तुम्हारी गुरू हूँ मैं…
भरो उड़ान
कि सूरज के संग है होड़ तुम्हारी
उस उड़ान में भरी
हिम्मत हूँ मैं
तुम्हारी गुरू हूँ मैं ।
चढ़ो परवान
कि आसमाँ के पार है शिखर तुम्हारा
उस परवान में बसी
परवाज़ हूँ मैं
तुम्हारी गुरू हूँ मैं ।
बढ़ो दृढ़ हो
कि क्षितिज के आगे है मंजिल तुम्हारी
उस बढ़ने में बसी
चाहत हूँ मैं
तुम्हारी गुरू हूँ मैं ।
बनो ऊँचे
कि सनोबर
से ऊँचा हो कद तुम्हारा
फिर भी जो बाँधे जमीं से
वो जड़ हूँ मैं
तुम्हारी गुरू हूँ मैं ।
****ज्योत्स्ना मिश्रा ‘सना’
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