पर्यावरण सुधार ही में है मानव का कल्याण
यह तो हम सभी जानते हैं कि जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश इन पाँचों तत्वों से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है,यानि इन पाँचों तत्वों का समावेश न केवल हमारे स्थूल शरीर में है, बल्कि प्रकृति भी इन सभी पाँचों तत्वों से ही बनी है । जिसका सीधा अर्थ है की जंतु, पेड़-पौधे और हम मनुष्य सभी इन पंच-तत्वों के संयोग से ही पैदा हुए हैं। इसलिये इन पाँचों में असंतुलन होने से हमें विभिन्न समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है । इसलिये इन पाँचों में संतुलन बना रहे यह हम सभी की जिम्मेदारी है क्योंकि इनमें संतुलन बने रहने से ही पर्यावरण सब तरह से अनुकूल रहेगा।
जैसा आप सभी जानते हैं कि प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध आदि काल से परस्पर निर्भर रहा है। जिसका मतलब है कि इन पंचतत्वों से हमारी सृष्टि और मानव का अस्तित्व है। इसी कारण से इन सभी के बीच संतुलन अति आवश्यक है। लेकिन आजकल भिन्न-भिन्न कारणों से इसकी मात्रा में असंतुलन भी होता है और वही चिन्ता का कारण है क्योंकि जैसे ही इनमें संतुलन बिगड़ता है तो पर्यावरण दूषित हो जाता है।
संतुलन बिगड़ने के अनेकों कारण हम सभी को स्पष्ट दिखाई देते हैं लेकिन हम अपने स्वार्थ के चलते उनकी अनदेखी करते हैं और उस अनदेखी का परिणाम भी भुगतते हैं|
अब हम कुछ बड़े कारणों पर चर्चा करें तो बहुत कुछ स्पष्टता सामने दृष्टिगोचर होगी जो इस प्रकार हैं :-
१] वनों व वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई जिसके चलते जंगल खाली होने लगे और पशु−पक्षियों के लिए भी संकट पैदा कर दिया। वृक्षों का ही अभाव है कि आये दिन पर्वतों की चट्टानें खिसकने और गिरने की घटनायें सामने आती हैं। इसके साथ साथ विभिन्न प्रकार की खनिज सम्पदा, पत्थर आदि का अन्धाधुन्ध दोहन भी असंतुलन का एक बड़ा कारण बन गया है। अभी हाल ही में यानि बीस - पच्चीस दिन पहले आप सभी ने हिमाचल प्रदेश में भूस्लखन की दस दिनों के भीतर ही दो घटनाओं का अख़बारों में पढ़ा ही होगा। और कुछ साल पहले ही बद्रीनाथजी व केदारनाथजी की तरफ जो भयंकर त्रासदी हुयी वह सब इन्हीं असंतुलन का ही परिणाम था ।
निदान : हम सभी को पेड़ पौधों यानी जंगल / वनों को बचाने चाहिए तभी जीव जंतु बचेंगे क्योंकि इनके बचने से ही ¨जिन्दगी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा"|
हमारे शास्त्रों में पेड़-पौधों की समुचित देखभाल को भगवान की सच्ची सेवा माना गया है क्योंकि पेड़ों पर सैकड़ों पक्षी आश्रय पाते हैं और खाद्य, जल एवं आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों की भी अहम भूमिका ( बड़ा योगदान ) होती है।
इसलिये जान लीजिये पेड़ पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। शाकाहारी जीव जंतु पेड़ पौधों को परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से खाते हैं। यदि पेड़ पौधे नहीं होंगे तो शाकाहारी जीव कम हो जाएंगे, जिसके चलते मांसाहारी जीवों पर कुप्रभाव पड़ेगा और आहार श्रृंखला कमजोर होती चली जाएगी।
