लिमटी की लालटेन 626
वंदेभारत के बाद 2026 में बुलेट ट्रेन, पर यात्री सुविधाएं रह कहां गईं अटक . . .
पटरी पर लेटलतीफ दौड़ती सवारी रेलगाड़ियों के बीच बुलेट ट्रेन की सौगात कहां तक उचित . . .
(लिमटी खरे)
दो साल उपरांत अर्थात 2026 तक गुजरात सूब के सूरत से बिलीमोरा के बीच बुलेट ट्रेन कारीडोर का काम पूरा कर लिया जाएगा, उसके उपरांत इस रेलखण्ड में बुलेट ट्रेन का परिचालन आरंभ किया जाएगा। एक समय था जब राजधानी एक्सप्रेस ही सबसे तेज गति की रेलगाड़ी हुआ करती थी। इसके बाद शताब्दी, संपर्क क्रांति, गरीब रथ, तेजस, वंदेभारत और न जाने कितनी रेलगाड़ियां पटरियों पर दौड़ती नजर आईं। तेज गति की रेलगाड़ी तो पटरियों पर कमोबेश तेज गति से ही दौड़ती नजर आती हैं, पर मेल एक्सप्रेस अब घंटों विलंब से चलती नजर आती हैं। अब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन को चलाने की योजना है।
रेलवे बोर्ड के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि देश की पहली हाई स्पीड बुलेट ट्रेन मुंबई, ठाणे, वापी, वड़ोदरा, सूरत, आणंद, साबरमती व अहमदाबाद के बीच 320 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से संचालित होगी। नेशनल हाई-स्पीड रेल कॉर्पाेरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) द्वारा मुंबई - अहमदाबाद बुलेट ट्रेन कॉरिडोर 1.08 लाख करोड़ रुपये की परियोजना है। वित्तीय योजना में केंद्र सरकार से 10,000 करोड़ रुपये और गुजरात और महाराष्ट्र से 5,000 करोड़ रुपये शामिल हैं। शेष धनराशि जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) से 0.1 प्रतिशत ब्याज ऋण के माध्यम से प्राप्त की जाएगी।
देश की रेल परियोजनाओं पर अगर आप नजर डालें तो अस्सी के दशक तक यही कहा जाता था कि भारतीय रेल के द्वारा माल ढुलाई में जो राजस्व कमाया जाता है, उससे ही यात्रियों के लिए सवारी गाड़ियों का संचालन किया जाता है। देखा जाए तो रेलगाड़ियों को शायद ही कभी लाभ कमाने का जरिया बनाया गया हो। यह यात्रियों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए सुलभ यातायात व्यवस्था ही माना जाता रहा है।
एक समय था जब भारतीय रेल में दो अंक से आरंभ होने वाली रेलगाड़ियां शायद ही कभी विलंब से चलती रही हों। उस दौर में रेल की पटरियों पर सवारी रेलगाड़ियों को पहली प्राथमिकता दी जाती थी। मालगाड़ियों को सबसे अंत वाली प्राथमिकता पर ही आया करती थी। आज प्रौढ़ हो रही पीढ़ी ने यह देखा ही होगा कि जब भी उनके द्वारा रेलगाड़ी से सफर किया जाता था तब भले ही वे पैसेंजर रेलगाड़ी से सफर कर रहे हों पर मालगाड़ियों को कभी भी उन्होंने सवारी रेलगाड़ी से आगे निकलते नहीं देखा होगा। इसमें वरिष्ठ नागरिकों सहित अनेक वर्ग के लोगों को यात्री किराए में रियायत भी मिला करती थी, किन्तु कोविड के उपरांत ये रियायतें भी समाप्त कर दी गईं हैं। आज लोगों का यह आम आरोप है कि मालगाड़ियों को सवारी रेलगाड़ी से पहले स्थान दिया जा रहा है। हालात देखकर यही प्रतीत होने लगा है मानो भारतीय रेल का मूल काम अब यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के स्थान पर माल ढोकर राजस्व अर्जित करना ही रह गया है।
यात्री सुविधाओं का ढ़िंढोरा भले ही रेल मंत्रालय के द्वारा पीटा जाता हो पर आम यात्री से पूछिए कि उसे पहले की तुलना में कितनी सुविधा मिल पा रही है। आज कमोबेश हर रेलवे स्टेशन पर यात्रीयों को सब कुछ मिल रहा है पर सब कुछ सशुल्क ही है। छोटे रेलवे स्टेशन्स पर प्रथम श्रेणी प्रतीक्षालयों के लिए कमरे तो हैं पर उन कमरों में ताला ही लगा होता है। खिड़की से अंदर देखने पर वहां एक टूटी कुर्सी तक दिखाई नहीं देती है। रेलवे के द्वारा यात्रियों की शिकायतों के निराकरण के लिए 139 नंबर जारी किया है, आप ट्वीट कर सकते हैं, पर आपकी समस्या शायद तब ही हल हो पाएगी जब कि आप अपनी यात्रा के समापन वाले स्टेशन पर पहुंच जाते हैं। होना यह चाहिए कि यात्री की शिकायत के उपरांत समय सीमा में अगर उसकी शिकायत को हल नहीं किया जाता है तो समय सीमा के उपरांत यात्री से फोन पर पूछा जाए और अगर यात्री असंतुष्ट है तो अगले स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक स्तर का अधिकारी उस शिकायत को तत्काल अटेण्ड करे।
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रेलवे बोर्ड के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि हर रेलगाड़ी के इंजन में ग्राफ लगा होता है और रेलगाड़ी किस स्टेशन पर कितनी देर खड़ी हुई और किस स्टेशन से किस स्टेशन के बीच निर्धारित अवधि से विलंब से वह संचालित हुई, आदि बातें रिकार्ड में होती हैं। डेढ़ दो दशक पहले तक रेलगाड़ी के विलंब के लिए चालक को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता था और अगर चालक का जवाब संतोष जनक नहीं होता था तो उस पर कार्यवाही की जाती थी। आज तो अच्छी अच्छी नामी गिरामी रेलगाड़ियां विलंब से चल रहीं हैं, पर मजाल है कि रेलवे बोर्ड, जोनल मैनेजर, डिवीजनल रेल मैनेजर आदि के कार्यालय के द्वारा कभी किसी मामले में कार्यवाही की गई हो।
कुल मिलाकर रेलवे के पूरे ढांचे पर विचार करने की आवश्यकता है कि आजादी के उपरांत अब तक इसमें कब कब क्या क्या बदलाव किए गए। यात्री सुविधाओं को कागजों पर कितना बढ़ाया गया और वास्तविकता में ये कितनी बढ़ी हैं। यात्री रेलगाड़ियों के विलंब से चलने के कारण आखिर क्या हैं! इस तरह के अनेक प्रश्न आज भी पूरी तरह ही अनुत्तरित माने जा सकते हैं। बुलेट ट्रेन भारत की शान होगी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। बुलेट ट्रेन का स्वागत किया जाना चाहिए, पर इसके साथ ही रेल सुविधाओं, यात्री सुविधाओं, रेलगाड़ियों के परिचालन में समय की पाबंदी का पिछले डेढ़ दो दशकों में क्या आलम हो चुका है . . . वरना आगे आगे पाठ पीछे सपाट की कहावत चरितार्थ होने में समय नहीं लगने वाला . . .
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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