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अब देश में हिरासत केंद्रों पर बेकार की रार

 

06 जनवरी 2020


अपनी बात

अब देश में हिरासत केंद्रों पर बेकार की रार!

(लिमटी खरे)


जम्मू काश्मीर में आर्टिकल 370 की समाप्तिजम्मू एवं काश्मीर राज्यों का पुनर्गठनअयोध्या मसले का हल के बीच नागरिकता संशोधन अधिनियमनेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर)एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) के बाद अब हिरासत केंद्र यानी डिटेंशन सेंटर्स पर बहस तेज हो गई है। एक तरह से देखा जाए तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली छमाही चर्चाओंविवादित फैसलों के लिए जानी जाएगी। इन फैसलों से आधे लोग खुश तो आधे निराश दिख रहे हैं। संसद के अंदर मौन रहने वाली कांग्रेस और विपक्ष के तेवर अब बहुत ही तल्ख नजर आ रहे हैं। यक्ष प्रश्न यही है कि जिस मंच (प्लेटफार्म) पर विपक्ष को हमलावर होना थावहां तो वह खामोश रहा पर वहां से बाहर निकलते ही विपक्ष ने मानों इन सभी मामलों में तलवार पजा ली है . . .!


देश में इन सारी बातों पर एक के बाद एक चर्चाओं का बाजार तेजी से गर्म हो चुका है। सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर रार साफ नजर आ रही है। हिरासत केंद्र को लेकर अब चर्चाएं तेज हुई हैं तो बाकी सारे मामलों में शांति पसरी नजर आने लगी है। इन सभी मामलों में अब तक भ्रम की स्थिति पर से कुहासा छट नहीं सका है। देश में अन्य देशों से आने वाले उन लागों जो स्थायी रूप से देश में रह रहे हैं को दो श्रेणियों में बाटा जा सकता हैएक शरणार्थी और दूसरे घुसपैठिए। सरकार को शरणार्थी और घुसपैठियों के बीच के अंतर को जनता को विस्तार से समझाना चाहिए।

इसके पहले भी इस बारे में कई बार आवाजे उठीं पर सोशल मीडिया ने उस वक्त आमद नहीं दी थीइसलिए इस तरह की बातों को हवा नहीं मिल पाई। हिरासत केंद्र या डिटेंशन सेंटर के बारे में लोगों को कम ही भान होगा। दरअसलयह व्यवस्था आज की नहींवरन दशकों पुरानी है। वर्ष 2012 में देश की सबसे बड़ी अदालत ने भारत की सीमा के अंदर अवैध तरीके से रहते हुए लोगों के बारे में एक व्यवस्था दी थीइसके तहत यह कहा गया था कि जिन विदेशी नागरिकों को अवैध तरीके से देश में रहते हुए पकड़ा गया है और उन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है इस तरह के नागरिकों को जेल से बाहर निकालकर उन्हें डिटेंशन सेंटर्स यानी हिरासत केंद्र में रखा जाना चाहिए।

इसका मतलब साफ है कि लगभग आठ साल पहले यह बात देश की सबसे बड़ी अदालत के संज्ञान में थी। इसके अलावा इस मामले में केंद्र सरकार के द्वारा लगभग दो दशक पहले भी आदेश जारी किए गए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वज्ञरा जुलाई 1998 में एक परिपत्र जारी किया गया थाजिसमें कमोबेश इसी तरह की बात कही गई थी। इसके बाद लगभग दस साल तक इस मसले में किसी तरह की हलचल नहीं हुईफिर 2009 में 23 नवंबर2012 में 07 मार्च2014 में 29 अप्रैल एवं 10 सितंबर तथा 2018 में 07 सितंबर को एक बार फिर इसी आदेश को दोहराया गया था।

इसके पहले डिटेंशन सेंटर को लेकर ज्यादा शोर शराबा इसलिए भी नहीं हो पाया थाक्योंकि यह आम भारतीय से जुड़ा मसला नहीं था। इसके अलावा हिरासत केदं्रों की व्यवस्था को नागरिकता के साथ जोड़कर सवाल नहीं उठाए जा रहे थे। सोशल मीडिया पर इस तरह के कमोबेश हर मसले में जिस तरह से सवाल जवाब चल रहे हैंवह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है। इस तरह सोशल मीडिया पर जारी विषवमन से बहुत अच्छी स्थितियां निर्मित तो नहीं ही हो रही हैं।

