Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जद से गुजर गया था अज़्दहाम आज फिर

 

जद से गुजर गया था अज़्दहाम आज फिर
हर जाविया से देखा जुंबिश बदल गया ।
किसकी लहू पे किसने बनाया है ये मकां
पूछा था जब मुंसिफ़ ने तब खंजर निकल गया ।
आलम है कि शबेरात  में जागा किए हैं जो 
कैदे हयातों का वही  आगाज कर  गया ।
 किससे कह सकोगे गर्दिश की कहानी
जो गमगुबार साथ था वो सब बदल गया ।
पैमाना भी अब उनको नसीहत सीखा रहा
अपने जिगर के यार से ही दिल दहल गया । 
 । कामिनी कामायनी ।
अज़्दहाम[ भीड़ ]

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