चिठिया हो तो हर कोई बांचे.
( गोवर्धन यादव.)
चिठ्ठी-पत्री का जमाना बीते अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. एक समय वह था, जब हमें चिठ्ठियों का बड़ी बेसब्री से इन्तजार हुआ करता था. घर-परिवार से यदि हफ़्ता-पंद्रह दिन के भीतर कोई पत्र नहीं मिला, तो घबराहट बढ़ जाती थी. मन शंका-कुशंकाओं से भर उठता था. रह-रहकर उलटे-सीधे विचार मन में उठने लगते थे. हर हमेशा हमारी नजरें पोस्टमैन को आता देखने के लिए तरसने लगती थीं. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. जब से हमने संचार-क्रांति के युग में प्रवेश किया है, आज एक-दूसरे से जुड़ने के नये-नये उपकरण हमारे पास आ गए हैं. था वह कोई जमाना, जब कालिदास ने मेघदूत के माध्यम से यक्ष का संदेश उसकी प्रियतमा तक पहुँचाया था. अब जमाना ट्विटर का है, एसएमएस का है. पलक झपकते ही संदेशा दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में पहुँच जाता है..आज दुनिया मुठ्ठी में है. सुदूर देश में बैठा कोई बेटा, अब भारत के किसी गाँव में रह रहे अपने पिता से, ऐसे बात कर सकता है, जैसे सामने बैठा हो. विज्ञान का यह खेल किसी करिश्में से कम नहीं है. सदियों पुरानी कल्पनाओं को आज हम साकार होते देख रहे हैं.. पर इस “मिलन” में वह ऊष्मा है क्या, जो पांच पैसे के पोस्टकार्ड को हाथ में लेकर महसूस की जाती थी?. संवेदना की इस मीठी-सी छुअन का अहसास हाथों से फ़िसलते जाना, शायद मेरी पीढ़ी को हो,लेकिन अगली पीढ़ी को जिसने उस “छुअन” को कभी महसूस तक न किया हो, तो उसका अभाव उन्हें खलेगा भी कैसे? खले भले ही नहीं, पर वंचित तो जरुर रह जाएगी,इस अनुभव से.
घर के बाहर डाकिये की साइकिल की घंटी का बजना या फ़िर “चिठ्ठी आयी है” वाले तीन शब्दों का गूंजना,जाने कितनी-कितनी और कैसी-कैसी तरंगे मन में उठने लगती थीं. या फ़िर घर के मुंडेर पर बैठकर किसी कौवे की कांव-कांव करके संदेश दे जाना, कभी किसी कबूतर का संदेश देकर “उस पार” पहुंचाने का आग्रह करना,या फ़िर मेघदूत को दूत बनाकर संदेशा भेजना, ये कल्पनाएं ही भीतर ही भीतर भावनाओं का ज्वार उठा जाती थीं. यादों के अंबार लग जाया करते थे. अब ऐसा नहीं होता. पलक झपकते ही अनेक एसएमएस आपके स्क्रीन पर उभरने लगते हैं. पर पिता की हाथ की लिखी कोई चिठ्ठी का होना, या फ़िर मां के हाथ से लिखी चिठ्ठी का होना, कई-कई अहसासों को महसूसना होता था. चिठ्ठी मे लिखा हर एक अक्षर शरीर में ऊषमा भर जाता था. पर अब ऐसा नहीं होता. चिठ्ठी लिखना अब सपना बन कर रह गई है. अब शायद ही कोई भाग्यशाली मिलेगा, जिसे पत्र अब भी प्राप्त हो रहे हैं.
परम्परा की यह कल-कल कर बहती नदी सूखती जा रही है. यदि यह कहा जाए कि वह लगभग सूख चुकी है, ऐसा कहना शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
यक्ष संदेश
यक्ष संदेश
सन्तप्तानां त्वमसि शरणं तत्पयोद प्रियायाः...संदेशं में हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य....गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां....बाह्योद्दानस्थितहरश्चन्दिकाधौतहचन्द्रधौतमर्या...
