मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम
हमारे सनातन धर्मानुसार मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम को भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना गया है। जिन्होंने त्रेतायुग में पृथ्वी पर, भगवान शिवजी के उपासक राक्षसी प्रवृत्ति वाला लंकाधिपति रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये [संहार हेतु ] चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्यापति दशरथजी के यहाँ जन्म लिया था।
प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने कभी भी, कहीं भी भूलकर भी जीवन में किसी भी रूप में मर्यादा का उल्लंघन किया ही नहीं। उनके मुख पर कभी भी क्यों' शब्द आया ही नहीं बल्कि वे खुशी खुशी माता-पिता और गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए हम सभी के समक्ष एक उदाहरण पेश किये हुये हैं अर्थात उन्होंने एक आदर्श पुत्र कहिये या शिष्य के अलावा भाई,पति,पिता व राजा की ऐसी आदर्श भूमिका निभाई जो एक मिसाल के रूप में दर्ज है।
जैसा आप सभी जानते हैं माता शबरी के झूठे बेर खा उन्हें नवधा भक्ति प्रदान की थी। इसी प्रकार केवट की भक्ति भाव से प्रसन्न हो उसे गंगा पार करवाने के बदले भवसागर से ही पार लगा दिया। यह सर्वविदित है कि प्रभु श्रीराम चाहते तो मात्र एक बाण से सागर को सुखा सकते थे लेकिन विनय भाव से सागर से मार्ग की न केवल विनती की बल्कि उनकी सलाहनुसार सेतु निर्माण की व्यवस्था की।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि सद्गुणों से सम्पन्न प्रभुश्रीराम असामान्य होते हुये भी हम सभी के बीच आम ही बने रह कर एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसके चलते ही आज भी हम सभी बड़े ही गर्व से उनके आदर्श "रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाय पर वचन न जाय" को उद्धृत करते नहीं थकते।
अभी कुछ दिन पहले ही उज्जैन में, गौरव दिवस कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी गीतकार और पटकथा लेखक मनोज मुंतशिर ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुये जब यह कहा कि अगर प्रेम की निशानी देखनी है तो उस पुल को देखिए जिसे प्रभु श्री राम ने अपनी प्राणप्रिय सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए समुंदर के बीच में बना दिया था। तब वहाँ उपस्थित सभी ने करतल ध्वनि से सहमति जताई।
यहाँ एक रोचक जानकारी आपको बताऊँ कि ११ दिसंबर, २०१७ को, अमरीका के साइंस चैनल ने बताया की भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाले पत्थर के पुल 'रामसेतु' के पत्थर और रेत पर किए गए परीक्षण से ऐसा लगता है कि पुल बनाने वाले पत्थरों को बाहर से लेकर आए थे और 30 मील से ज़्यादा लंबा ये पुल मानव निर्मित है। और यही तथ्य वाल्मीकि रामायण में विस्तार से बताते हुये लिखा गया है कि लंका पर चढ़ाई करते समय भगवान श्रीराम के कहने पर वानरों और भालुओं ने रामसेतु का निर्माण किया था ।
अब रामसेतु से जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खंड में मिलता है। हम सभी प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं उसी को पुष्ट करता इस रोचक वृत्तांत से वह अंश आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ जिसके अनुसार अयोध्या की गद्दी सम्भालने के बाद जब वे लंका के अधिपति विभीषण का हाल जानने के लिये भाई भरत व सुग्रीव के साथ लंका पहुँच, तीन दिन रुक, विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान दिया ।अयोध्या वापसी के लिये भाई भरतजी को जब इशारा किया, उसी समय लंकाधिपती विभीषण ने एक शंका जताते हुये प्रभु श्री राम से जानना चाहा कि जब इस सेतु (पुल) मार्ग से मानव यहाँ आकर मुझे सतायेंगे, उस परिस्थति में उनको कैसे संभालना है ? इतना सुनते ही बिना विलम्ब किये प्रभु श्री राम ने अपने बाणों से उस सेतु के तीन टुकड़े ही नहीं कर दिये बल्कि तीन भाग करने के पश्चात बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया।
उपरोक्त वर्णित सभी तथ्यों का निचोड यही है कि यदि वर्तमान समय में हम इन आदर्शों को अपना लेते हैं तो हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकने में आसानी से कामयाब हो सकते हैं।
गोवेर्धन दास बिन्नाणी "राजा बाबू"
जय नारायण ब्यास कॉलोनी
बीकानेर
7976870397 / 9829129011[W]
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY