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इस साल गुलाबी ठण्ड को तरस गए लोग! क्या है वजह!

 

लिमटी की लालटेन 193

इस साल गुलाबी ठण्ड को तरस गए लोग! क्या है वजह!

(लिमटी खरे)

साल दर साल मौसम में बदलाव तेजी से दर्ज किया जा रहा है। आज प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात की गवाह होगी कि सर्दीगर्मीबरसातबसंत हर मौसम उसने साल के निर्धारित समय पर ही देखा होगा। अस्सी के दशक के बाद बदलाव आना आरंभ हुआ और अब यह बदलाव बहुत ही तेज गति से दिखाई देने लगा है। हर साल मकर संक्रांति के बाद जब सूर्य नारायण उत्तरायण होते हैं उसके बाद यही माना जाता था कि सर्दी की बिदाई तय है।

नब्बे के दशक में सर्दी जनवरी और फरवरी माह तक पड़ती रही है। अब तो कभी मार्च तक भी सर्दी खिंच जाती है। बसंत के मौसम में गुलाबी सर्दी का अहसास होता है। बसंत का नाम सुनते ही मानस पटल पर अनेक बातें इस तरह की घुमड़ती हैंजिने सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। उनका बखान जरा मुश्किल ही होता है। इस साल अपने महसूस किया होगा कि 2021 में सर्दी नाम मात्र के लिए ही पड़ी। कड़ाके की सर्दी या जिसे हाड़ गलाने वाली सर्दी कहा जाता है वह इस साल मैदानी इलाकों में महसूस नहीं हुई।

2022 के मार्च माह में सभी आश्चर्य चकित रह गएजब मई जैसी गर्मी का अहसास होली के पहले ही होने लगा। मैदानी इलाकों में अनेक जगहों पर पारा 40 को पार कर गया! मुंबई में पारा 40 के पार था तो दिल्ली में एक दशक के सारे रिकार्ड ही ध्वस्त हो गए। अधिकतम तापमान तो ठीक है पर दिन का न्यूनतम तापमान अगर 20 डिग्री सेल्सियस के ऊपर है तो समझ लीजिए कि आपको बेचैनी होना स्वाभाविक ही है। दिल्ली में न्यूनतम तापमान 21 से अधिक रहा। मार्च में ही पंखों की गति को पंख लग गए। एसी कूलर अभी बाजार में आए नहीं पर उनकी मांग तेज हो गई। यहां तक कि अभी आप अगर कूलर परफ्यूम लेने जाएं तो दुकानदारों ने अभी यह बुलाया ही नहींक्योंकि वे मानकर चल रहे थे कि मार्च के अंतिम सप्ताह के बाद गर्मी आएगी और उसके बाद माल बुलाया जाएगा।

यह सब बताने का मतलब महज इतना ही है कि अब जलवायू परिवर्तन अध्ययन का विषय हो सकते हैंकिन्तु हमें उससे ज्यादा सचेत होने की आवश्यकता है। हमें आसपास के पर्यवरण पर नजर रखना होगा। हमारे आसपास हरियाली युक्त वातावरण होनदी नालों में जल संग्रहित रहे यह पहली प्राथमिकता ही मानी जा सकती है। पश्चिमी विक्षोभ पर इन दिनों बारिश निर्भर हुआ करती थी। माना जाता था कि बारिश होगी तो हवा में ठण्डक घुलेगीपर इस साल तो ऐसा कुछ होता दिख ही नहीं रहा है। देश की राजनैतिक राजधानी का इतिहास अगर देखा जाए तो मार्च के महीने में ही दिल्ली में आठ से दस मिली लीटर बारिश होती आई है पर इस साल तो सूखा ही पड़ा दिख रहा है।

