भारत सरकार इस बार 22 मई,1772 को बंगाल के वैष्णव परिवार में जन्मे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय प्रेस के जनक, भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत और आधुनिक भारत के निर्माता राजा राममोहन राय की २५०वीं जयन्ती बड़े ही धूम धाम से मनाने जा रही है। इस अवसर को और यादगार बनाने के उद्देश्य से बंगाल के हुबली जिले में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू २५० रुपये मूल्यवर्ग का एक स्मारक सिक्का भी जारी करेंगे।
जैसा आप सभी को ज्ञात ही होगा राममोहन राय जी को मुगल शासक बादशाह अकबर द्वितीय ने "राजा" की उपाधि दी थी।इन्हें संस्कृत, बंगाली,गुरुमुखी भाषा का तो ज्ञान था लेकिन वर्ण व्यवस्था विरोध के साथ ईसाई धर्म व मिशनरियों के कार्यों की आलोचना वगैरह से नाराज मद्रास के राजकीय कॉलेज के प्रधानाध्यापक शंकरशास्त्री ने जब इनके धार्मिक विचारों से असहमति जता इन्हें शास्त्रार्थ के लिए ललकारा तब इनको अरबी, फारसी, अंग्रेजी, हिब्रू भाषा वगैरह का वृहद ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक लगा।इसलिये शास्त्रार्थ में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से पहले तो ये भाषायें सीखीं फिर बाईबल का भी वृहद अध्ययन करने के पश्चात शास्त्रार्थ में सफलता प्राप्त कर काफी नाम व यश कमाया।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मूर्तिपूजा का विरोध प्रगट करने के उद्देश्य को ध्यान में रख इन्होंने मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही एक पुस्तक प्रकाशित कर जनता को समर्पित कर दी।इसके बाद वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध भी एक पुस्तक लिखी थी।अपने शुरुआती समय में इन्होंने उस समय की कुछ नामी-गरामी पत्रिकाओं में काम भी किया था और उस दौरान इन्होंने अंग्रेजों की बर्बरता के खिलाफ लेख लिख अपना विरोध सार्वजनिक तौर पर प्रकट करने में पीछे नहीं रहे। इस तरह इन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ऐसी नींव रखी जो आज भी समाज में अलख जगाने में बडी ही काम आ रही है।
कुछ समय पश्चात जब इन्हें ईस्ट इण्डिया कम्पनी में नौकरी मिल गयी तब वहाँ भी नौकरी करते हुए कभी भी अपने स्वाभिमान, अस्मिता और निडरता से समझौता नहीं किया। उदाहरणार्थ आपको बताता हूँ वह घटना जिसमें भागलपुर के अंग्रेज कलेक्टर सर फ्रेडरिक हैमिल्टन ने इनके साथ बदतमीजी की तब इन्होंने गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो को विस्तार से पूरी घटना बता केवल लिखीत शिकायत ही दर्ज नहीं करायी बल्कि ये तभी संतुष्ट हुये जब गवर्नर जनरल ने कलेक्टर को कड़ी फटकार तो लगायी ही साथ में उनके किए की माकूल सजा भी दी ।
राजा राममोहन राय ने अपने जीवन काल में अनेकों धार्मिक सुधारों के अलावा नारी जाति को अनमेल विवाह, बहुविवाह, सती प्रथा,वेश्यागमन, जातिवाद, अस्पृश्यता आदि जैसे कुरीतियों से मुक्ति दिलाने का यथासम्भव प्रयास किया। आपको यह जानना भी आवश्यक है कि उस समय समुद्र पार कर विदेश जाना एक धार्मिक अपराध माना जाता था लेकिन इन्होंने उस दकियानूसी मान्यता की अनदेखी कर विदेश जाकर उस रुढिवादी परम्परा को समाप्त करने में अग्रणी भूमिका निभाई। इन्हीं सब कारणों के चलते सभी का मानना है कि इनके द्वारा उस समय से चालू की गयी जागरूकता का ही परिणाम है कि आज हम इन सबसे मुक्त हो पाये हैं।
राजा राममोहन राय ने उस समय ही कृषि सुधार जिसमें लगान कम करना वगैरह के साथ प्रशासनिक व्यय कम करने पर सभी को एकजुट राय बना, कार्यान्वित करवाने में एक महती भूमिका निभाई।उपरोक्त जैसे और भी अनेक कारण है जिसके चलते अनेक इतिहासकारों ने इनको न केवल "बंगाल पुनर्जागरण का पिता" बल्कि भारत में सही मायने में सुधारवाद का प्रथम प्रवर्तक कहा है।इसी क्रम में आपसभी को बता दूँ कि राष्ट्रगुरु सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने इनको 'भारत में सांविधानिक आन्दोलन का जनक' बताया जबकि नोबेल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इनको इस शताब्दी का महान पथ निर्माता घोषित किया था।
निष्कर्ष में मुझे यह लिखने में किसी तरह का संकोच नहीं है कि राजा राममोहन राय द्वारा मानवता के लिये किये गये कार्यों के कारण हम सभी भारतवासी उनके हमेशा हमेशा के लिये ऋणी रहेंगे।
गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी,भारतीय आदर्श विद्या मंदिर के सामने,बीकानेर
7976870397 / 9829129011[W]
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY