लिमटी की लालटेन 620
चुनावी बाण्ड के संबंध में एसबीआई की दलीलें खारिज, 12 तक देना होगा हिसाब!
देश के सबसे बड़े बैंक का शनि अब दिखने लगा भारी, 15 तक चुनाव आयोग की वेब साईट पर इलेक्टोरल बाण्ड की जानकारी होगी साझा
(लिमटी खरे)
चुनावी बाण्ड को लेकर जिस तरह की बातें सोशल मीडिया पर तैर रहीं थीं, उन पर विराम लगता दिख रहा है। दरअसल, देश की शीर्ष अदालत के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक को इलेक्टोरल बाण्ड से संबंधित जानकारी 12 मार्च की शाम तक देने के निर्देश दिए हैं ताकि इन्हें तय सीमा में अर्थात 15 मार्च तक चुनाव आयोग की वेब साईट पर साझा किया जा सके। चुनावों को लेकर पारदर्शिता के संबंध में इन निर्देशों को मील का पत्थर माना जा सकता है।
देश की शीर्ष अदालत के द्वारा चुनावी बाण्ड पर समय सीमा बढ़ाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक की याचिका खारिज कर दी है। शीर्ष अदालत ने स्टेट बैंक को चुनावी बाण्ड से संबंधित पूरी जानकारी 12 मार्च तक देने के निर्देश दिए हैं जो दिन भर सोशल मीडिया की सुर्खियां बना रहा। 15 मार्च को दिए गए आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक पूरी तरह निश्चिंत ही दिखाई दे रहा था। उसके द्वारा 15 मार्च के बाद किसी तरह की कवायद नहीं की गई। सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खण्डपीठ ने भारतीय स्टेट बैंक से यह भी कहा है कि अगर मंगलवार तक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती है तो अदालत के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी.वाय. चंद्रचूर्ण के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय बैंच कर रही है, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। इस मामले में भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे के द्वारा यह कहकर समय चाहा गया कि बैंक के द्वारा कोर बैंकिंग प्रणाली से इतर चुनावी बाण्ड योजना के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए एक एसओपी का पालन किया है, जिसके लिए उन्हें समय दिया जाए।
बैंच के द्वारा कहा गया कि भारतीय स्टेट बैंक को सिर्फ सीलबंद लिफाफे खोलना है और जानकारी को देना है। वैसे देखा जाए तो शीर्ष अदालत के द्वारा एसोसिएशन फॉर डिमोक्रेटिक रिफार्मस (एडीआर) की याचिका की सुनवाई की जा रही थी। इसके पहले शीर्ष अदालत के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक को निर्देश दिए थे कि वह चुनावी बाण्ड के संबंध में चुनाव आयोग को 06 मार्च तक जानकारी मुहैया करवाए और चुनाव आयोग उस जानकारी को 15 मार्च तक अपनी वेब साईट पर डाले। इसी बीच भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा 30 जून तक का समय चाहा गया पर एडीआर के द्वारा इस पर आपत्ति जता दी गई थी।
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जिस तरह की खबरें मीडिया में चल रही हैं, उनके अनुसार शीर्ष अदालत के द्वारा भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे की हर दलील को खारिज कर दिया। हरीश साल्वे का कहना था कि डोनर के ब्यौरे और जिसने इसे भुनाया उसका विवरण प्रथक प्रथक शीट में होने के कारण उसके मिलान में वक्त लगेगा, पर शीर्ष अदालत का कहना था कि सीधे सीधे जानकारी दी जाए। पूर्व में शीर्ष अदालत की संवैधानिक बैंच ने कहा था कि भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी बाण्ड का पूरा ब्योरा दे जिसमें बताया जाए कि किस तारीख को बाण्ड किसके द्वारा और कितनी तादाद में खरीदे गए और उन्हें किसके द्वारा किस तारीख को भुनाया गया।
गौर करने वाली बात यही है कि भारतीय स्टेट बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक है और उसके पास अपने हर उपभोक्ता, हर एक लेनदेन की जानकारी है। यह माना जा सकता है कि चुनावी बाण्ड गोपनीय थे, पर जानकारी तो भारतीय स्टेट बैंक के पास थी, और भारतीय स्टेट बैंक के वकील हरीश साल्वे भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि जानकारी भारतीय स्टेट बैंक के पास है, तब जानकारी जिस भी रूप में है, उस रूप में माननीय न्यायालय के समक्ष रखने में भारतीय स्टेट बैंक को किस बात की परेशानी है! इसके साथ ही 15 फरवरी के आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा 11 फरवरी तक क्या कार्यवाही की, इस बारे में भी भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा अपने आवेदन में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है। इससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा शीर्ष अदालत के निर्देशों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई थी। कुल मिलाकर सब कुछ झोलझाल जैसा ही प्रतीत हो रहा है। इधर, सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ के कठोर रवैए से चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता आने की दिशा में यह मील का पत्थर भी साबित होने की उम्मीदें बढ़ती दिख रही हैं।
आईए अब आपको बताते हैं कि आखिर क्या है इलेक्टोरल बाण्ड! चुनावी बांड, ब्याज मुक्त धारक बांड या मनी इंस्ट्रूमेंट था जिन्हें भारत में अनेक कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था। ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे। किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी - अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता था। इसके साथ ही जिस राजनैतिक दल को यह दिया जाता था उस राजनीतिक दल को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता था। इस तरह के बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं। 2019 तक इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के 12 चरण पूरे हो चुके थे। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान तक इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे ज्यादा 30.67 फीसदी हिस्सा मुंबई में बेचा गया था और इसका सबसे ज्यादा 80.50 फीसदी हिस्सा दिल्ली में भुनाया गया था।
उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा देश की शीर्ष अदालत के स्पष्ट निर्देशों का पूरा पूरा सम्मान करते हुए बिना हीला हवाला किए हुए चुनावी बाण्ड से संबंधित जानकारी तय समय सीमा अर्थात मंगलवार 12 मार्च की शाम तक चुनाव आयोग को देकर चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाने के मार्ग प्रशस्त अवश्य किए जाएंगे।
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
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