हे मेघ ! तुम ताप से पीड़ितों की रक्षा करने वाले हो, इसलिए कुबेर के क्रोध से वियुक्त मेरा संदेश ले जाओ. तुम्हें यक्षेश्वरों के निवास स्थान अलका है जाना,,,,जहां महलों पर बरसती चांदनी और शिव ललाट पर स्थित है चंद्रमा
महाकवि सूरदास- उध्दव का गोपियों को पाती देना
पाती मधुवन ही तैं आई...सुन्दर स्याम आपु लिखी पठई, आइ सुनौ री माई / अपने-अपने गृह तैं दौरीं, लै पाती उर लाई / नैननि निरख निमेष न खंडित,प्रेम-तृषा न बुझाई / कहा करौं सूनौ यह गोकुल,हरि बिन कछु न सुहाई / सूरदास ब्रज कौन चूक तौं,स्याम सुरति बिसराई
मीराबाई और गोस्वामी तुलसीदास जी का पत्र-व्यवहार.
मीरा द्वारा तुलसीदास जी को लिखा पत्र
स्वस्ति श्री तुलसी गुन-भूषण दूषण हरण गोसाईं बारहीं बार प्रणाम करहुँ अब हरहु शोक-समुदाई घर के स्वजन हमारे जैसे सबन उपाधि बढ़ाई साधुसंग और भजन करत मोहिं देत कलेश महाई
सो तो अब छूटत नहिं क्यों है लगी लगन बरियाई बालपने में मीरौं कीन्ही गिरधरलाल मिताई मेरे मात तात सम तुम हो हरिभक्तन सुखदाई मोजो कहा उचित करिबो अब सो लिखिये समुझाई
तुलसीदास द्वारा मीरा को पत्र का उत्तर
जाके प्रिय न राम-बैदेही तजिये ताहि कोटि बैरी सम,जद्धपि परम सनेही तज्यो पिता प्रल्हाद बिभीषन बंधु, भरत महतारी बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी
नाते नेह रामके मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौ अंजन कहा आँखि जेहि फ़ूटै,बहुतक कहौ कहां लौं तुलसी सो सम भांति परम हित पूज्य मानते प्यारो
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो.
मेरे स्व.मित्र नईम की एक लंबी कविता का एक अंश...शीर्षक है-खतोकिताबत के मौसम फ़िर कब आएंगे?.साथ ही अन्य साहित्यकारों की कविताएं जो चिठ्ठी-पत्री को लेकर लिखी गई थीं.
(स्व.) नईम
चिठ्ठी-पत्री, खतोकिताबत के मौसम फ़िर कब आएंगे?.. रब्बा जाने, सही इबादत के मौसम फ़िर कब आएंगे?
अमृता प्रीतम
चांद सूरज दो दवातें कलम ने डोबा लिया लिखतम तमाम धरती पढ़तम तमाम धरती साईंसदानों दोस्तों ! गोलियों, बंदूकों,एटम बनाने से पहले इस खत को पढ़ लेना
गुलजार
बहुत दिन हो गए देखा नहीं ना खत मिला कोई बहुत दिन हो गये सच्ची तेरी आवाज के बौछार में भीगा नहीं हूं मै!
रघु यादव -
भैया अगले हफ़्ते आना, घर से चिठ्ठी आई है थोड़े से पैसे भिजवाना, घर से चिठ्ठी आई है. भाभी को उलटी आती है, मां की तबियत ठीक नहीं बापू का चश्मा बनवाना है, घर से चिठ्ठी आई है.
वीर सक्सेना
पत्र तुम्हारा मिला, एक भी अक्षर नहीं लिखा समझ गया मैं, जीवन में कितना सूनापन है.
स्व.गोविन्दसिंह असिवाल-(पोस्ट्मास्टर)
कश्ती चिठ्ठियां ! आवागमन महंगा बहुत है सिर्फ़ सस्ती चिठ्ठियां ! इन्द्रधनुषी पुल सरीखी ये व्यवस्था है निरन्तर तितलियों के झुंड जैसी ये बसन्ती चिठ्ठियां !
शिव डोयले
बीन-बीन कर देख रहा हूं...
डाल से टूटा..एक-एक पत्ता,
तुमने कहीं पतझड़ के बहाने,
मुझे प्यार भरा खत तो नहीं लिखा.
सुधीर सक्सेना-
चिठ्ठियां बांट लो..तो बताना रामप्रसाद, इस बार कित्ती चिठ्ठियां बैरंग लौटीं, कितनों के घर मनीआर्डर आना बंद हुए, कहां आग लग गई, कहां गोली चल गई?
