जब क्रिकेट खेल में खिलाड़ियों पर पैसों की बरसात होते देखा और यह भी देखा कैसे क्रिकेट खिलाड़ियों के कारण देश को प्रसिद्धि मिली , जिसके चलते देशवासी भी इन खिलाड़ियों को सम्मान देने लगे, तब लोगों की सोच में बदलाव होना शुरू हुआ और हमें यह समझाया गया कि अब तुम बड़े हो गये हो इसलिये हमेशा एक तरह का ही खेल खेलने के बजाय अन्य खेलों जैसे चिड़िया-बल्ले का खेल [बैडमिंटन ], टोकरीनुमा जाल में गेंद डालने वाला खेल [बास्केटबॉल ], डंडे और गेंद का खेल [हॉकी] , वगैरह पर भी ध्यान दो । तब हमनें चिड़िया से बल्ले वाला खेल यानि बैडमिंटन खेलने की व्यवस्था तो मकान के प्रांगण में कर रात को खेलना प्रारम्भ कर दिया जबकि डंडे और गेंद का खेल [ हॉकी ] मैदान में खेलने लगे।
अब जब हम विद्यालय में दाखिला ले लिया तब बास्केटबॉल वहाँ सहपाठियों के साथ खेलना शुरू किया क्योंकि बास्केटबॉल खेलने की सुविधा विद्यालय में सहज उपलब्ध थी । लेकिन मेरे शरीर की सरंचना इस प्रकार की रही है कि मुझे हॉकी एवं बास्केटबॉल दोनों खेल के लिये हमेशा दल में अतिरिक्त खिलाड़ी के रूप में ही शामिल होना पड़ता था जो मुझे हमेशा खटकता था। जबकि फूटबाल में ऐसी बात नहीं थी। लेकिन उसमें अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जो मैं कर नहीं पाता था , इसलिये वह मेरा शौकिया खेल ही रहा है। हाँ इस बीच मैनें चौंसठ खानों की बिसात वाला खेल [शतरंज] सीख लिया । लेकिन यहाँ भी उतनी रुचि वाला कोई साथी मिलता तभी खेल पाता क्योंकि इस खेल में समय व खटाव दोनों आवश्यक है । इस कारण कभी कभी ही खेलना हो पा रहा था ।
बाद में जब मैंने महाविद्यालय में दाखिला लिया तब वहाँ महाविद्यालय भवन के सामने एक बड़ा सा तालाब था । जहाँ तैराकी सिखायी जाती थी । और वहाँ नये नये बने सहपाठी तैराकी सीखने लगे । उन सबसे बात ही बात में तैराकी के बारे में बहुत कुछ जानने मिला । तब घर से आज्ञा ले वहाँ तैराकी सीखने के लिये बात कर ली लेकिन उसके लिये मुझे सबेरे कक्षा शुरू होने के साठ मिनट पहले पहुँचना आवश्यक हो गया । कुछ महीनों तक तो सब ठीक ठाक चलता रहा और कुछ हद तक मैनें तैराकी भी सीख ली। लेकिन उसके बाद इसमें ब्यवधान आ गया और तालाब की तरफ जाना ही छूट गया ।
कॉलेज पढ़ाई पूरी होते ही मेरी नौकरी लग गयी इस कारण कार्यालय से घर लौटते लौटते काफी देर हो जाती और थकान भी रहती । इससे मुक्ति पाने के लिये मैनें कुछ साथियों को शतरंज खेलना सिखाया और फिर रात को उनके साथ अभ्यास करने लग गया क्योंकि प्रदेश स्तर की प्रतिस्पर्धा की सूचना अखबारों के माध्यम से जानकारी में आयी हुयी थी । इसलिये प्रदेश स्तर की इस प्रतिस्पर्धा में भागीदारी की इच्छा जाग्रत हो गयी। इस कारण मैनें अपने कार्यालय से प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिये अनुमति माँगी जिसे न केवल स्वीकृति दी गयी बल्कि इस प्रतिस्पर्धा में भागीदारी के लिये मुझे कार्यालय से कुछ सुविधा भी दी गयी ।इस प्रतिस्पर्धा में भागीदारी निभाने का लाभ यह हुआ कि खेल जगत से सम्बन्धित काफी लोग मुझे पहचानने लग गये साथ ही साथ मैनें कुछ नाम भी कमाया।
हम में से अनेकों ने अपने बड़े बुर्जोंगों से अक्सर "पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे तो होओगे खराब..." वाली बात कभी ना कभी सुनी होगी। सोचें.. समझें.. विचार करें ...तो ये बात सही भी लगती है । लेकिन बीते कुछ वर्षों में जिस हिसाब से खेलों में पैसा और सम्मान खिलाड़ियों को प्राप्त होना शुरू हुआ है इसलिये अब यह बात अनुपयुक्त लगने लग गयी है।
अन्त में मेरे अनुभव का निष्कर्ष यही है कि पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ शरीर और दिमाग काे विकसित करने के लिए खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । खेल न केवल एक शारीरिक क्रिया है बल्कि एक मानसिक क्रिया भी है यानि यह हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग है। लगातार पढ़ाई या कार्यालय में कार्य पश्चात जो तनाव हो जाता है उसमें खेल उस तनाव को दूर करने में बहुत सहायक होता है । कुलमिलाकर खेल हमारे अंदर प्रेरणा, साहस, अनुशासन और एकाग्रता लाने का कार्य करता है।
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