Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विश्व मातृ भाषा दिवस के समर्पित

 

अपन मिथिला  केर चिन्हासी । मैथिली कविता (विश्व मातृ भाषा दिवस के समर्पित )
जीतिया मे ,झिझिया मे ,
घड़ही मे खड़ही मे
फगुआ मे ,पातरी मे
मौहक मे सोहरि मे
मुड़न ,
उपनेन मे
भोरे स बजे छै
ताल आ मृदंग
जुड़ैत जत्त जुड़ सीतल
खाईत सत्तू सतुयनी मे
बंधेत डोरा हाथ
सपता विपता के माथ
झरकल छै
खड़कल छै ,
धमगज्जरि
भोज जतय
पलखेत के दिन छै
भजनङ्क राति
सीता संग राम सोहे
जनक पुर सन धाम सेहो
याज्ञवल्क्य क यजुर्वेद
विद्यापति के उग्रनाथ
उच्चैठमे काली के
गहने छथी कालिदास
मस्जिद केर मधुर अजान
वेद के करैत बखान

कुसेसर मे विराजित
स्वयम भूतनाथ छथि

पर्सेत जतय गप्प अछि
लोक लपेलप्प अछि
छै मुंह मे भरल पान
ठोर प स्मित मुस्कान
धोती सुखैत तार
डहकन गबैत नार
साहु केछोटका दोकान
धिया छेदबईत दुनू कान

साही के काँट छै
सरिसबक डांट छै
भिनसरे स सोर छै
माछक झोर छै
तरुवा छै ,बड़ी छै
बिध छै,बिधगरी छै ,
पैन छै मखान छै
आंचर मे दुईब धान

जनेऊ छै गरा मे
तिल कुस चंगेरा मे

गाय महिसक बथान छै
कमला भूतही बलान छै
चित्रकारी देवार प
आंचरि कपार प
रोपनी करैत घाम
पूजन धामे धाम

कुचरैत अछि काग जतय
बौरहबा महेस छथि
बरम बाबा स्थान छै ,भूतही मकान छै
नबका कतेको घर
परीछन करैत ब’र
मोईन फुटल कतेक
सुखल सुस्त धार छै
भाटा के भार छै
अहिला के दरबार छै
कतबो मलान छै
ड्योढ़ी आ दलान छै
रोशनी नव कहू ,
अंदाज पुरनका छै
सूट बूट पहिरे छै
पाग मुदा ललका छै .
पोखरि हड़ाही छै
मछहा कड़ाही छै
कुम्हरम के नौत छै
रातिम के भोज छै
खिखिरक बिल छै
महाराजी मंडिल छै
कोशकी के माटि छै
कोसिया छै भाटि छै
हजमा चौराहा छै
बरद मरखाहा छै
दोनारि छै नरगौना छै
खुट्टी आ खूटौना छै
गाम ,मे राटी,मंगरौनी ,पिलखबार छै
पौती मे ,मौनी मे खिस्सा हजार छै
डोली छै कहार छै
मुल्कक ब्योपार छै
सोईत आ पाईज़क
मूल गोत्रक टीक धेने
कोटि कोटि ऋषि क
ध्वजा ल
वंशज एखनों
ठाढ़ छै
राहड़ि छै दाहड़ि छै
रौदी से घनघोर
नदी सात बहिनी मे
एके भाय चौर छै
डीह डीहवार छै
फ़सादों अकान छै
सप्पत अहि गोहबर के
जन्मभूमि अपन प्राण छै।
अतीत् क गुम सुम

मिथिला महान छै ।
जाय छी पथिक हम्मर देश मे
त सुनि लिए
एखनों मिथिला के
वएह पहिचान छै ।

कॉपी राईट   @  डा0 कामिनी कामायनी
 

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