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जूठे घमण्ड से बचें

 

जूठे घमण्ड से बचें

सबसे पहले आज, भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक रहे स्वामी विवेकानन्द जी के प्रेरणापुंज एवं  माता कालीजी के अनन्य उपासक, मानवता के पुजारी, महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक  श्री रामकृष्ण परमहंसजी  को उनकी पुण्य तिथि पर शत-शत नमन। परमहंसजी की साधना करने का एक अपना अलग ही अंदाज रहा है । उसी साधना का ही परिणाम यह रहा कि उन्होनें अपने निष्कर्ष के आधार पर बता दिया कि  संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।इसलिये जो लोग घमंड करते हैं उनका सारा ज्ञान व्यर्थ है, इस बुराई की वजह से सबकुछ खत्म हो सकता है।अब मैं इसी तथ्य से सम्बन्धित एक प्रेरक कथा आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जो इस प्रकार है -- 


एक बार जोरदार ठंड के मौसम में श्री रामकृष्ण परमहंसजी किसी संत के साथ बैठे हुए धर्म और अध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे। चर्चा करते करते संध्या हो गयी जिसके चलते ठंड कुछ तेज हो गयी। चूँकि दोनों संत धर्म और अध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे इसलिये वे उस चर्चा को बीच में ही रोकना नहीं चाहते थे। इस कारण से जिस संत के यहाँ बैठे थे उन्होनें ठंड से बचने के लिए कुछ लकड़ियां इकट्ठा कर धूनी जला दी। इनसे कुछ दूर एक गरीब व्यक्ति भी बैठा हुआ इन्हें निहार रहा था। ठंड तो उसे भी लग रही थी। इसलिये उसने भी इनकी देखा देखी कुछ लकड़ियां एकत्रित कर लीं। लेकिन उसके पास लकड़ी जलाने के लिए कोई साधन तो था नहीं और उसे अब आग की जरूरत थी। इसलिये उसने बिना कुछ विचार किये तुरंत ही दोनों संतों के पास पहुँच धूनी से जलती हुई लकड़ी का एक टुकड़ा उठा लिया।
अब जैसे ही उस व्यक्ति ने संत द्वारा जलाई गई धूनी को छूआ तो संत को गुस्सा आ गया और वे उसे मारने लगे। संत ने कहा कि तू पूजा-पाठ नहीं करता है, भगवान का ध्यान नहीं करता, तेरी हिम्मत कैसे हुई, तूने मेरे द्वारा जलाई गई धूनी को कैसे छू लिया।
रामकृष्ण परमहंस यह सब कृत्य देख अपने स्वभाव अनुसार अपनी चिर परिचित मुस्कुराहट को रोक नहीं पा रहे थे और उधर जब संत ने परमहंसजी को प्रसन्न देखा तो उनका गुस्सा कम होने की बजाय और बढ़ गया। उन्होंने परमहंसजी से कहा, ‘आप इतना प्रसन्न क्यों हैं ? ये व्यक्ति अपवित्र है, इसने गंदे हाथों से मेरे द्वारा जलाई गई अग्नि को छू लिया है तो क्या मुझे गुस्सा नहीं होना चाहिए ?’
परमहंसजी ने कहा, ‘मुझे नहीं मालूम था कि कोई चीज छूने से अपवित्र हो जाती है। अभी आप ही कह रहे थे कि ये सभी इंसानों में परमात्मा का वास है। और थोड़ी ही देर बाद आप ये बात खुद ही भूल गए।’ उन्होंने आगे कहा, ‘दरअसल इसमें आपकी गलती नहीं है। आपका शत्रु आपके अंदर ही है, वह है अहंकार। घमंड की वजह से हमारा सारा ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। इस बुराई पर काबू पाना बहुत मुश्किल है।’
इस तरह एक छोटी सी घटना के माध्यम से ही उन्होनें संसार को जता दिया कि जो लोग घमंड करते हैं, उनके दूसरे सभी गुणों का महत्व खत्म हो जाता है। इस बुराई की वजह से सब कुछ बर्बाद हो सकता है। इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि अहंकार से बचने की हमेशा चेष्टा करते रहने में ही अपनी भलाई रहेगी ।
गोवर्धन दास बिन्नानी "राजा बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी , बीकानेर9829129011 / 7976870397

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