लिमटी की लालटेन 232
कब बहुरेंगे देश में परंपरागत चिकित्सा के दिन!
एलोपैथी के समानांतर आयुर्वेद को खड़ा करने हेतु सरकार को करने होंगे प्रयास
(लिमटी खरे)
देश में एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली का इतिहास बहुत पुराना है पर आयुर्वेद का इतिहास सबसे पुराना है। चार वेदों के उप वेद में एक आयुर्वेद भी है। देश में आयुर्वेद, यूनानी जैसी चिकित्सा पद्यतियां सदियों पुरानी मानी जा सकती हैं। आज के समय में एलोपैथ लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है किन्तु इसके बाद भी लोग आयुर्वेद की ओर लौटते दिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी देशी नुस्खों की भरमार है। अस्सी के दशक तक दादी मॉ का खजाना, नानी मॉ की सलाह जैसी किताबें भी बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुआ करती थीं। इसके अलावा आयुर्वेद के अनेक छन्द, गीत, कविताएं आज सोशल मीडिया पर अपना स्थान बना रही हैं, जिनमें किस ऋतु में आपको किस चीज का सेवन करना चाहिए इसका उल्लेख किया गया है। किस चीज के साथ क्या खाना वर्जित है इस बात का भी इनमें उल्लेख मिलता है। इसमें पथ्य, अपथ्य का भी उल्लेख मिलता है।
2020 में देश में फैली कोरोना कोविड 19 नाम की बीमारी ने भी यह बात रेखांकित कर दी है कि इस तरह की संक्रामक बीमारियों में भी आयुर्वेद, यूनानी आदि पारंपरिक चिकित्सा पद्यतियां बहुत ज्यादा लाभकारी साबित हुई हैं। कोविड के दौरान आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से जो दवाएं मरीजों को दी जा रही थीं, उन्हें बाद में सिरे से नकारने की बातें भी सामने आईं। यह बात इसलिए भी हुई क्योंकि कोविड 19 के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी लोगों को नहीं थी, कम समय में इससे निजात पाने के लिए आनन फानन चिकित्सा तो आरंभ करवा दी गई पर आयुर्वेद के काढ़े को सरकारों के द्वारा निशुल्क वितरित करवाकर यह साबित कर दिया कि आयुर्वेद जैसी पद्यति वास्तव में उपयोगी ही है।
अनेक शोध में यह बात भी प्रमाणिक तौर पर सामने आ चुकी है कि पारंपरिक औषधियां जिनके बारे में हमारे पूर्वज जानते थे और ऋषि मुनियों के हवाले से ग्रंथों में इनके बारे में जो भी लिखा गया है उससे रोग प्रतिरोधिक क्षमताओं का विकास ही होता है। आज लोग एलोपैथिक को तत्काल आराम के लिए तो अपना रहे हैं, पर रोग को जड़ से नष्ट करने के लिए देश की पारंपरिक चिकित्सा पद्यति ही कारगर साबित होती आई है।
इन परिस्थितियों में गुजरात में पारंपरिक औषधियों वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक केंद्र की स्थापना अपने आप में अद्भुत एवं अकल्पनीय ही मानी जा सकती है। वैसे भी केंद्र के साथ ही साथ अनेक सूबाई सरकारों के द्वारा पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के विस्तार की दिशा में अहम कदम उठाए हैं। गुजरात में स्थापित होने वाला वैश्विक संगठन इन परिस्थितियों में मील का पत्थर ही साबित होने वाला है।
देखा जाए तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना ही इन उद्देश्यों के साथ की गई थी कि मानव को रोगों से किस तरह बचाया जाए, उन्हें स्वास्थ्य कैसे रखा जाए। सदियों पहले उप वेद के रूप में आयुर्वेद में जिन बातों का उल्लेख किया गया था, उससे बेहतर शायद ही कोई पद्यति हो लोगों को निरोग रखने के लिए। इसमें जो भी है वह सदियों पहले वैज्ञानिक मापदण्डों के हिसाब से ही वर्णित किया जा चुका है। इसमें खान पान, संयम सहित जीवन शैली के बारे में विस्तार से परिभाषित भी किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा भी यही कहा जा रहा है कि अगले 25 वर्षों में जब देश की स्वतंत्रता का शतक लगेगा तब देश का आयुर्वेद पूरे विश्व में न केवल अपना डंका बजाएगा, वरन यह विश्व की समस्त चिकित्सा पद्यतियों के शिखर पर अपना परचम लहराता नजर आएगा। विश्व भर में आयुर्वेद को स्वीकार्यता मिलना, अनेक देशों के द्वारा इसे अपनाया जाना इसी बात का प्रमाण है कि यह कितनी उपयोगी पद्यति है।
आज खान पान, जीवन शैली के कारण लोग अनेक व्याधियों से ग्रसित होते जा रहे हैं। शहरों में बच्चे मिट्टी से दूर हैं, तो जंक फूड का सेवन कर अनेक रोगों को अपने शरीर में घर करने के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। इससे शारीरिक असंतुलन बन रहा है। आज लोगों में रक्तचाप, शुगर, मोटापा, कुपोषण आदि न जाने कितनी बीमारियां लोगों के अंदर देखने को मिल रही हैं, जो आज से दो तीन दशकों पहले की तुलना में सत्तर, अस्सी फीसदी अधिक मानी जा सकती हैं। आज न जाने कितने युवा हृदयाघात से दम तोड़ रहे हैं।
आप अगर आयुर्वेद के नजरिए से देखें तो यही मान्यता सामने आती है कि आप जिस क्षेत्र में निवास कर रहे हैं और वहां उपलब्ध भोजन को ही आपको करना चाहिए। विदेशी भोजन कभी कभार स्वाद बदलने के लिए उचित है पर इसे आदत बनाना कदापि उचित नहीं है। पहले लोग बासी रोटी अथवा अंकुरित अनाज का नाश्ता करते थे, पर आज मैगी, नूडल्स आदि नाश्ते का अंग बन चुके हैं। हमें अगर लंबा जीवन जीना है और निरोगी भी रहना है तो परांपरागत चिकित्सा प्रणाली को अंगीकार करना ही होगा।
एक बात और सच है कि जब भी किसी विधा, कथा, ज्ञान विज्ञान, इतिहास आदि को शासन का सहयोग अर्थात राज्य का आश्रय प्राप्त होता है तो वह तेजी से विकसित या स्थापित होने लगती है। आज भी ग्रामीण अंचलों में परांपरागत चिकित्सा प्रणाली बाकायदा सांसे लेती हुई मिल जाएगी। अगर केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा इसे समर्थन दिया गया तो आने वाले समय में परांपरागत चिकित्सा प्रणाली को पूरी तरह स्थापित होने से शायद ही कोई रोक पाए।
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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