उपरोक्त से यह तो स्पष्ट हो गया कि पर्यावरण के सम्बन्ध में वनों और पेड़ों का बहुत महत्व है। हमारे यहाँ तो वृक्षों की अत्यधिक उपयोगिता को स्वीकार कर और मानवीय भावनाओं के वशीभूत होकर उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया है| इसके साथ साथ हमें सिखाया गया है कि वास्तव में प्रकृति हमारी संरक्षक है, पोषक है इसलिये हमें प्रकृति की मूल सम्पदा को बचाये रखते हुए उसके ब्याज से काम चलाते रहना चाहिये तभी हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिये प्रकृति की मूल सम्पदा को संजोकर, बचाकर रख पायेंगे। वनों के प्रति सजग न रहना और भावी पीढ़ियों की चिन्ता न करना उनके प्रति अनाचार होगा, अन्याय होगा।
अब सभी सरकारें वृक्ष रोपण का समय समय पर कार्यक्रम बना कर वृक्षारोपण कर भी रही हैं लेकिन अभी भी वृक्ष रोपण पश्चात जो देखभाल होनी चाहिये वहाँ ढ़ील देखने में मिलती है।इसलिये जनता को स्वयं वृक्षरोपण पश्चात उसकी देखभाल का जिम्मा उठाना चाहिये।क्योंकि पृथ्वी के तत्वों के बीच संतुलन रखने के लिए एक मात्र उपाय है कटते हुए वनों को बचाया जाये और अधिक से अधिक वृक्षारोपण के लिये सभी को प्रोत्साहित किया जाय।
पानी को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए बल्कि उसका आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को कृषि कार्य ,नहाने इत्यादि में प्रयोग नहीं करना चाहिए । हमें पर्यावरण पर विशेष ध्यान देना होगा, इस धरा को हरा-भरा रखना होगा ताकि समय पर वर्षा हो और पानी के प्राकृतिक स्त्रोत ना सूखें।
कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए और अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
हमारे देश के जलसंकट को दूर करने के लिए दूरगामी समाधान के रूप में विभिन्न बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने से बहुत लाभ मिलेगा जैसे इंदिरा गाँधी नहर बन जाने से राजस्थान की अतृप्त भूमि की प्यास बुझ सकी, ऐसे ही अन्य प्रयासों से देश भर में खुशहाली और हरियाली लाई जा सकती है ।
"पर्यावरण सुधार में, है मानव कल्याण ।अगर प्रदूषण बढ़ गया, होंगे सब निष्प्राण।।"
अन्त में एक महत्वपूर्ण तथ्य से आपको अवगत कराना चाहता हूँ वह यह है कि कृतयुग में ही संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक चौपाई लिख पूरे मानवजाति के सामने पर्यावरण का एक सही खाका खींच दिया था और उसे आज के वैज्ञानिकों ने स्वीकारा ही नहीं बल्कि मान्यता भी दी है और वह चौपाई इस प्रकार है -
"क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा । पंच रचित अति अधम सरीरा ।।"
गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा बाबू"जय नारायण ब्यास कालोनीबीकानेर7976870397 / 9829129011जैसा आप सभी जानते हैं कि प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध आदि काल से परस्पर निर्भर रहा है। जिसका मतलब है कि इन पंचतत्वों से हमारी सृष्टि और मानव का अस्तित्व है। इसी कारण से इन सभी के बीच संतुलन अति आवश्यक है। लेकिन आजकल भिन्न-भिन्न कारणों से इसकी मात्रा में असंतुलन भी होता है और वही चिन्ता का कारण है क्योंकि जैसे ही इनमें संतुलन बिगड़ता है तो पर्यावरण दूषित हो जाता है।
संतुलन बिगड़ने के अनेकों कारण हम सभी को स्पष्ट दिखाई देते हैं लेकिन हम अपने स्वार्थ के चलते उनकी अनदेखी करते हैं और उस अनदेखी का परिणाम भी भुगतते हैं|
अब हम कुछ बड़े कारणों पर चर्चा करें तो बहुत कुछ स्पष्टता सामने दृष्टिगोचर होगी जो इस प्रकार हैं :-
