ये आकाशवाणी है.... .
बातें बीते दिनो की...
बातें बीते दिनों की है, जब मैंने अपनी पहली तन्खवाह से जबलपुर के अन्धेरदेव इलाके की किसी दुकान से दो बैण्ड वाला मरफ़ी का ट्रांजिस्टर खरीदा था. उस समय में प्रसारित होने वाली अन्य कार्यक्रमों के अलावा मुझे समाचार सुनना ज्यादा रुचिकर लगता था. समाचार सुनने का शौक आज भी बरकरार है. मुझे याद है कि सुबह के आठ बजने से एकाध मिनट पहले उद्घोषणा होती है कि आप थोड़ी देर में समाचार सुनिए. फ़िर एक बीप सुनाई देती. इस बीप के माने है कि देश के सभी रेडियो स्टेशन आपस में जुडने जा रहे है. जैसे ही सभी स्टेशन आपस में जुड़ जाते, उद्घोषक कहता है..ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनंदन पांडॆ से समाचार सुनिए. समाचार वाचक की खनकदार आवाज सुनकर आपका सारा ध्यान रेडियो पर केन्द्रीत हो जाता है और आप पन्द्रह मिनट में देश-दुनियां के सभी समाचारॊं से अवगत हो जाते, जबकि इन्हीं समाचारों को जानने के लिए आपको अखबार के पन्ने पलटने पड़ते हैं. जरुरी नहीं कि अखबार में प्रकाशित होने वाली खबरें एकदम ताजा ही हों. दरअसल अखबारों में प्रकाशित खबरें, बीती रात तक की खबरें होती हैं, जबकि रेडियो में प्रसारित होने वाली खबरे एकदम ताजा-तरीन और ज्यादा विश्वसनीय भी. अखबार पढ़ने की प्रक्रिया में आपको अपना सारा ध्यान अखबार पर केन्द्रीत करना होता है. आँखे खुली रखनी होती है. जबकि र्रेडियो सुनने में ये सब आपको करने की जरुरत नहीं होती. दैनंदिन कार्यो को करते हुए भी आप समाचारों को सुन सकते हैं.
कल्पना कीजिए उस समय की, जब रेडियो का कोई अस्तित्व ही दुनियां में नहीं था. समाचार जानने के लिए आपको अखबारों के अलावा अन्य स्त्रोतों पर आश्रित रहना होता था. अब आप उस समय की भी कल्पना कीजिए, जब दुनिया में पहली बार रेडियो द्वारा संदेश भेजने की शुरुआत हुई होगी. कितना सुखद क्षण रहा होगा वह, कितना खुश हुआ होगा आदमी, जब उसने एक खिलौनेनुमा डिब्बे से निकलती हुई आवाज को सुना होगा. उसकी खुशी की कल्पना का अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं.
संचार युग में रेडियो के प्रवेश का यह पहला पड़ाव था. इसके बाद विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ संचार क्षेत्र में भी दुनिया काफ़ी आगे बढ़ चुकी है. धरती के एक छोर पर बैठा व्यक्ति, दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति सतत एक-दूसरे से संपर्क में बना रहता है. दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी घटना घटित होती है, तो पलभर में सभी जगह प्रसारित हो जाती है. तेज गति से चल रहे इस समय में, रेडियो की बात बड़ी असहज लगती होगी, लेकिन सच है कि किसी जमाने में रेडियो की अपनी अलग ही शान थी. रेडियो रखना, रेडियो सुनना और रेडियो के कार्यक्रम में भाग लेना गौरव की बात होती थी.
रेडियो शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के एक शब्द “रेडिंयस” से हुई है. रेडिंयस का अर्थ होता है-एक संकीर्ण किरण या प्रकाश-पुंज, जो आकाश में इलैक्ट्रो मैगनेट तरंगों द्वारा फ़ैलती है. ये विद्युत तरंगे संकेतों के रूप में सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का काम करती है. पहली बार जर्मन भौतिक शास्त्री हेनरिच हर्ट्स ने 1886 में रेडियो तरंगो का सफ़ल प्रदर्शन किया. इसके बाद इटली के गुगलियो ने रेडियो तरंगों के जरिए सफ़ल संचार करने में सफ़लता प्राप्त की थी.
