: मारुति नन्दन हनुमानजी और महाबली बाली के बीच दंगल का एक शिक्षाप्रद रोचक प्रसंग
आज अजेय, अजर-अमर भगवान श्री हनुमानजी के जन्मोत्सव पर रामायण में वर्णित मारुति नन्दन श्री हनुमानजी और अप्सरा तारा के पति और वानरश्रेष्ठ ऋक्ष के पुत्र एवं शत्रु की आधी शक्ति को खींचने वाले महाबली बाली के मध्य हुये युद्ध का एक शिक्षाप्रद रोचक प्रसंग संंक्षेेेप में प्रस्तुत है जो हमें अनेकों सबक देता है। अब यहां पढ़ें पूरा घटनाक्रम -
बाली और सुग्रीव को सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की संतानें माना गया है। बाली को यह वरदान था कि जो भी युद्ध के लिए उसके सामने आएगा, उसकी आधी ताकत बाली में समा जाएगी। इस वरदान के दम पर बाली ने बड़े -बड़े योद्धाओं को धूल चटाई। यहाँँ तक कि महाबलशाली असुर राज लंकापति रावण को भी अपनी पूंछ में बांधकर छह महीने तक धरती का चक्कर लगाता रहा था।अंत में रावण ने हार मानकर बाली को अपना मित्र बना लिया था। तदुपरान्त बाली का घमंड आसमान छुने लगा था।
बहरहाल, अपनी ताकत के नशे में चूर बाली यहाँँ-वहाँँ लोगों को चुनौती देता रहता था। एक दिन ऐसे ही वह वन में चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि कौन है जो मुझे हरा सकता है, किसी ने माँँ का दूध पिया है जो मुझसे मुकाबला करे।
भगवान श्रीहनुमानजी उसी वन में तपस्या कर रहे थे और अपने आराध्य प्रभु श्री रामजी के नाम का जाप कर रहे थे। बाली के चिल्लाने से उनकी तपस्या में खलल पड़ा। उन्होंने बाली से कहा, वानर राज आप अति-बलशाली हैं, आपको कोई नहीं हरा सकता, लेकिन आप इस तरह चिल्ला क्यों रहे हैं ?इस पर बाली भड़क गया। उसने भगवान हनुमानजी, यहाँँ तक कि प्रभु श्री रामजी तक को चुनौती दे दी। बाली ने कहा, हनुमान ! तुम तो क्या, तुम्हारे राम भी मुझे नहीं हरा सकते। है दम तो बुलाओ अपने राम को।
प्रभु श्री रामजी का मजाक / उपहास होता देख मारुति नन्दन हनुमानजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने बाली की चुनौती स्वीकार कर ली। तय हुआ कि अगले दिन सूर्योदय होते ही दोनों के बीच दंगल होगा।
अगले दिन भगवान हनुमानजी तैयार होकर दंगल के लिए निकले ही थे कि सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी प्रकट हुए। उन्होंने मारुति नन्दन हनुमानजी को समझाने की कोशिश की कि वे बाली की चुनौती स्वीकार न करें । तब मारुति नन्दन हनुमानजी ने कहा, प्रभु ! बाली जब मुझे ललकार रहा था, तब तक तो ठीक था, लेकिन उसने मेरे इष्ट प्रभु श्री रामजी को भी चुनौती दी है। इसलिए मैं उसे सबक सिखाऊंगा।
सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने फिर समझाने की कोशिश की तो भगवान हनुमानजी बोले - प्रभु ! अगर अब मैं पीछे हट गया तो दुनिया क्या कहेगी ? इस पर सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने कहा, ठीक है, आप दंगल के लिए जाओ, लेकिन अपनी शक्ति का 10वां हिस्सा ही लेकर जाओ, शेष अपने आराध्य के चरण में समर्पित कर दो। दंगल से लौटकर यह शक्ति फिर हासिल कर लेना।
भगवान हनुमानजी मान गए और अपनी कुल शक्ति का 10वां हिस्सा लेकर चल पड़े बाली का सामना करने। दंगल के मैदान में कदम रखते ही वरदान के मुताबिक, भगवान हनुमानजी की शक्ति का आधा हिस्सा बाली के शरीर में चला गया।
बाली में जैसे ही भगवान हनुमान जी की आधी शक्ति समाई उसके शरीर में जबरदस्त हलचल शूरू हो गई यानि बाली के शरीर में बदलाव आने लगे । उसे लगा जैसे ताकत का कोई समंदर शरीर में हिलोरे ले रहा हो। चंद पलों में बाली को लगा मानों उसके शरीर की नसें फट जाएंगी और रक्त बाहर निकलने लगेगा।बाली को इस समय कुछ समझ नहींं आ रहा था उसी समय वहाँ सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी प्रकट हो बाली को समझाते हुए कहा कि यदि तुम स्वंय को जिंदा रखना चाहते हो तो अभी इसी समय यहाँ से कोसों दूर चले जाओ। सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी की सलाह मान, बिना समय गवायें वह सरपट दौड़ पड़ा, ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया । कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने पुनः सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी को देख कर बोला - ये सब क्या है, हनुमानजी से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना, फिर आपका वहाँँ अचानक आना और ये कहना कि वहाँँ से जितना दूर हो सके चले जाओ, मुझे कुछ समझ में नहीं आया ।
सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी बोले- पुत्र, जब तुम्हारे सामने मारुति नन्दन हनुमानजी आये, तो उनका आधा बल तुममें समा गया, तब तुम्हेंं कैसा लगा ।
बाली - मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही हैं ,ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार में मेरे तेज़ का सामना कोई नहीं कर सकता, पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी अभी तुरन्त फट पड़ेगा ।
तब सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी ने कहा - हे बाली, मैंने मारुति नन्दन हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा, पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके, सोचो, यदि मारुति नन्दन हनुमानजी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते ।
सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी बोले - मारुति नन्दन हनुमानजी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नहीं सह सकती ।
यह जानने के बाद बाली को आभास हो गया कि भगवान हनुमानजी , जिनके पास अथाह बल, शक्तियाँ होते हुए भी वे शांत एवं प्रेम भाव से प्रभु श्री रामजी की भक्ति में लीन रहते हैं । वहीँ एक और अपने घमण्ड में चूर मैं, जो उनके समक्ष एक तिनके के समान हूँ ,
परम शक्तिशाली प्रभु श्रीरामजी के अनन्य भक्त मारुति नन्दन हनुमानजी को ही ललकार बैठा । इसके बाद तुरन्त उसने उसी समय वहीं भगवान हनुमानजी को दंडवत प्रणाम किया और प्रार्थना कर क्षमा याचना की !
उसके पश्चात् आत्मग्लानि से भरा हुआ महाबली बाली ने प्रभु श्रीरामजी का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्हीं से प्राप्त किया ।
उपरोक्त वर्णित प्रसंग से यह स्पष्ट सन्देश है कि कोई भी व्यक्ति कितना भी ताकतवर हो जाए, कितना भी धनी हो जाए, उसे घमंड नहीं करना चाहिए साथ ही साथ अपने से दुर्बल को कभी भी, किसी भी हालत में सताना नहीं चाहिये।
अन्त में आज अजेय, अजर-अमर भगवान श्री हनुमानजी के जन्मोत्सव वाले अवसर पर आप सभी प्रबुद्ध पाठकों को मैं अपने अंतर्हृदय से विपुल मंगलकामनायें देता हूँ ।
गोवर्धन दास बिन्नाणी 'राजा बाबू'
जय नारायण ब्यास कालोनी
बीकानेर
7976870397 / 9829129011
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