होली के रंग--देश से परदेश तक गोवर्धन यादव होली हमारी सांस्कृतिक- भावनात्मक एकता का प्रतीक है. ऋतुराज वसन्त के आगमन से, जब समग्र प्रकृति आनन्द से सराबोर होकर, राग-रंग में मगन हो उठती है और जब वनस्पति नए-नए पल्लव-परिधानों के पुष्पों से अपना शृंगार करती है तथा मंद-मंद मलय समीर के मृदु स्पर्ष से रोमांचित होकर मस्ती मे झूमने लगती है, तब राग-रंजित सृष्टि के समस्त प्राणी, उस नई भंगिमा में प्रकट होने वाली सौंदर्य प्रकृति-नटी के प्रफ़ुल्ल यौवन के आकर्षण में बंधकर गुनगुनाने लगता है, तब मनुष्य कैसे अछुता रह सकता है.? एक अव्यक्त संगीत झंकृत होने लगता है. मुक्ति के इस उत्सव में, उसकी सारी सीमाएं टूट जाती है. वर्ग भेद,-जातिभेद से परे, मानवीय एकता और प्रेम की अभिव्यक्ति का यह पर्व, सबको रंग-गुलाल में डूबॊ जाता है. सुगंध से बौराया पवन, मंद-मंद बहने लगता है और सारी सृष्टि पुलकित होकर उल्लास, नई उमंग और उत्साह में झूम उठती है. नगर में, गाँव-गाँव में, डगर-डगर पर मस्ती की धूम मचाता हुआ, रंगों की पिचकारी लिए अलबेला फ़ागुन निकल पडा है होली खेलने. कहीं उषा, दिन के माथे पर रॊली लगा रही है, तो कहीं आकाश में संध्या, निशा के ऊपर गुलाल और सितारे बरसा रही है. बडी मधुर और प्रेम-सौहार्द्र की भावनाओं की प्रतीक है होली. रंगों की सतरंगी दुनिया के बीच मानवता की अनूठी झलक दिखाई देती है इस दिन. भारत की इस सम्मोहक परंपरा को, अन्य देशों में भी, अपने-अपने ढंग से सहजने की कोशिश की है. इसके नाम भी अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो गए हैं, परंतु उल्लास की मूल भावना एक समान है. प्राचीन रोम में “साटर ने लिया” के नाम से होली की ही भाँति एक उत्सव मनाया जाता है. इसे अप्रैल माह में पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है. रोम में “रेडिका” नाम से एक त्योहार माह मई में मनाया जाता है. इसमें किसी ऊँचे स्थान पर काफ़ी लकडियाँ इकठ्ठी कर ली जाती है और उन्हें जलाया जाता है. इसके बाद लोग झूम-झूमकर नाचते-गाते हैं एवं खुशियां मनाते हैं.
इटलीवासियों की मान्यता के अनुसार, यह समस्त कार्य, अन्न की देवी ”फ़्लोरा” को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है.
यूनान------पश्चिमी दर्शन के पितामह कहे जाने वाले सुकरात की जन्मभूमि यूनान में भी लगभग इसी प्रकार का समारोह “पोल” नाम के उत्सव में होता है. यहाँ पर भी लकडियाँ इकठ्ठीकर जलाई जाती है. इसके बाद लोग झूम-झूमकर नाचते-गाते हैं. यहाँ पर यह उत्सव यूनानी देवता “टायनोसियस” की पूजा के अवसर पर आयोजित होता है.
जर्मनी---- कुछ इस तरह का उत्सव मनाने की परंपरा जर्मनी में भी है. यहाँ के रैन्लैंड नाम के स्थान पर होली जैसा त्योहार, एक नहीं, पूरे सात दिनों तक मनाया जाता है. इस समय लोग अटपटी पोशाक पहनते हैं और अटपटा व्यवहार कराते हैं. कोई भी, किसी तरह के बिना किसी लिहाज के मजाक कर लेता है. बच्चे-बूढे सभी एक दूसरे से मजाक करते हैं. इन दिनों, किसी तरह के भेदभाव की गुंजाइश नहीं रह जाती. और इस तरह की गई मजाक का कोई बुरा नहीं मानता.
बेलजियम मे भी कुछ स्थानों पर होली जैसा ही उत्सव मनाने का रिवाज है. इस हँसी-खुशी से भरे त्योहार में,पुराने जूते जलाए जाते हैं और सब लोग आपस में मिलकर हँसी –मजाक करते हैं. जो व्यक्ति इस उत्सव में शामिल नहीं होते, उनका मुँह रँगकर, उन्हें गधा बनाया जाता है और जुलूस निकाला जाता है. कोई किसी की कही बातों का बुरा नहीं मानता.
अमेरिका में होली जैसा ही एक मस्ती से भरे त्योहार का नाम है “होबो”, इस अवसर पर एक बडी सभा का आयोजन होता है, जिसमें लोग तरह-तरह की वेशभूषा पहनकर आते हैं. इस समय किसी भी औपचारिकता पर ध्यान नहीं दिया जाता. मस्ती में झूमते हुए लोग पागलों जैसा व्यवहार करने लगते हैं.
