भारत माँ के अमर दुलारे : चन्द्रशेखर आजाद - जो हमेशा आजाद ही रहे
भारत राष्ट्र को स्वतन्त्रता दिलाने हेतु प्राण निछावर करने वाले स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजादजी, जिनका बचपन का नाम चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी था, के बारे में जितना भी लिखा जाय कम पड़ेगा। ये एक ऐसे सेनानी थे जो अंग्रजों के हाथों कभी भी जीवित गिरफ्तार न होने की अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहे और इसी के चलते वे न केवल पूरे विश्व में विख्यात हुये बल्कि उनका नाम भारत के स्वतंत्रता इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया । अब प्रस्तुत है इन्ही से सम्बन्धित कुछ वाकये -
- इनको इनकी माताजी ने संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने हेतु काशी विद्यापीठ भेजा लेकिन वहाँ वे इस तरह राष्ट्रवाद से परिचित हुये कि गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गये ।
- 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर इनको अंग्रेजी हुकूमत ने हिरासत में ले जब जज के सामने प्रस्तुत किया तब इन्होनें जज द्वारा अपना नाम व पिता का नाम पूछने पर “मेरा नाम आज़ाद है, मेरा पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है” जबाब दे न केवल अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया बल्कि पूरे विश्व को यह भी बता दिया कि इनमें राष्ट्रभक्ति की भावना कितनी कूट कूट कर भरी है।
- उपरोक्त घटना के बाद से ही पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारी या यों कहें कि सभी क्रान्तिकारी इन्हें चन्द्रशेखरआजाद के नाम से पुकारना शुरू कर दिया और कालान्तर में ये चन्द्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गये ।
- इन लोगों के विचारधारा में बदलाव जब आया तब 1922 में अचानक गाँधीजी ने चौरा-चौरी घटना के बाद असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। इस बदलाव के कारण इन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये।उसके बाद ये अन्य क्रांन्तिकारियों को लेकर हथियार खरीदने के वास्ते सरकारी खजानों को लूटना शुरूकर दिया।
- हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन से जुड़ने का ही परिणाम था कि ये अन्य साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हथियार खरीदने के वास्ते सरकारी खजानों को लूटना शुरूकर दिया।
- हथियार खरीदने के उद्देश्य के चलते ही ये ऐतिहासिक काकोरी काण्ड को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अंजाम दे फरार हो गये थे।
- फरार होने के पश्चात ये झांसी के पास एक मंदिर में साधु का वेश में रहने लगे । लेकिन जब पुलिस ने वहाँ छापा डाला तब ये स्त्री का वेश बनाकर अंग्रजों की पुलिस को गच्चा देने में कामयाब रहे|
- लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये इन्होंने लाहौर में अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली से उड़ाने के बाद लाहौर की दिवारों पर, लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया लिख जगह जगह परचे चिपकाये।
-27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घिर जाने जाने के बावजूद इन्होनें 20 मिनट तक अकेले ही अपने बमतुल बुखारा ( आजाद की पिस्तौल का नाम ) की सहायता से मोर्चा संभाल अपने साथियों को सुरक्षित बाहर निकाल पाने में सफल हो गये। इसके बाद जब इनके पास मात्र एक गोली ही बची तब अंग्रजों के हाथों कभी भी जीवित गिरफ्तार न होने की अपने संकल्प पर अडिग रहते हुये स्वयं को गोली मार हमेशा के लिए आजाद कर लिया।
- यहाँ रोचक बात यह है कि इस अंतिम लड़ाई में इन्होंने पूरी पुलिस टीम को इस तरह भयभीत कर दिया था जिसके चलते पुलिस वाले उनके पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। काफी देर बाद जब आजादजी की तरफ से गोली नहीं चली तब हिम्मत जुटा पूरी सावधानी बरतते हुये वे आगे बढ़े और जैसे ही उन सबकी नजर आजादजी के मृत शरीर पर पड़ी तब उन सभी ने चैन की साँस ली ।
- जैसा आप सभी जानते ही होंगे वही इलाहाबाद वाला अल्फ्रेड पार्क अब चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है।
- कहते हैं कि आजाद ने केवल एक ही कविता लिखी थी और वह अक्सर उसे गुनगुनाया करते थे- "दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।"
चन्द्रशेखर आजादजी अपने आप में एक आंदोलन थे, उनका देश के प्रति निष्ठा ,समर्पण बिल्कुल निःस्वार्थ रहा। यही कारण है कि वे आज भी देश के युवाओं को प्रभावित और प्रेरित करते हैं। भले ही वे अंग्रेजों को भारत से भगा नहीं पाये लेकिन उनके बलिदान ने लाखों नवयुवकों को आजादी के आंदोलन में उतार दिया । यही कारण है कि उन्हें देशभक्ति का प्रतीक मान आज भी हम सभी उनका नाम बड़े ही आदर व सम्मान से लेते हैं ।इस तरह आज भी वे हम सभी भारतीयों के दिलों में जिन्दा हैं।
अन्त में मैं अब भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले भारत माता के राजदुलारे अमर शहीद, महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजादजी को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन करता हूँ !
गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी,बीकानेर7976870397 / 9829129011
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