डा.सविता मिश्र
न जाने कब चली जाती है चांदनी,चांद के पास चुपके से / और छत की मुडंरी पर कूक उठती है चिरैया / तब भींगी-भीगीं सी छत पर, बहुत अच्छा लगता है मुझे / भोर के उजास में तुम्हारा खत पढ़ना,
निरंजन श्रोत्रिय
अब जबकि हम खत लिखना भूल रहे हैं / डाकिये की साइकिल चल रही, तने हुए तारों पर / हम भले न करे प्रतीक्षा उसकी / हमारे बच्चे याद कर रहे हैं निबंध उस पर / हम खुश हैं खिलखिला रहे हैं / डाकिया भी हंस रहा होगा इस वक्त?
सीएल.चौरसिया “तुष्यम”
परिचित है वह हर मौसम के मिजाज, गीले सूखे ठंडॆ दिन दोपहरी तपते में / सबकी आशा भावनाओं का तूफ़ान / और लिए थैले में सागर का वह शख्स फ़िर रहा / फ़िर रहा बाटता डाक
गोवर्धन यादव.- (लंबी कविता) कबूतर के माध्यम से पत्र का भेजा जाना)
जा उड़ जा रे उस ओर
जहाँ मेरे सांवरिया रहते हैं
जो हरदम मेरे उर में बसते हैं
लेकर ये छोटा सा सन्देश
कि बिना तुम्हारे लगता
जीवन सूना-सूना......
आ मैं तुमको उनकी पहचान बताऊँ
सांवरी-सांवरी सी सूरत होगी
ख्यालों में डूबे-डूबे से होंगे
कुछ खोये-खोये से रहते होंगे
रो-रोकर ये अंखियाँ
न जाने कितनी लाचार हुई हैं
अरमां कितने लाचार हुये है
रंगमहल बन गया धूसर कटिंला
हा-तुझको ये कैसे बतलाऊं ये माना तुम शांति के परिचायक हो
एक काम मेरा छोटा- सा ये करना
मन के मीत अगर मिल जाये,तो कहना
बिना तुम्हारे लगता ये जीवन सूना-सूना
कल तक मैने जो स्वप्न संजोये थे
निस दिन मुझसे पूछा करते हैं
दिल नहीं कहता,पर मन का सन्देह
दूर जाकर क्या वे मुझको भूल गये होंगे
या उनको भी मेरी सुधि आती होगी
" जीवन- मरण" का प्रश्न होगा
जो तुम लेकर आओगे सन्देश
बस पाने को एक छोटी सी पाती
बैठी रहूँगी,राहों में अखियाँ छाती
काकेशियन कवि-काइसिन कुलीव.
तुमसे भरा नहीं गया अपनी नोट-बुक से फ़ाड़ा गया एक नन्हा सा पन्ना भी जब मैं, तुम्हें खुद लिखने बैठा हूं जगह कभी पूरी नहीं पड़ती इसलिए मैं अपने खत को खत्म करता हूं एक ऊष्मा भरे चुंबन से जो डाक-टिकट के नीचे छिपा होता है.
पत्रों की अपनी एक रंगीन दुनिया रही है. ये एक किस्म की बेकरारी है. करार तब ही आता है, जब कोई आत्मीय संदेश लंबे इंतजार के बाद आप तक पहुँचता है. इन संदेशों को भेजने के लिए, सिर्फ़ और सिर्फ़ एक गर्मजोश दिल चाहिए. पत्रों का आदान-प्रदान सिर्फ़ प्रेमी और प्रेमिका के बीच ही हो, यह जरुरी नहीं है. मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरु द्वारा लिखी गईं चिठ्ठियां, महान साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,गोर्की की चिठ्ठी तोल्स्योय के नाम, विवेकानंद द्वारा युवाओं को लिखे पत्र, डार्विन के पत्र, बोनापार्ट के पत्र, बहादुरशाह जफ़र की चिठ्ठियाँ, लिंकन का अपने बेटे के अध्यापक को पत्र, संदेश भी था और समग्र शिक्षा-समाज के लिए आज तक काम में आने वाला आदर्श भी था. एक व्यक्ति जब दूसरे को पत्र लिखता है तो वह पत्र मुख्यतः एक ही व्यक्ति के लिए होता है, लेकिन जब एक बुद्धपुरुष दूसरे व्यक्ति को पत्र लिखता है, तो वह संदेश केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं, पूरे जगत के लिए होता है. स्वतंत्रता संग्राम के समय में भी पत्रों का व्यवहार क्रांतिकारियों के बीच होता था. वे एक दूसरे का हौसला बढ़ाते और कार्ययोजनाएं बनाया करते थे. ऐसे अनेक पत्र संग्रहालयों में करीने से एकत्रित कर सुरक्षित रखे गए हैं. इन महापुरुषों द्वारा लिखे गए पत्र, आज एक बेशकीमती धरोहर बन गए हैं. इन पत्रों से उनके उस समय की परिस्थितियों और उनके व्यक्तित्वों के अंतरद्वंद्व का पता चलता है.. दिलचस्प यह है कि जो कामनाएं होती हैं. वे मानवीय बेचैनियों के साझे का साया होती है. ये लंबे एकालाप हो सकते हैं और अकेलेपन से लड़ने का शस्त्र भी.
