Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पाँच दिवसीय दीपावली त्यौहार

 

Goverdhan Binani 





to me 

   

पाँच दिवसीय दीपावली त्यौहार में अन्नकूट पर्व पर छप्पन भोग

   

जैसा आप सभी प्रबुद्ध पाठक जानते ही  हैं कि हमारे अधिकतर त्यौहार पूर्णिमा तिथि को मनाये जाते हैं जबकि दीपावली एक मात्र ऐसा पर्व है, जो अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इसके अलावा आप सभी यह भी जानते हैं कि सतुयग से कलयुग यानि आजतक अंधकार पर प्रकाश के विजय का त्यौहार,दीपावली भारत में सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । जिसके लिये दशहरे के बाद से ही घर, मोहल्ले की साफ सफाई के साथ साथ सबके लिये नये परिधान  एवं भोग धराने के लिये मिठाइयाँ ,नमकीन तैयार करने के साथ साथ सभी तरह के उपलब्ध ऋतु फल की व्यवस्था यानि व्यापक स्तर पर सभी तरह की तैयारियां शुरू हो जाती हैं ।

   
जैसा हम सभी ने अपने इतिहास से जाना है कि दीपावली वाले दिन ही यानि कार्तिक बदी अमावस्या को त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे । उस समय उनके भाई भरत-शत्रुघ्न के साथ मातायें व अयोध्या वासी प्रभु रामचन्द्र जी को देखने के लिए अत्यधिक लालयित थे, इसलिये आयोध्यावासियों ने बहुत ही ज्यादा उत्साह व श्रद्धा के साथ घी के दीपक जलाकर स्वागत सत्कार कर उत्सव मनाया था क्योंकि उस समय बिजली तो थी ही नहीं । तभी से यह दिन, त्यौहार के रूप में प्रचलित हुआ । चूँकि भगवान गणेशजी प्रथम पूज्य हैं और प्रभु के आगमन पर अपार वैभव कि वृष्टि हुयी थी इसलिये ही इस दिन भगवान गणेशजी के साथ माता लक्ष्मीजी की पूजा का प्रचलन तब से आज तक जारी है ।
हमारे सनातन धर्मानुसार दीपावली  के पांच दिनों तक मनाए जाने वाले त्यौहारों के दौरान अन्नकूट विशेष तौर पर मनाया जाता है।सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस त्यौहार यानि दीवाली  को धूम धाम से तो मनाते ही हैं साथ ही साथ अन्नकूट  महोत्सव का भी आयोजन विशेष तौर पर सभी जगह पूरे उत्साह ,उमंग व श्रद्धा के साथ गोवर्धन पूजा वाले दिन किया जाता है ।इसी कारण ही अन्नकूट दीपावली त्यौहार का एक प्रमुख भाग है । आप सभी के ध्याननार्थ राजस्थान प्रदेश के नाथद्वारा श्रीनाथजी के  मंदिर में मनाया जाने वाला  अन्नकूट महोत्सव पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । अनेक विदेशी इस अन्नकूट महोत्सव के अवलोकनार्थ हर साल नाथद्वारा आते हैं। 

जैसा ऊपर उल्लेखित किया है यह अन्नकूट त्यौहार दीवाली या लक्ष्मी पूजा के अगले दिन और भैया दूज से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। अन्नकूट के त्यौहार में  प्रभु श्रीकृष्ण को को 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्रीकृष्ण को खाने में जो सामग्रियां पसंद हैं उन सभी को भोग स्वरुप अर्पित करने से  प्रभु श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं साथ ही भक्तों को मन चाहा वर भी प्राप्त होता है।
अन्नकूट त्यौहार पर, भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है |इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है |यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है |

अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण प्रभु  को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे की मान्यता अनुसार जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए प्रभु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक प्रभु ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया।आठवें दिन जब प्रभु ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, तभी सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा।इन सात दिनों तक, दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों के साथ साथ मैया यशोदा के लिए बड़ा ही कष्टप्रद समय रहा । प्रभु के प्रति अपनी अनन्य  श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56 व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया |

सामान्यतया छप्पन भोग का मतलब छप्पन वस्तुओं का भोग लगाना समझते हैं जबकि वैष्णवों के यहाँ लगने वाले छप्पन भोग की निम्नलिखित सूची से स्पष्ट होता है कि छप्पन भोग में पचास प्रकार के भोज्य पदार्थ / पकवान एवं छ: तरह के षटरस व्यन्जन का भोग ठाकुर जी को अर्पित किया जाता है -

1. भक्त / भर्त  (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकज्या (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण शरा (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. केणिका / फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी), पारिषितश्च
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. पारिखा (तवा पुडी),
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत / सबूत (मेवा बाटी),
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. मौसमी फल,
49. ताम्बूल, (पान ),
50. मोहन भोग (सेन्धा नमक ),
51. लवण (नमकीन पदार्थ),
52. कषाय (कसैले पदार्थ),
53. मधुर (मीठे पदार्थ),
54. तिक्त,तीवत (तीखे पदार्थ ),
55. कटु ( कडवे पदार्थ ),
56. अम्ल,अमल ( खट्टे पदार्थ )

आखिर में आप सभी प्रबुद्ध पाठकों को यह बताना चाहता हूँ कि सनातन धर्म की मान्यतानुसार अन्नकूट को मनाने से व्यक्ति को आशीर्वाद तो मिलता ही है साथ ही साथ देवी अन्नपूर्णा की  परिवार पर कृपा हो जाने से को भोजन की कमी का सामना कभी भी नहीं करना पड़ता है ।

श्रीवल्लभाचार्य जी के आठ शिष्यों में से एक, भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान ब्रज भाषा वाले कवि, प्रसिद्ध संत, और संगीतकार जन्मांध भक्त सूरदास जी ने अन्नकूट का इस प्रकार बखान किया है-

गोवर्धन सिर तिलक चढ़ायौ, मेटि इंद्रं ठकुराइ । अन्नकूट ऐसो रचि राख्यौ, गिरि की उपमा पाइ । —सूर०, १० ।८३२ । २. 

उपरोक्त सभी का निष्कर्ष यही है कि पाँच दिवसीय दीपावली पर्व में अन्नकूट उत्सव जो कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा पर्यंत यथारुचि किसी भी दिन (विशेषत: प्रतिपदा को वैष्णवों के यहाँ ) आयोजित किया जा सकता है । उस दिन नाना प्रकार के भोजनों की ढेरी लगाकर भगवान को भोग धराते [लगाते ] हैं ।

गोवेर्धन दास बिन्नानी "राजा  बाबू"
जय नरायाण  व्यास कॉलोनी, बीकानेर 
9829129011 / 7976870397

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