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कौमुदी-महोत्सव

 

                     

                         


                        कौमुदी-महोत्सव

      कौमुदी-महोत्सव को रासोत्सव भी कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को रासलीला की थी. इसलिए व्रज में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है.

      सात अक्टूबर को पूरे भारतवर्ष में इस महोत्सव को विशेष उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया था. इस बार यह आज के दिन अर्थात 30-10-2020 को मनाया जा रहा है.

      अश्विनमास के शुक्लपक्ष को पडने वाली पूर्णिमा, शरत्पूर्णिमा कहलाती है. इस दिन रात्रि में चन्द्रमा की चाँदनी में अमृत का निवास रहता है, इसलिए उसकी किरणॊं से अमृतत्व और आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती है.  इस रात्रि में खीर से भरे पात्र को खुली चाँदनी में रखना चाहिए. इसमें रात्रि के समय चन्द्रकिरणॊं के द्वारा अमृत गिरता है. पूर्ण चन्द्रमा के मध्याकाश में स्थिर होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान करना चाहिए तथा भगवान को भोग लगाना चाहिए. इस दिन दमा-स्वांस के मरीजों को विशेष जडी-बूटी मिलाकर दवा दी जाती है. कुशल वैद्य बिना किसी शुल्क के हजारों मरीजों को दवा बांटते हैं.

      इसी पूर्णिमा की रात्रि में भगवती महालक्ष्मीजी भ्रमण पर निकलती हैं और यह देखती है कि कौन जाग रहा है. जो जाग रहा होता है उसे वे धन प्रदान करती है. महालक्षमीजी के “को जागृति” कहने के कारण इस व्रत को कोजागर अथवा कोजागिरी भी कहा जाता है. इस संबंध में एक श्लोक है, वह इस प्रकार से है.         

                  निशीथे वरदा लक्ष्मीः को जागृर्तीति भाषिणी                                              जगति  भ्रमते  तस्यां   लोकचेष्टावलोकिनी                                             तस्मै वित्तं प्रयच्छामि यो जागर्ति  महीतले.

      कोजागिरी व्रत को लेकर एक कथा भी पढने को मिलती है. वह इस प्रकार है.

      मगध देश में वलित नामक एक याचक ब्राह्मण था. उसकी पत्नि चण्डी अति कर्कशा थी. वह ब्राह्मण को रोज ताने देती कि मैं किस दरिद्र के घर बिहाई गई. वह नित प्रति अपने पति की घोर निंदा करती रहती. वह पापिनी अपने पति को राजा के महल में जाकर चोरी करने के लिए उकसाया करती थी.

      एक बार श्राध्द के समय उसने पिण्डॊं को उठाकर कुएँ में फ़ेंक दिया. इससे अत्यन्त दुखी होकर ब्राह्मण जंगल में चला गया, जहाँ उसे नागकन्याएँ मिलीं. उस दिन आश्विनमास की पूर्णिमा थी. नागकन्याओं ने ब्राहमण को रात्रि जागरण कर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने वाला कोजागर व्रत करने को कहा. कोजागरव्रत के प्रभाव से ब्राह्मण के पास अतुल धन-सम्पत्ति हो गयी. भगवती लक्ष्मी की कृपा से उसकी पत्नि चण्डी की भी मति निर्मल हो गयी और वे दम्पति सुखपूर्वक रहने लगे.

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103, कावेरी नगर छिन्दवाड़ा 480001                                                     गोवर्धन यादव.


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