पत्रों की उड़ान सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं रही. फ़िल्मकारों ने भी समय-समय पर चिठ्ठी-पत्री के गीतों को अपनी फ़िल्मों में विशिष्ठ जगह दीं. कलम के धनी साहित्यकारों ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे. इन गीतों को सुनकर आप एक ऐसी दुनियां में पहुंच जाते हैं,जहाँ कल्पनाएं अपने पंख फ़ैलाए, आपको एक अद्भुत संसार में ले जाती है. ये गीत कानों के माध्यम से आपकी आत्मा तक जा पहुंचते हैं. कुछ गीत तो ऐसे भी बन पड़े हैं कि जिन्हें सुनते ही आपकी आँखों से सावन-भादों बरसने लगते हैं. यहाँ कुछ गीतों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा.
फ़िल्म कन्यादान मे एक गीत है जिसके रचीयता हैं गीतकार नीरज.. वे लिखते है...लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में हजारों रंग के. सुबह जो हुई तो फ़ूल बन गए, रात जो आयी तो सितारे बन गए....धरती से चांद-सितारों तक ले जाने वाले इस गीत को सुनकर, सुन्दर-सुन्दर कल्पनाएं मन में उठने लगती है. फ़िल्म संगम का एक गीत है- ये मेरा प्रेम-पत्र पढ़कर तुम नाराज न होना. फ़िल्म मौसमी में एक चुलबुली लड़की कहती है—हाय-हाय ये लड़का मुझको खत लिखता है. बेखुदी का एक गीत-खत में तेरा नाम लिखा. अपने प्यार का इजहार करने को एक युवती खत लिखती है और उसे एक कबूतर को चिठ्ठी देते हुए कहती है..जा..जा.जा कबूतर जा..... वियोग में तड़पती एक प्रेमिका अपने प्रेमी को याद करते हुए गाती है..चिठ्ठी न कोई संदेश...न जाने वह कौन सा देश..पिया तुम चले गए?..अपने प्रियतम को परदेश जाता देख प्रेमिका कह उठती है...जाते जो परदेश पिया...जाते ही खत लिखना..
इक्कीसवीं सदी में युवा पत्र लेखन की कला को भूल रहे हैं. पत्र लेखन ही नहीं, बल्कि सुंदर, घुमावदार और स्पष्ट अक्षर लिखने की कला हमें आज से सत्तर साल पहले मिली थी. अगर जरा सी भी अक्षरों में लापरवाही होती तो हथेली पर छड़ी बरसने लगती थी. कभी पिटाई भी हो जाया करती थी.
अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है. बस मन में ठान लीजिए. कलम उठाइए, गहरी सांस लीजिए और बस लिखना शुरु कर दीजिए. एक वाक्य लीखिए, उसके बाद एक और फ़िर एक और...... प्यार, गुस्सा, भ्रम जो भी आपके मन में है उसे कागज पर उतरने दीजिए. पर लिखिए जरुर...याद रखें... वाट्सप पर भेजे गए संदेशों का जीवन क्षण-भंगुर होता है, पलक झपकते ही पानी के बुलबुले-सा ओझल हो जायेगा, लेकिन लिखा गया पत्र, बरसों-बरस बीत जाने के बाद भी आप उसे पढ़ सकेंगे. कोई पढ़े न पढ़े, लेकिन जब भी आप उसे उठाकर पढ़ेंगे, द्विगुणित आनन्द से सराबोर हो उठेंगे और शायद यह भी कह उठेंगे..यार.....वे भी क्या दिन थे?.
103, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001
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