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Dr. Srimati Tara Singh
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भारतीय संस्कृति मर्मज्ञ स्वामी विवेकानंदजी

 

भारतीय संस्कृति मर्मज्ञ स्वामी विवेकानंदजी



                

जैसा आप सभी प्रबुद्ध पाठक जानते हैं कि स्वामी विवेकानन्द जी माता कालीजी के अनन्य उपासक, सन्त श्री रामकृष्ण परमहंसजी के प्रियतम शिष्य थे। कॉन्वेंट में पढ़े स्वामी जी अपनी जिज्ञासा के चलते ईश्‍वर को समझने व सनातन धर्म को जाना क्योंकि उनके पिताजी एक प्रख्यात अधिवक्ता थे और उनका झुकाव पाश्चात्य सभ्यता की ओर था। स्वामीजी बहुत ही सरल स्वभाव एवं उच्च विचार वाले सनातनी थे ।आप सभी को यह भी याद दिलाना चाहूँगा कि अल्पायु में ही स्वामीजी साधु बनकर दुनिया को असली भारत, यहां की संस्कृति और सभ्यता की पहचान जिस तरह से करा गये उनसे उनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में स्वतः ही अंकित हो गया है।
वैसे तो स्वामीजी से सम्बन्धित अनेकों यादगार प्रसंग हैं और सारे के सारे न केवल काफी प्रेरणादायक हैं बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं । उसमें से ही एक प्रसंग आप सभी के ध्याननार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । जो इस प्रकार है - 
         एक बार स्वामी विवेकानंद अपने प्रवचन में ईश्वर के नाम की महत्ता बता रहे थे। तभी वहां बैठा एक व्यक्ति प्रवचन के बीच में ही उठ कर बोलने लगा - शब्दों में क्या रक्खा है।उन्हें रटने से क्या लाभ ?                 
विवेकानंदजी  कुछ देर चुप रहे, फिर उन्होंने उस व्यक्ति को सम्बोधित  करते हुए कहा-  तुम मुर्ख और जाहिल ही नहीं, नीच भी हो। 
इतना सुन वह व्यक्ति तुरन्त आग-बबुला हो गया। उसने स्वामी जी को कहा, आप इतने बड़े ज्ञानी हैं, क्या आपके मुँह से ऐसे शब्दों का उच्चारण शोभा देता है। आपके वचनों से मुझे बहुत दुःख पँहुचा है। मैंने ऐसा क्या कह दिया जो आपने मुझे इस प्रकार बुरा-भला कहा। स्वामी विवेकानंदजी ने हँसते हुए उत्तर दिया, भाई, वे तो मात्र शब्द थे। सुनने वालों की समझ में आ गया कि क्यों स्वामी जी ने उस व्यक्ति को अपशब्द कहे थे। स्वामी जी ने प्रवचन को आगे बढ़ाते हुए बताया कि जब अपशब्द क्रोध का कारण बन सकता है तो अच्छे शब्द ईश्वर का आशीर्वाद भी दिला सकते हैं। शब्दों की महिमा के द्वारा हम ईश्वर की निकटता का अनुभव कर सकते हैं।
उपरोक्त के अलावा भी अनेकों कारण है जिसके चलते आज भी हम सभी स्वामीजी को बहुत याद करते हैं क्योंकि उन्होंने ने अल्पायु में ही हमें धर्म को देखने का ,यह कह कर "उत्तिष्ठत: जाग्रत: प्राण्य वरान् निवोधत:"  यानि इस धर्म पर किसी वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं है, एक वैज्ञानिक नज़रिया दिया ,जो आज के समय में भी बहुत ही प्रासंगिक साबित हो रहा है ।
गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा  बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी,बीकानेर
9829129011 / 7976870397 

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