बड़े ही धैर्य पूर्वक उत्तर देते हुये स्वामीजी ने उनको बता दिया कि.. ‘बस यही सामान है' ।
इसको सुन लोगों का आश्चर्यचकित तो होना वाजिब था ।क्योंकि उन्होंने तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है और कोट – पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?
इसलिये लोगों ने फिर स्वामीजी को कहा.. यह कैसी संस्कृति है आपकी ?
यह सुन स्वामीजी मुस्कुराये बिना नहीं रह सके। फिर स्वयं को संयमित कर बड़ी ही विनम्रता से उन सभी को बताया कि  "हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है।" इस तरह से उन सभी को "संस्कृति वस्त्रों में नहीं, बल्कि चरित्र के विकास में  है" वाला संदेश देने  में कामयाब हो गए ।
उपरोक्त के अलावा भी अनेकों कारण है जिसके चलते आज भी हम सभी स्वामीजी को बहुत याद करते हैं क्योंकि उन्होंने  ने अल्पायु में ही हमें धर्म को देखने का ,यह कह कर "उत्तिष्ठत: जाग्रत: प्राण्य वरान् निवोधत:"  यानि इस धर्म पर किसी वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं है, एक वैज्ञानिक नज़रिया दिया ,जो आज के समय में भी बहुत ही प्रासंगिक साबित हो रहा है ।
गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा  बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी,बीकानेर
9829129011 / 7976870397 


       





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