Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हर संस्था का क्यों किया जा रहा है निजीकरण

 

दाने दाने के लिए निर्भर थे दान पर
 सूदखोरों से बनी रहती थी जान पर !

 ज्ञान के आगार कम थे हम बस एक भीड़ थे
 मज़दूरों   किसानों   के  उजड़े  सब नीड  थे !

 सालों की मेहनत के बाद सफल हरित क्रांति हुई
 बैंकों के राष्ट्रीयकरण से,सूद के आतंक की समाप्ति हुई!

 बड़े बड़े राजकीय कल कारखानें से आत्मबल प्राप्त हुआ
 मज़दूरों को भी हक़ मिला  मोटा शोषण समाप्त हुआ था !

 अब बनी बनाई धन संपदा ज्ञानागर को बेच रहे हो
 जन संपदा, जनशक्ति,जन अधिकार को बेच रहे हो !

 फिर उन्ही धनवानों को , सूदखोरों को
 मुखौटा  ओढ़े  बैठे -स्वार्थी  लूटेरों को !

 कौन हो तुम?क्या देश- धन विरासत में मिला है?
 कहाँ से आते हैं ये फैसले? ये कैसा सिलसिला है?

 राष्ट्रीयता कह कह के किये जा रहे लोकतंत्र का हरण
राष्ट्रीयकृत हर संस्था का क्यों किया जा रहा है निजीकरण?
 जावेद उस्मानी

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