कोरोना के बहाने.
गोवर्धन यादव
------------------------------------------------------------------------------------------------------
“ रामलाल...तुम यहाँ वृद्धाश्रम में.?”
“ भैया मेरी तो जैसे किस्मत ही फ़ूट गई है....कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे यहाँ आना पड़ेगा” कहते हुए रामलाल अपने मित्र से गले से लगकर फ़ूट-फ़ूट कर रोने लगा था. देर तक रोते रहने के बाद वह बड़ी मुश्किल से शांत हो पाया था.
“ तुम्हारा बेटा और बहू तो बड़े ही विनम्र और आज्ञाकारी थे. तुम उनकी बड़ाई करते थकते नहीं थे, आखिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने तुम्हें यहाँ लाकर पटक दिया”. मित्र श्यामलाल ने जानना चाहा.
“ हाँ भैया...दोनो ही बड़े विनम्र और आज्ञाकारी थे. उनके व्यवहार से खुश होते हुए मैंने यह सोचा कि आज नहीं तो कल मेरी प्रापर्टी पर इनका ही तो हक बैठता है. क्यों न आज ही इसे इनके नाम कर दूँ. मैंने बैंक में रखी रकम और खेत-मकान उनके नाम कर दिया. कुछ दिन तक तो ठीक रहा, लेकिन घर की चाभी बहू हाथ आते ही उसने अपना असली रूप दिखाना शुरु कर दिया. न तो मुझे समय पर चाय-नाश्ता मिलता और न ही भरपेट भोजन. मैं अब अपने किए पर पछताता और सिए धुनता रहता हूँ कि इनका छद्म रुप मैं कैसे पहचान नही पाया?. इसी चिंता में मैं बिमार पड़ गया. बहू ने बेटे को समझाते हुए कहा कि पिताजी तो कोरोना हो गया है. जितनी जल्दी हो सके, इन्हें कोरोन्टाईन करवाने के लिए कोरोन्टाईन-होम में भरती करवा दो. इसी बहाने उसने मुझे वृद्धाश्रम में लाकर भरती करवा दिया.” कहते हुए वह फ़फ़क कर रो पड़ा.
धीरज बंधाते हुए श्यामलाल ने कहा - “रामलाल...शायद तुम भूल गए. एक बार मैंने तुम्हें समझाया भी था कि सब कुछ करना, लेकिन अपने जीते जी रकम और घर-खेत भूलकर भी किसी के नाम मत करना. वही हुआ जिसका मुझे भी अदेंशा था. अब पछताने से कुछ होना जाना नहीं है. काश, सारी प्रापर्टी तुम्हारे नाम रही होती, तो शायद ही तुम्हें ये दिन देखने पड़ते.” सान्तवना देते हुए वह लौट पड़ा था.
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
103, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001 गोवर्धन यादव 9424356400
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY