हिंदी को राजभाषा और देवनागरी को राजलिपि के पद पर प्रतिष्ठित करवाने वाले स्वतंत्रा सेनानी राजर्षि टंडन की जन्म- जयंती पर शत-शत नमन !
इतिहास में ऐसे नाम होते हैं, जो होते तो वाकई बहुत बड़े हैं, पर जाने बहुत कम जाते हैं ।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के ऐसे ही अमिट हस्ताक्षर हैं, जिन्हें दो बातों के लिए जाना जाता है--
पहला - स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान ।
दूसरा - हिंदी के लिए उनका संघर्ष ।
यह उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि तमाम विरोध के बावजूद हिंदी को राजभाषा और देवनागरी को राजलिपि के रूप में स्वीकार किया गया ।
बनारसीदास चतुर्वेदी लिखते हैं, "हिन्दी का कोई भावी लेखक जब सदी के इतिहास पर प्रकाश डालेगा तो उन्हें तीन लोगों का उल्लेख खास तौर पर करना पड़ेगा :
1) महर्षि दयानंद
2) महात्मा गांधी
और
3)राजर्षि टण्डन ।"
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