पंख कटे हैं , परवाज़ रुकी हैं
सूना सूना सा आसमानों का डेरा है!
न चहचहाटें न परों की फड़फड़ाहटे
हर ओर जैसे खामोशी का बसेरा है!
गुलों की खुश्बू न गुंचों की खिलखिलाहटें
मुरझायी शाखों वाला क्या ये बाग मेरा है!
दूर तलक नही है कहीं रौशनी की आहटें
अंधेरी राते हैं , जाने कहाँ गुम सबेरा है !
जावेद उस्मानी
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