Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सर्वसिद्धि दायक पर्व बसन्त-पञ्चमी

 


श्रीमद्भागवत-गीता में प्रभु श्रीकृष्णजी ने स्वयं को " ऋतुनाम् कुसुमाकर: "  कहकर बसंत ऋतु की श्रेष्ठता प्रतिष्ठित की है। और जैसा हम सभी जानते हैं कि पतझड़ पश्चात बसन्त ऋतु में माघ शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के अलावा श्रीपंचमी या ज्ञान पंचमी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन को ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। इसलिये इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा बड़े ही उल्लास व उमंग के साथ की जाती है। मुझे भी बाल्यकाल में, माँ सरस्वतीजी की नित्य उपासना हेतु एक निम्न स्तुति बतायी गयी थी, जिसे मैं आज भी बिना भूले प्रतिदिन करता हूँ -


यया विना जगत्सर्वम्, शाश्वतजीवनं मृतं भवेत्। ज्ञानाधि देवी या तस्यै, सरस्वत्यै नमो नम:।।
यया विना जगत्सर्वं, मुकमुन्वत् यत् सदा। वागाधिष्ठात्री या देवी, तस्यै वाण्यै नमो नम:।।
सरस्वती महाभागे, विद्ये कमललोचने। विश्वरूपे विशालाक्षी, विद्यां देहि नमोऽस्तुते ।।

आप सभी के ध्याननार्थ बता दूँ कि विश्व प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक मैक्स मूलर ने लिखा है - " विश्व की पुस्तकालयों में प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद है। इसी ऋग्वेद में उल्लेख है -" सरस्वतीं देवयन्तो हवन्ते " अर्थात् देव-पद के अभिलाषी सरस्वती का आह्वान करते हैं। 

पुराणों के अनुसार सरस्वतीजी से सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसके कारण ही उन्हें सरस्वती कहा जाता है अर्थात माता सरस्वतीजी को ज्ञान की देवी माना जाता है। इसलिये ब्रह्माविष्णुमहेश तीनों ही सरस्वतीजी को पूजते हैं। प्रबुद्ध पाठक जानते ही होंगे हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में से एक देवी-भागवत में भी सरस्वतीजी के बारे में विस्तार से बताया गया है - 

आदौ सरस्वती पूजा कृष्णेन विनिर्मिता।

यत्प्रसादान्मुनि श्रेष्ठ मूर्खो भवति पंडित:।।
अर्थ – श्री कृष्ण ने सबसे पहले माता सरस्वती के महत्व का वर्णन किया और कहा कि उनकी पूजा अवश्य की जानी चाहिए जिसकी कृपा से मूर्ख भी विद्वान हो जाता है ।
माँ शारदे की अभ्यर्थना करने पर विद्या, ज्ञान, विवेक, बुद्धि की प्राप्ति होती है।इसलिये यह तो आप सभी को मानना ही होगा कि विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। इसी तथ्य को प्रमाणित करने के लिये एक ऐतिहासिक सत्य घटना आप सभी के साथ साँझा कर रहा हूँ ।जो इस प्रकार है – 
"हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" जिन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दियापर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुएतो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी दोनों आंखें फोड़ दीं।
यह समाचार जानने के बाद राजकवि चन्द बरदाई हिन्दशिरोमणि से मिलने काबुल कैदखाने पहूँच, जब उनको दयनीय हालत में देखा तो उनके कोमल हृदय को गहरा आघात लगा और उसी वक्त  उन्होंने गौरी से बदला लेने की योजना बना डाली 
उसी योजनानुसार चंद्रवरदाई ने गौरी को अपने प्रतापी सम्राट हिन्दशिरोमणि की एक विलक्षण विद्या  शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध ) के बारे में  बताते हुये आग्रह किया कि यदि आप चाहें, तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।
 इस अनोखी विद्या के अवलोकनार्थ गौरी तुरन्त ही तैयार हो गया और उसने आनन फानन में अपने राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित कर दिया 
निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। 
चूँकि हिन्दशिरोमणि और राजकवि ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी इसलिये चंद्रवरदाई ने मोहम्मद गौरी से लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवा देने का आग्रह किया तब गौरी ने राजकवि के निर्देशानुसार ही वे तवे लगवा दिये। इसके बाद दोनों आँखों से अन्धे पृथ्वीराजजी को कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।

इसके बाद राजकवि चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराजजी के वीर गाथाओं का बखान करते हुए गौरी के बैठने के स्थान को चिन्हित करते हुये यानि पृथ्वीराज को अवगत करवाने हेतु निम्न बिरूदावली गायी -

‘‘चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’
अर्थात् चार बांस, चौबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो। इस तरह पृथ्वीराजजी को मोहम्मद गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन करवा उन्होनें मोहम्मद गौरी कि ओर मुखातिब होकर निवेदिन किया कि मेरे प्रतापी सम्राट आज यहाँ आपके बंदी की हैसियत से उपस्थित हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही ये आपकी आज्ञा प्राप्त कर, अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। 
इस पर ज्यों ही मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराजजी को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया , पृथ्वीराजजी  को गौरी किस दिशा में बैठा है, ज्ञात हो गया और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।

बाण लगते ही गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे धड़ाम से आ गिरा और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। उसके बाद चारों और भगदड़ और हा-हाकार तो मचना ही था सो मचना शुरू हो गया और इसी सब का फायदा उठाते हुये हिन्दशिरोमणि प्रतापी सम्राट पृथ्वीराजजी और राजकवि चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजनानुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण न्योछावर कर दिये।
आप सभी के ध्याननार्थ बता दूँ कि "यह आत्मबलिदान वाली घटना भी 1192 ई. को बसन्त -  पञ्चमी वाले दिन ही हुई थी।"

उपरोक्त घटना से यह तो स्पष्ट हो गया कि विद्वान व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। साथ ही साथ यह भी स्पष्ट है कि बसन्त पंचमी वाला समय ज्ञानवान बनने के लिये संकल्पित होने का अवसर प्रदान करता है।
 
चूँकि आजकल बसन्त पञ्चमी वाले दिन अनेकों जगह अनेकों प्रकार के आयोजन होने लग गये हैं इसलिये आप उमंग व उल्लास के साथ आयोजित होने वाले इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपना हुनर प्रदर्शित करने के अवसर का लाभ अवश्य उठायें ।

गोवर्धन दास बिन्नाणी "राजा  बाबू"जय नारायण व्यास कॉलोनी,बीकानेर7976870397 / 9829129011

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