जानकारों का कहना है कि अधिकतम तापमान तो कुछ ही समय के लिए आपको परेशान कर सकता है पर अगर न्यूनतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस के बजाए 20 डिग्री सेल्सियस रहेगा तो शाम ढलने के बाद अगले दिन पौ फटने तक आपको बेचैनी महसूस होती रहेगी क्योंकि न्यूनतम तापमान भी ज्यादा ही रहेगा। आज शहरों में कांक्रीट जंगल दिखाई देते हैंपर हरे भरे वृक्ष लगाने की सरकारी अनिवार्यताओं की नस्तियांनिर्देश सभीरिश्वत के झूले में आराम फरमाते हुए कागजों पर ही सिमट जाते हैं। तीखी धूप में आज सर छिपाने के लिए सड़कों के दोनों ओर सफेद और लाल रंग की धारियां पुते वृक्ष भी कम ही दिखाई देते हैं। गर्मी का मौसम अनेक संक्रमणों का संवाहक भी होता है इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए।

जलवायु परिर्वतनतापमान में अंतरपानी की कमी आदि विषय सिर्फ भारत में ही प्रासंगिक नहीं हैं। समूची दुनिया में इस बात को लेकर चिंता हो रही है। सबसे शीत स्थान अंटार्कटिका में तापमान अब माईनस 11 डिग्री पहुंच गया हैजबकि अब तक वहां इतना ज्यादा तापमान कभी दर्ज नहीं किया गया। यह बात भी वैज्ञानिकों की पेशानी पर पसीने की बूंद लाती दिख रही हैक्योंकि इसके पहले अंटार्कटिका में ऐसा कभी नहीं हुआ।

साल के 365 दिनों को अलग अलग दिवस के रूप में मनाने भर से कुछ नहीं होने वाला। हाल ही में 22 मार्च को जल दिवस मनाया गया। महज एक दिन पानी की चिंता के लिए देश और सूबाई सरकारों के द्वारा लाखों करोड़ों रूपए फूंक दिए जाते हैंपर उसके बाद सभी इस तरह के ज्वलंत मामलों में मौन साध लेते हैं। गर्मी बढ़ेगी तो इसका सीधा प्रभाव पानी पर पड़ना स्वाभाविक ही हैक्योंकि अगर तापमान बढ़ा तो जल की आवश्यकता भी उसी अनुपात में बढ़ेगी। धरती पर 97.5 फीसदी खारा पानी है तो दूसरी तरफ महज ढाई प्रतिशत ही मीठा पानी उपलब्ध हैइस ढाई प्रतिशत में भी महज 0.3 फीसदी ही सतह पर तरल जल के रूप में यह उपलब्ध है। मीठा पानी नाम सुनते ही हम नदीतालाबकुओं का अक्स अपने दिमाग में बिठा लेते हैंपर इन जल स्त्रोतों के संरक्षण की दिशा में सरकारें और जनसामान्य क्या कर रहे हैं इस बारे में विचार करने की फुर्सत हमें नहीं मिल पाती।

केंद्र सरकार को चाहिए कि वह सांसदों को दी जाने वाली निधि एवं सूबाई सरकारों को चाहिए कि वह विधायकों को दी जाने वाली निधि का 25 फीसदी हिस्सा उसमें से निकालकर उनके संसदीय और विधान सभा क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली नदियों पर कुछ कुछ निर्धारित दूरी पर स्टाप डेम जैसे स्ट्रक्चर खड़े करवाने की कवायद करे ताकि बारिश का वह जल जो नदियों के जरिए समुद्र के खारे पानी में जाकर मिल जाता हैउसे जगह जगह रोका जा सकेजो साल भर उस क्षेत्र के लोगों की जरूरतों को पूरा करने में सहायक होगा। इससे जगह जगह भूमिगत जलस्तर (ग्राऊॅड वाटर रिचार्ज) को बढ़ावा मिल सकेगा। इसके साथ ही भवन बनाए जाने के समय रेन वाटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्यता का पालन किन किन निकायों के द्वारा नहीं किया गया हैउन निकायों के सक्षम प्राधिकारियों के वेतन भत्तों से इसकी वसूली जाए ताकि जिन्हें नियमों का पालन कराना है वे भविष्य में नियमों के पालन में कोताही न कर पाएं।

आज जरूरत पानी को सहेजनेआसपास का पर्यवरण सुधारनेक्षेत्र को हरा भरा रखने और पर्यवरण के लिए नुकसानदेह चीजों का परित्याग करने की है। उम्मीद है सरकारों के द्वारा इस दिशा में ठोस एवं कारगर उपाए किए जा रहे होंगे या किए जाएंगे . . .!

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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


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