टेलीविजन के आते ही रेडियो पुराने जमाने की बात हो कर रह गई थी. उसे अनुपयोगी समझ कर किसी कोने में पटक दिया गया था. लेकिन जैसे ही एफ़.एम. (रेडियो) की शुरुआत हुई, रेडियो के पुराने दिन लौट आए. अन्य कार्यक्रमों के अलावा प्रति बुधकार को रेडियो सिलोन से प्रसारित होने वाला कार्यक्रम “बिनाका गीत माला” में अमीन सयानी की खनकती आवाज का जादू, श्रोताओं के सिर चढ़कर बोलने लगा था. मेरा अनुमान है कि इस कार्यक्रम के बाद से ही ट्रांजिस्टर की बिक्री में बेहताशा बढ़ीतरी हुई थी. आज रेडियो और श्रोताओं का आपसी संबंध ऐसा बन चुका है जो अन्य किसी संचार माध्यम में देखने को नहीं मिलता.
आकाशवाणी, भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचालित होता है. भारत में पहली बार रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुंबई और कलकत्ता में सन 1927 में हुई थी. 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और तब इसका नाम “भारतीय प्रसारण सेवा “ ( INDIAN BRODCASTING CORPORATION) रखा गया था. सन 1957 में इस नाम को बदलकर “आकाशवाणी” रखा गया. कई भाषाओं में तथा विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत “आकाशवाणी” आज जन-जन की वाणी बन चुकी है. विविध भारती, आकाशवाणी की सबसे लोकप्रिय सेवा है. इसे विज्ञान प्रसारण सेवा भी कहा जाता है. आकाशवाणी का प्रमुख उद्देश्य “लोक-कल्याण” ही है. अतः इसका ध्येय वाक्य प्रचलन में आया-“बहुजनसुखाय-बहुजनहिताय”. आज वह इसी प्रमुख ध्येय को लेकर चल रहा है.
एफ़.एम. रेडियो;- यह एक प्रकार का रेडियो प्रसारण ही है, जिसमें केरियर की आवृत्ति को प्रसारण ध्वनि के अनुसार माड्यूलेट किया जाता है. इस प्रक्रिया को आवृत्ति माड्यूलेशन या आवृत्ति माड्यूलन कहते हैं. इस प्रक्रिया द्वारा माड्यूलन कर जब रेडियो प्रसारण होता है- उसे एफ़.एम. प्रसारण कहते हैं. इस वाहक का आयाम स्थिर बना रहता है और गुणवत्ता अधिक होती है. इसी कारण आजकल एफ़.एम.के प्रसारण लोकप्रिय हो रहे हैं. आज रेडियो सुनना इतना आसान और सुलभ हो गया है कि मोबाइल सेट में भी आप रेडियो सुन सकते हैं. जिस प्रकार रेडियो के हार्डवेअर में परिवर्तन हुए हैं उसी प्रकार साफ़्टवेअर में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं. रेडियो और अधिक जन-उपयोगी होता जा रहा है. इसके कारण रेडियो की स्वीकार्यता और मांग दोनों बढ़ गई है, कई चैनलों की भरमार हो गई है और इसी के अनुरुप केन्द्रों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है. इनकी बढ़ती उपयोगिता के चलते ही सामुदायिक रेडियो, सेटेलाइट रेडियो, डिजिटल रेडियो तथा इंटरनेट रेडियों आदि प्रचलन में आए.
भारत की आबादी के लगभग चालीस प्रतिशत के पास ही इंटरनेट की सुविधा है, लेकिन वह हर जगह सही काम नहीं कर पाता. फ़िर गाँवों और कस्बों में बिजली की समस्या है. लेकिन बैटरी से चलने वाला ट्रांजिस्टर रेडियो हर जगह और हर वक्त चल सकता है. दूरदर्शन के डी.डी.भारती चैनल को छोड़कर किसी अन्य टीव्ही.चैनल पर संगीत, विज्ञान, कृषि या साहित्य से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम प्रसारित नहीं किया जाता. इसलिए हर संगीत प्रेमियों के लिए और विविध जानकारी प्राप्त करने के लिए आकाशवाणी से बेहतर और कोई सेवा हो ही नहीं सकती है.
विविध भारती आकाशवाणी की एक प्रमुख और सर्वाधिक सुनी जाने वाली लोकप्रिय सेवा है. इस पर मुख्यतः फ़िल्मी गीत सुनवाए जाते हैं. इसकी शुरुआत 3 अक्टूबर 1957 को हुई थी. प्रारंभ में इसका प्रसारण केवल दो केन्द्रों, मुम्बई तथा मद्रास ( अब चैन्नई ) से होता था. बाद में इसकी लोकप्रियता को देखते हुए कई अन्य केन्द्र इसका प्रसारण करने लगे. यह वर्षों तक देश के असंख्य हिन्दी भाषियों का चहेता रेडियो चैनल बना रहा. पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को 50 के दशक में, फ़िल्मी लेखन के लिए बतौर अधिकारी बुलाया, तब उन्होंने अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्द- “मिस्लेनियस” को हिन्दी में रुपान्तरित कर नया शब्द गढ़ा- “विविध”. भारती के साथ इस शब्द के जुड़ जाने से “विविध भारती” बना, जो अत्यन्त ही लोकप्रिय हुआ.