१] वनों व वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई जिसके चलते जंगल खाली होने लगे और पशु−पक्षियों के लिए भी संकट पैदा कर दिया। वृक्षों का ही अभाव है कि आये दिन पर्वतों की चट्टानें खिसकने और गिरने की घटनायें सामने आती हैं। इसके साथ साथ विभिन्न प्रकार की खनिज सम्पदा, पत्थर आदि का अन्धाधुन्ध दोहन भी असंतुलन का एक बड़ा कारण बन गया है। अभी हाल ही में यानि बीस - पच्चीस दिन पहले आप सभी ने हिमाचल प्रदेश में भूस्लखन की दस दिनों के भीतर ही दो घटनाओं का अख़बारों में पढ़ा ही होगा। और कुछ साल पहले ही बद्रीनाथजी व केदारनाथजी की तरफ जो भयंकर त्रासदी हुयी वह सब इन्हीं असंतुलन का ही परिणाम था ।
निदान : हम सभी को पेड़ पौधों यानी जंगल / वनों को बचाने चाहिए तभी जीव जंतु बचेंगे क्योंकि इनके बचने से ही ¨जिन्दगी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा"|
हमारे शास्त्रों में पेड़-पौधों की समुचित देखभाल को भगवान की सच्ची सेवा माना गया है क्योंकि पेड़ों पर सैकड़ों पक्षी आश्रय पाते हैं और खाद्य, जल एवं आहार श्रृंखला को आगे बढ़ाने में पक्षियों की भी अहम भूमिका ( बड़ा योगदान ) होती है।
आपके ध्याननार्थ, ये ही पेड़-पौधे जहाँ एक तरफ जीवनदायिनी आक्सीजन देते हैं यानि पेड़ पौधों की कमी से आक्सीजन की कमी होती चली जाएगी जिससे जीना दूभर हो जायेगा, वहीँ दूसरी तरफ पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं । इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रख कुछ दिन पहले ही कोरोना काल में जब हमें हमारे देश में ऑक्सीजन की किल्लत देखने मिली तब समझदार पर्यावरण प्रेमियों ने आम नागरिकों को जागरूक करने के लिये हर मीडिया के माध्यम से निम्न पोष्ट वृहद रूप से साँझा की -
"अगर वायुमंडल में ऑक्सीजन नहीं होगी तो दुनिया का कोई भी यंत्र आपको ऑक्सीजन बना कर नहीं दे पाएगा ।अगर जिंदा रहना चाहते हैं तो हमें :- बरगद, पीपल, नीम, अर्जुन और अशोक के पेड़ लगाने पड़ेंगे, आज से और अभी से। इसलिये इस ओर सभी को अपना अपना योगदान देना अविलम्ब शुरू कर देना चाहिये।"
उपरोक्त से यह तो स्पष्ट हो गया कि पर्यावरण के सम्बन्ध में वनों और पेड़ों का बहुत महत्व है। हमारे यहाँ तो वृक्षों की अत्यधिक उपयोगिता को स्वीकार कर और मानवीय भावनाओं के वशीभूत होकर उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया है| इसके साथ साथ हमें सिखाया गया है कि वास्तव में प्रकृति हमारी संरक्षक है, पोषक है इसलिये हमें प्रकृति की मूल सम्पदा को बचाये रखते हुए उसके ब्याज से काम चलाते रहना चाहिये तभी हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिये प्रकृति की मूल सम्पदा को संजोकर, बचाकर रख पायेंगे। वनों के प्रति सजग न रहना और भावी पीढ़ियों की चिन्ता न करना उनके प्रति अनाचार होगा, अन्याय होगा।
अब सभी सरकारें वृक्ष रोपण का समय समय पर कार्यक्रम बना कर वृक्षारोपण कर भी रही हैं लेकिन अभी भी वृक्ष रोपण पश्चात जो देखभाल होनी चाहिये वहाँ ढ़ील देखने में मिलती है।इसलिये जनता को स्वयं वृक्षरोपण पश्चात उसकी देखभाल का जिम्मा उठाना चाहिये।क्योंकि पृथ्वी के तत्वों के बीच संतुलन रखने के लिए एक मात्र उपाय है कटते हुए वनों को बचाया जाये और अधिक से अधिक वृक्षारोपण के लिये सभी को प्रोत्साहित किया जाय।
