लिमटी की लालटेन 618
सब कुछ एक क्लिक पर, फिर चुनावी बाण्ड की जानकारी के लिए समय क्यों चाह रहा एसबीआई!
लोकसभा चुनावों के उपरांत इलेक्टोरल बाण्ड की जानकारी सार्वजनिक हुई तो फायदा किसको!
(लिमटी खरे)
देश में चुनाव बहुत ज्यादा मंहगे होते जा रहे हैं। चुनाव आयोग भले ही अलग अलग चुनावों के लिए व्यय की सीमा प्रथक प्रथक निर्धारित कर दे, और उम्मीदवार लिखापढ़ी में भले ही निर्धारित सीमा से कम खर्च का ब्यौरा देते हों, किन्तु निर्वाचन क्षेत्र की जनता से अगर पूछा जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है। पिछले कुछ दिनों से चुनावी बाण्ड जमकर चर्चा में रहे हैं। देश की शीर्ष अदालत के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक को निर्देश दिए थे कि एसबीआई के द्वारा 12 अप्रैल 2019 के उपरांत खरीदे गए चुनावी बाण्ड का पूरा विवरण 06 मार्च तक देने को कहा था। पूरा मामला क्या है यह आप 15 फरवरी को प्रसारित लिमटी की लालटेन के 604वें एपीसोड में ‘क्या चुनावी चंदा बन गया था फायदे का धंधा . . .‘ शीर्षक से प्रसारित विश्लेषण देख सकते हैं।
बहरहाल, 06 मार्च तो बीत गई, पर विवरण उसी तरह नहीं आया जिस तरह काला धन भारत वापस आ रहा था। समय सीमा में भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा जानकारी नहीं दिए जाने के लिए एसबीआई के द्वारा 30 जून तक का समय चाहा गया है। एसबीआई का कहना है कि चुनावी बाण्ड की डिकोडिंग और दानदाता से मिलान की प्रक्रिया जटिल है क्योंकि यह सुनिश्चित करने के लिए कि दानदाताओं का नाम गुप्त रहे इसके लिए कठोर कदम उठाए गए थे। एसबीआई के इस रवैए पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्मस (एडीआर) के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका भी दायर कर दी गई है।
गैर लाभकारी संगठन एडीआर के द्वारा ही चुनावी बाण्ड योजना 2018 के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और इसकी सुनवाई के उपरांत ही शीर्ष अदालत के द्वारा इन बाण्डस को असंवैधानिक करार दिया जाकर जानकारी को 06 मार्च तक देने को कहा था। इस जानकारी को 13 मार्च तक चुनाव आयोग की वेब साईट पर भी प्रदर्शित करने की बात कही गई थी। एडीआर ने अपनी याचिका में एसबीआई के द्वारा समय सीमा बढ़ाने की मांग को दुर्भावनापूर्ण एवं आसन्न लोकसभा चुनावों से पहले पारदर्शिता के प्रयासों को विफल करने की कवायद भी बताया है।
एसबीआई का कहना है कि 12 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 की आलोच्य अवधि में 22 हजार 217 चुनावी बाण्ड जारी हुए थे। ये बाण्ड विभिन्न राजनैतिक पार्टीज के लिए डोनेशन हेतु जारी किए गए थे। बाण्ड को मुंबई स्थित शाखा में डिपाजिट किया गया था। इसे लेकर दो अलग अलग सूचनाओं का स्लाट है जिसे डिकोड करना होगा। अर्थात 22 हजार 217 को दो से गुणा करें तो 44 हजार 434 जानकारी बैंक को देना होगा।
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भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा इलेक्टोरल बाण्ड से संबंधित जानकारी के लिए समय चाहे जाने पर अब सियासी बियावान में एक बार फिर गर्माहट दिख रही है। लोकसभा चुनावों के एन पहले विपक्ष विशेषकर कांग्रेस के हाथों में अनचाहे ही एक ऐसा मुद्दा लग गया है, जिसे वह हवा देकर अपने पक्ष और सरकार के खिलाफ माहौल बना सकती है, पर यह सब कुछ विपक्ष के नेताओं के प्रयासों पर ही निर्भर करता है।
वर्तमान में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अपने एक्स पर लिखा है कि नरेंद्र मोदी ने ‘चंदे के धंधे’ को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉण्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब एसबीआई क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए? उन्होंने लिखा है कि एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है। देश की हर स्वतंत्र संस्था ‘मोडानी परिवार’ बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है। चुनाव से पहले मोदी के ‘असली चेहरे’ को छिपाने का यह ‘अंतिम प्रयास’ है।
खबरों के अनुसार 2016 - 2017 से 2021 - 2022 के बीच भारतीय जनता पार्टी को राजनैतिक चंदे के 52 फीसदी अर्थात लगभग 05 हजार 272 करोड़ रूपए मिला है, जबकि अन्य राजनैतिक दलों को इसी आलोच्य अवधि में चुनावी बाण्ड के रूप में महज एक हजार 784 करोड़ रूपए ही मिला है।
सवाल यही है कि जब एसबीआई के पास 22 हजार 217 चुनावी बाण्ड की जानकारी है। सब कुछ कंप्यूटराईज्ड है। बाण्ड से संबंधित जानकारी नष्ट तो नहीं ही की जा सकती होगी क्योंकि इसे भले ही गोपनीय रखा जाना हो पर बैंक के पास इसकी जानकारी न हो ऐसा संभव नहीं है। बैंक ने इस जानकारी को मुंबई के कार्यालय में सुरक्षित रखा होगा, और इन गोपनीय डाक्यूमेंट्स में सारे कागजात लगे होंगे, मसलन कितने के बाण्ड किस पार्टी को किसके द्वारा नकद, चेक, डीडी या ऑन लाईन ट्रांजेक्शन के जरिए किस शाखा से खरीदे गए। इस जानकारी को छांटना ज्यादा से ज्यादा एक पखवाड़े का काम है, और 15 फरवरी के बाद एक पखवाड़े से ज्यादा समय बीत चुका है।
जाहिर है कि अगर यह जानकारी लोकसभा चुनावों (संभवतः मतदान 30 जून के पहले ही हो जाए) के बाद सार्वजनिक होती है तो यह चुनावों में मुद्दा शायद ही बन पाए। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को चाहिए कि इस जानकारी को सार्वजनिक करवाने के लिए आज से ही प्रयास आरंभ किए जाएं, इतना बेहतरीन मुद्दा विपक्ष के पास है कि सब कुछ एक क्लिक पर होने के बाद भी आखिर वे क्या वजहें हैं जिसके चलते भारतीय स्टेट बैंक इस जानकारी को देने के लिए लोकसभा चुनाव के जिन तिथियों पर मतदान संभव दिख रहा है उसके बाद की तिथि की मांग कर रहा है! एवं प्रयास अण्णा के आंदोलन के मानिंद होना चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अण्णा के आंदोलन का खासा अनुभव है और वे इंडी एलाईंस के घटक दल भी हैं, इसलिए सबको शामिल शरीक प्रसास करने की जरूरत महसूस हो रही है। चुनावों के बाद ईवीएम को दोष देने से तो बेहतर है कि अभी समय रहते प्रयास कर ही लिए जाएं . . .
लिमटी की लालटेन के 618वें एपीसोड में फिलहाल इतना ही। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज में लिमटी की लालटेन अब हर रोज सुबह 07 बजे प्रसारित की जा रही है। आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की वेब साईट या साई न्यूज के चेनल पर जाकर इसे रोजाना सुबह 07 बजे देख सकते हैं। अगर आपको लिमटी की लालटेन पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम लिमटी की लालटेन का 619वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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