जाँ निसार यें अब और कितने ज़ख्म खाएँगे
हुकमरानों के फैसले तो आते आते आएंगे !
उठेगी अर्थियाँ तो देशवासी ऑंसू बहाएँगे
कुछ दिनों के बाद शहादत सब भूल जाएंगे !
हम अजब लोग है बस आज में ही जीते हैं
न माजी से सबक लेंगे न फ़र्दा को बचाएँगे!
मेरा वतन,मेरा वतन कहने से बात नही बनती
बात बनेगी जब अमन को हम मकसद बनाएँगे!
जावेद उस्मानी
माज़ी = अतीत
फ़र्दा = भविष्य
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