२] ऐसा माना जाता है कि जितना जल संसार मे है उतना ही प्रतिशत जल इस शरीर मे है। लेकिन दुनिया की बेतहाशा बढ़ती आबादी ने सम्पूर्ण विश्व में जल पर गहरा संकट उत्पन्न कर दिया है। इसलिये जल का संतुलन भी रहना बहुत आवश्यक है लेकिन यहाँ भी हमने अपने स्वार्थ के चलते जल का अति दोहन किया ही नहीं बल्कि कर भी रहे हैं। यही कारण है कि खेती में अधिक कीटनाशक डालकर व आवश्यकता से अधिक पानी डालकर जमीन का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं और इससे एक तरफ वांछित उपज नहीं मिल रही है तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलित हो रहा है ।
जल के उपयोग एवं प्रदूषण में उद्योगों की एक बहुत बड़ी भूमिका है । उद्योग वाले तो सोचते ही नहीं हैं और सारा कचरा तालाबों या नदियों में धडल्ले से डाले देते हैं जिसके चलते तालाब, नदियाँ प्रदूषित भी हो रही हैं और जनता के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है । इसी प्रकार हमें जल के साथ−साथ अपनी पृथ्वी को भी बचाना होगा।
निदान : हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और तो और हमारी कृषि मानसून पर आश्रित भी है। मानसून की अनियमितता,जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे किसान सबसे अधिक पीड़ित हैं इसलिये जल भण्डारण अति आवश्यक है। जल भण्डारण पर सभी सरकारें योजनाबद्ध तरीके से काम भी कर रही हैं और प्रोत्साहित भी।पानी को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए बल्कि उसका आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए। पीने के पानी को कृषि कार्य ,नहाने इत्यादि में प्रयोग नहीं करना चाहिए । हमें पर्यावरण पर विशेष ध्यान देना होगा, इस धरा को हरा-भरा रखना होगा ताकि समय पर वर्षा हो और पानी के प्राकृतिक स्त्रोत ना सूखें।
कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ इन अवशिष्ट पदार्थों को निष्पादन से पूर्व दोषरहित किया जाना चाहिए और अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए।
हमारे देश के जलसंकट को दूर करने के लिए दूरगामी समाधान के रूप में विभिन्न बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने से बहुत लाभ मिलेगा जैसे इंदिरा गाँधी नहर बन जाने से राजस्थान की अतृप्त भूमि की प्यास बुझ सकी, ऐसे ही अन्य प्रयासों से देश भर में खुशहाली और हरियाली लाई जा सकती है ।
इस प्रकार संक्षेप में पर्यावरण के मुख्य बिन्दुओं को आपके सामने रखने की चेष्टा की है और आशा करता हूँ कि प्रबुद्ध पाठक उपरोक्त बताये कारणों व निदान से ज्यादा बहुत कुछ स्वयं भी समझ गये होंगे क्योंकि पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी केवल मनुष्य के जिम्मे है, केवल और केवल मनुष्य के जिम्मे है। इन्हीं सब तथ्यों के सार से इन्दौर के रशीद अहमदजी ने निम्न दो पंक्तियों के माध्यम से हम सब को जागरूक करने की पूरी पूरी चेष्टा की है -
"पर्यावरण सुधार में, है मानव कल्याण ।अगर प्रदूषण बढ़ गया, होंगे सब निष्प्राण।।"
उपरोक्त वर्णित सभी तथ्यों से यह स्पष्ट हो गया है कि हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिये ही इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का विषय भी "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली" निर्धारित किया गया है।
"क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा । पंच रचित अति अधम सरीरा ।।"
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