Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विद्यार्थी जीवन में मौज-मस्ती

 
 विद्यार्थी जीवन में मौज-मस्ती भी की, नाम भी खूब कमाया

 मेरा विद्यार्थी जीवन गणेश चतुर्थी से शुरू हुआ था । जैसा धुंधला सा  याद आता है उस दिन माताजी, जो बालक कि प्रथन गुरु होती है, ने सर्वप्रथम प्रभु श्रीगणेशजी की पूजा करायी और उसके बाद मेरी पाटी [स्लेट ] की पूजा ही नहीं करवायी बल्कि बरते [जिससे स्लेट पर लिखा जा सकता है ] से पाटी पर मेरा हाथ पकड़ एक अक्षर लिखवाया । उसी समय मारजा (शिक्षक) आ गये और उनके साथ उनके विद्यालय गया। इस तरह विद्यार्थी जीवन की शुरूआती पढ़ाई मारजा (शिक्षक) के स्कूल में हुयी । हाँ मारजा,  हम सभी विद्यार्थीयों को निम्न श्लोक अर्थ सहित अनेकों बार खूब बढ़िया ढंग से समझाया, जिसका लाभ मुझे तो पूरे विद्दार्थी जीवन में मिला - 

काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च । अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥

इसके अलावा मारजा ने हम सभी को पहाड़ा, जो गणित का एक अहम् हिस्सा होता है खूब बढ़िया ढंग से कंठस्थ करवा दिया और उसी का परिणाम है कि आज हम उसकी महत्ता का बखान कर पा रहे हैं। 

इसके बाद जब मुझे कक्षा चार के लिये उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में  दाखिला कराया गया जहाँ उस समय 11वीं में बोर्ड की परीक्षा तक पढ़ाई होती थी। लेकिन उस विद्यालय में जब आठवीं के बाद विज्ञान , वाणिज्य या कला संकाय में से एक को चुनने का समय आया तब वहाँ वाले प्रधानाध्यापक जी ने आठवीं में गणित वाले अच्छे परिणाम स्वरूप, मेरे बड़े भाई को समझा कर विज्ञान संकाय में मेरा दाखिला का आवेदन ले लिया। परन्तु कुछ महीनों के बाद  विज्ञान संकाय वाली बात जब मेरे पिताजी के  ध्यान में आयी तब उन्होनें स्पष्ट कह दिया कि विज्ञान अपने काम का नहीं है इसलिये वाणिज्य संकाय में बदल लो । इसी समय बड़े भाई ने हिम्मत जुटा कर नम्रतापूर्वक पिताजी को बता  दिया कि  इस विद्दालय में तो अब कैसे सम्भव होगा।तब पिताजी ने  दूसरे विद्दालय का नाम लेकर कहा कि वहाँ मैं दाखिला करवा दूँगा।और उन्होंने बहुत ही आसानी से करवा भी दिया क्योंकि उस विद्दालय के प्रधानाध्यापक उनके दोस्त थे और उस विद्दालय की भी गणना सबसे अच्छे विद्यालयों में होती थी । 

इस तरह वाणिज्य संकाय से मैनें 11वीं में बोर्ड परीक्षा बहुत ही बढ़िया नम्बरों से पास कर जब कॉलेज में दाखिला लेने पहुँचा तब कॉलेज प्राचार्य के कमरे के बाहर लम्बी कतार देख, सोच ही रहा था तभी भीतर बैठे प्राचार्य महोदय ने मुझे देख अन्दर आने का इशारा किया और अन्दर पहुचनें पर  मुझसे अंकपत्र माँग उसके पीछे ऑनर्स लिख संक्षिप्त हस्ताक्षर कर दिया । इस घटना ने न केवल मुझे बल्कि सभी कतारबद्ध लड़कों को भी विस्मित कर दिया।

अब विद्यार्थी जीवन के बारे में सोचते ही एक रोमाञ्च हो जाता है क्योंकि वह समय बहुत ही  निश्चिंतता से बीते थे । सारे त्योहार खूब उमंग व उत्साह से मिलकर जोर शोर से मनाते थे  यानि कुलमिलाकर  सब समय  मौज मस्ती भी खूब की । वाद - विवाद प्रतियोगिता हो या लेखन की, सभी में न केवल भागीदारी की बल्कि नाम भी खूब कमाया और पारितोषिक भी हर समय मिले । 

आज भी मारजा वाले विद्यालय के एकाध दोस्तों से सम्पर्क है और जब भी मौका मिलता है, बात कर कुशलक्षेम आदान प्रदान कर लेते हैं । इसी तरह 11वीं तक वाले भी दो तीन से सम्पर्क बना हुआ है और उनसे भी बीच बीच में विचारों का आदान प्रदान कर लेते हैं । लेकिन कॉलेज के एक भी सहपाठी से सम्पर्क है ही नहीं और कभी कोशिश भी नहीं की क्योंकि वहाँ हर सहपाठी पढ़ाई के साथ साथ किसी न किसी तरह कार्यरत थे। इस कारण ज्यादा तो कक्षा में आते ही नहीं थे और बचे हुये जो आते वे भागते दौड़ते आते और कक्षा जैसे ही समाप्ति की और होती निकल छूटते। हाँ , कॉलेज के उन दिनों में कभी कभी  रास्ते में टकराते तो चलते चलते केवल आपस में मुस्करा लेते ।  

अन्त में अब एक खास बात का उल्लेख करना चाहूँगा वो यह है कि 11वीं बोर्ड परीक्षा के बाद जब मैं अंकपत्र लेने विद्यालय पहूँचा तब कार्यालय कर्मचारी ने कहा की  तुम्हारा अंकपत्र प्रधानाध्यापक जी के पास है । इसके बाद  मैं प्रधानाध्यापक जी के कक्ष में  गया और उनसे आशीर्वाद चाहा । तब उन्होनें आशीर्वाद देने के साथ साथ अंकपत्र मेरे हाथ में देते हुए गुरुदक्षिणा के रूप में  निम्न श्लोक को हमेशा याद रखने को कहा, जिसे आज तक मैं अपना परम आवश्यक नैतिक कर्तव्य मान पालन कर रहा हूँ  - 

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मों ततः सुखम् ।।
गोवर्धन दास बिन्नानी " राजा बाबू " 
जय नारायण व्यास कॉलोनी ,
बीकानेर 
9829129011 / 7976870397 









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