कही मचलती धूप कही बारिश की बूंदों को पकडेंगे
फिसल न जाएं खुशियाँ हथेली में लम्हों को जकड़ेंगे
गमेज़िंदगी और मायूसियों की खाई तो गहरी है बहुत
गुम सुकूँ की परछाईं चाँद दरिया समंदर में ही पकड़ेंगे
जावेद उस्मानी
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कही मचलती धूप कही बारिश की बूंदों को पकडेंगे
फिसल न जाएं खुशियाँ हथेली में लम्हों को जकड़ेंगे
गमेज़िंदगी और मायूसियों की खाई तो गहरी है बहुत
गुम सुकूँ की परछाईं चाँद दरिया समंदर में ही पकड़ेंगे
जावेद उस्मानी
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