इल्म-ओ-ईमान के हाथों में चिलम चलने दे I
दबा के खींच कलेजा भी थोड़ा जलने दे II
जो भी कहना है वो कह दे कोई घुटन मत रख,
बात को तोड़ पे लाने की ज़िद मचलने दे II
मैं तेरे वार बचाता रहूँ या सहन करूँ,
तुझे कसम है जो मुझ को अगर संभलने दे II
नींव मज़बूत है चेहरा भी बहुत सुन्दर है,
किन्तु इस मुल्क़ की सीरत भी कुछ बदलने दे II
मैं अपनी आबरू रखने को लड़ रहा हूँ अब,
तू अपनी तेग़ का गुरूर भी निकलने दे II
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