“विविध भारती पर मुख्यतः हिन्दी फ़िल्मी गीत सुनाये जाते है. इसके अलावा वार्ता, रेडियो वृतांत, नाटक, संगीत,साहित्य भारती, संस्कृत भारती, चित्र भारती, विज्ञान भारती, युवा भारती सहित अंग्रेजी में हर महिने के चौथे शुक्रवार को रात्रि के 10.00 बजे राजधानी दिल्ली के राजधानी चैनल से प्रसारित किया जाता है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण,महिलाओं के कार्यक्रम, बच्चों के कार्यक्रम सहित कृषि के विभिन्न पहलुओं पर भी इसमें व्यापक चर्चाएं प्रसारित होती हैं.
हमारे देश में तकनीकी रूप में तीन तरह के रेडियो प्रसारण काम करते हैं. मीडियम वेव, शार्ट वेव और एफ़.एम. प्रसारण केंद्र. अपने नाम के अनुरूप इनके प्रसारणॊं की फ़्रीक्वेंसी भी अलग- अलग होती है. रेडियो सेट को ट्यून करने के लिए उसकी फ़्रीक्वेंसी भी बतलाई जाती है. मिडियम वेव की अपनी निश्चित सीमाएं हैं. जबकि एफ़.एम की अपनी. एफ़.एम अधिकतम पचास से सत्तर किलो मीटर तक सुनाई देता है. आकाशवाणी और अन्य एफ़.एम.चैनलों में तरंगे प्रसारित करने के लिए टावरों की जरुरत होती है. उपग्रह की भी इसमें मदद ली जाती है.
सबसे आसान, सबसे विश्वसनीय और कम खर्चे पर सुना जाने वाला संचार का अगर कोई माध्यम है तो वह रेडियो संचार का माध्यम ही है, जहां श्रोताओं का बहुत बड़ा वर्ग इससे जुड़ा हुआ है.
आकाशवाणी की लोकप्रियता को चार चांद लगाने में साहित्यकारों का भी बड़ा योगदान रहा है. स्व.भगवती चरण वर्मा, पंडित प्रेम बरेलवी, अशोक चक्रधर, रघुवीर सहाय, रमई काका, अमृतलाल नागर, भवानी प्रसाद मिश्र, जगदीश चन्द्र माथुर, बालकृष्ण राव, भारतभूषन अग्रवाल, विष्णु प्रभाकर, सुमित्रा नन्दन पंत, ममता कालिया, कमलेश्वर, आदि के नामों को कैसे विस्मृत किया जा सकता है.
रेडियो जगत के लिए यह गौरव का विषय था जब युनेस्को ने अपनी 36 वीं महासभा में, रेडियो कैसे हमारे जीवन को एक नया आयाम देने में मददगार सकता है इस परिकल्पना के साथ वर्ष 2011 में 13 फ़रवरी को “विश्व रेडियो दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की. पहली बार विश्व रेडियो दिवस आधिकारिक रूप में वर्ष 2012 में मनाया गया. 13 फ़रवरी युनेस्को के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र के पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना का दिन भी यही था. तब से युनेस्को प्रतिवर्ष संगठनों और समुदायों के साथ मिलकर विभिन्न गतिविधियों द्वारा विश्व रेडियो दिवस मनाता है. रेडियो दिवस पर एक विषय का निर्धारण होता है. इस वर्ष “रेडियो और खेल” विषय के अन्तर्गत आयोजन किए जायेंगे. इस आयोजन में संबंधित निकायों और संगठनों द्वारा सूचना, मनोरंजन, चर्चाओं आदि के माध्यम से लोगों को जोड़ने के लिए. “रेडियो और खेल” विषय रखा गया है. इसमें पारंपरिक और जमीनी स्तर पर खेलों की विविधता बढ़ाने और खेलों से लोगों को जोड़ना जैसे उद्देश्य शामिल है. साथ ही खेलों के माध्यम से विश्व-शांति और विकास के पहलुओं पर फ़ोकस करना भी इस विषय का उद्देश्य है.
हम इस बात को गर्व के साथ कह सकते हैं कि रेडियो शुरु से ही जीवन के अनेकानेक क्षेत्रों में हमारे लिए उपयोगी और लाभकारी रहा है तथा सभ्यता-संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान और कलाओं के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुए समाज के लिए वरदान साबित हुआ है.
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