वेस्टइंडिज में तो लोग होली को, होली की ही भाँति मनाते हैं. इस अवसर पर यहाँ तीन दिन की छुट्टी होती हैं. इस अवधि में लोग धूम-धाम से त्योहार मनाते हैं.
पोलैंड में होली के ही समान “अर्सीना” नाम का त्योहार मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और एक-दूसरे के गले मिलते हैं. पुरानी शत्रुता भूलकर, नए सिरे से मैत्री संबंध स्थापित करने के लिए यह श्रेष्ठ उत्सव माना जाता है.
चेकोस्लोवाकिया में “बलिया कनौसे” नाम से एक त्योहार, बिल्कुल ही अपनी होली के ढंग से मनाया जाता है. आपस में एक दूसरे पर रंग डालते हैं और नाचते-गाते हैं.
अफ़्रीका महाद्वीप में कुछ देशों में “ओमेना बोंगा” नाम से जो उत्सव मनाया जाता है, उसमें हमारे देश की होली के ही समान ही जंगली देवता को जलाया जाता है. इस देवता को “प्रिन बोंगा” कहते हैं इसे जलाकर नाच-गा कर नई फ़सल के स्वागत में खुशियाँ मनाते हैं.
मिश्र में भी कुछ होली की ही तरह नई फ़सल के स्वागत में आनंद मनाते हैं. इस आनंद से भरे त्योहार का नाम “ फ़ालिका” है. इस अवसर पर पारस्परिक हँसी-मजाक के अतिरिक्त एक अत्यंत आकर्षक नृत्य एवं नाटक भी प्रस्तुत किया जाता है.
सूर्योदय के देश जापान में भी होली के रंग की छटा निखरती है, वहाँ यह त्योहार नई फ़सल के स्वागत के रूप में मनता है. मार्च के महिने मे मनाए जाने वाले इस त्योहार में, जापान निवासी उत्साह से भाग लेते हैं और अपने नाच-गाने एवं आमोद-प्रमोद से वातावरण को बडा ही आकर्षक और मादक बना देते हैं. इस अवसर पर खूब हँसी-मजाक भी होते हैं. श्रीलंका में तो होली का त्योहार बिल्कुल अपने देश की तरह ही मनाया जाता है. वहाँ बिल्कुल ठीक अपनी होली की ही भाँति रंग-गुलाल और पिचकारियाँ सजती हैं. हवा में अबीर उडता है. लोग सब गम और गिले-शिकवे भूलकर, परस्पर गले मिलते हैं. अपनी मित्रता एवं हँसी-खुशी का यह त्योहार श्रीलंका में अपनी गरिमा बनाए हुए है.
थाईलैंड में इस त्योहार को “सांग्क्रान” कहते हैं. इस अवसर पर थाईनिवासी, मठों में जाकर वहाँ के भिक्षुओं को दान देते हैं और आपस में एक-दूसरे पर सुगंधित जल छिडकते हैं. इस पर्व पर वृद्ध व्यक्तियों को सुगंधित जल से नहलाकर, नए वस्त्र देने की परंपरा है. परस्पर हँसी-मजाक, चुहल-चुटकुले इस त्योहार को एकदम होली की भांति सँवार देते हैं.
अपने पडोसी देश बर्मा में होली के त्योहार को “तिजान” नाम से जाना जाता है. यहाँ पर भारत देश के समान ही पानी के बडॆ-बडॆ ड्रम भर लिए जाते हैं और उसमें रंग तथा सुगंध घोलकर एक-दूसरे पर डालते हैं.
मारीशस में तो होली का त्योहार भारत के समान ही मनाया जाता है. वहाँ पर इसकी तैयारी पन्द्रह दिन पहले से ही शुरु हो जाती है.इन पन्द्रह दोनों चारों ओर हँसी-ठहाकों की मधुर गूँज खनकती रहती है. फ़ांस में “गाचो” नाम का त्योहार मनाते है तथा रंग-गुलाल मलते हैं.
साइबेरिया-नार्वे-स्वीडन एवं डेनमार्क में लकडियों के ढेर में आग लगाकर उसकी परिक्रमा करते हैं और नाचते-गाते हैं.
तिब्बत में तो ’आग” को देवता मानकर पूजा जाता है. जावा-फ़िजी-कोरिया-सुमात्रा-मलेशिया में भी भारत की तरह ही होली का पर्व मनाया जाता है. हँसी की यह खनक अपने देश में हो या फ़िर देश की सीमाओं के पार, एक-सी है, एकदम एक है. विश्व में बिखरी हँसी की इस छटा को देखकर, यही कहा जा सकता है कि होली एक है, पर उसके रंग अनेक है. ये रंग चमकते-दमकते रहें, इसके लिए हमें और हम सबको इसका ध्यान रखना होगा कि कहीं हम अपने किसी व्यवहार से इन्हें बदरंग न कर दें. इस सांस्कृतिक त्योहार की गरिमा, जीवन की गरिमा में है.
होली के इस रंग-बिरंगे पावन पर्व पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ.. -------------------------------------------------------------------------------------------- संपर्क गोवर्धन यादव 9424356400 १०३,कावेरीनगर,छिन्दवाडा(म.प्र.)
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