दरअसलहिरासत केंद्र की अवधारणा के लिए हमें विदेशी नागरिक अधिनियम (फारेनर्स एक्ट) 1946 एवं पासपोर्ट (भारत में प्रवेश के कानून) अधिनियम का अध्ययन करना होगा। फारेनर्स एक्ट 1946 की धारा 0 (2) (स) में कहा गया है कि भारत सरकार को यह अख्तियार है कि उसके द्वारा किसी भी विदेशी नागरिक को किसी विशेष स्थान पर आने जाने से वंचित रखा जा सकता है। इसी तरह पासपोर्ट अधिनियम 1920 के अनुसार भारत सरकार के द्वारा इस तरह के व्यक्ति जो कि बिना किसी वैध दस्तावेजपासपोर्ट आदि के भारत में प्रवेश करता है उसे भारत से निष्काशित कर सकती है। राज्य सरकारों को भी संविधान के अनुच्छेद 258 (1) में यह अधिकार दिए गए हैं।

देश भर में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों पर मुकदमे चलाए जाने के बाद उन्हें सजा दी जाती रही है। सजा पूरी होने के बाद एक बड़ी समस्या यह थी कि उन नागरिकों को रखा कहां जाए! इसलिए अधिकांश मामलों में सजा पूरी करने के बाद भी इस तरह के नागरिकों को जेल में ही निरूद्ध रखा जाता रहा हैक्योंकि इन्हें खुला छोड़ा नहीं जा सकता है। वर्ष 2012 में असम में राज्य सराकर के द्वारा सिलचरकोकराझार एवं गोलपाड़ा की जेल के अंदर ही हिरासत केंद्रों का निर्माण कराया गया था। इसके बाद जोरहाटतेजपुर एवं डिब्रूगढ़ की जेलों में भी डिटेंशन सेंटर्स बनाए गए थे।

इसके अलावा दिल्ली के लामपुर सेवा सदन व शहजाादाबाग में महिलाओं के लिए अलग सेवा सदन बनाया गया। राजिस्थान की अलवर जेलअमृतसर की केंदीय जेल के अतिरिक्त तमिलनाडूगुजरात और पश्चिम बंगाल में भी डिटेंशन सेंटर्स हैं। इसके अलावा असम के गोवालपारा में देश का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर 46 करोड़ रूपए की लागत से तैयार हो रहा है जो संभवतः इस साल मार्च तक बनकर तैयार हो जाए। यहां तीन हजार लोगों के रहने के लिए चार मंजिला वाली 15 इमारतें तैयार की जा रही हैंइनमें से दो इमारतों में महिलाएं एवं शेष 13 में पुरूषों को रखा जाएगा। एक आंकलन के अनुसार दुनिया के चौधरी अमेरिका के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा दूसरा डिटेंशन सेंटर होगा।

वैसे देखा जाए तो हर देश को इस बात का पूरा अख्तियार है कि उसकी सरहद के अंदर बिना किसी इजाजत के आने वाले विदेशी नागरिकों को अपने देश में न रहने दे। अगर शरणार्थी के रूप में कोई आता है तो उसे रहने की इजाजत देना या न देना सरकार के हाथ में हैपर अगर कोई नागरिक बिना किसी अनुमतिजानकारी के सीमा पार कर देश में घुसता है तो वह घुसपैठिया की श्रेणी में आएगाऔर इस तरह के नागरिक के खिलाफ सरकार को कार्यवाही करना ही चाहिए।

जो देश के नागरिक हैंउन्हें इस तरह की कार्यवाही से बिल्कुल परेशान होने की जरूरत नहीं है। उनकी नागरिकता पर सरकार कभी भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकती है। रही बात अन्य विषयों जिन पर विवाद खड़ा हो रहा हैकी तो इन सारे विषयों पर सालों से काम चल रहा हैये सब कुछ आज अचानक ही पैदा नहीं किए गए हैं। हो सकता है कि केंद्र सरकार के द्वारा सालों से लंबित इस तरह के मसलों को एक के बाद एक हल करना आरंभ किया गया होजिससे बवाल मचने लगा हो।

केंद्र सरकार को चाहिए कि इस तरह के मसले जिन पर विवाद उठ रहे हैंइसके लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाकर मीडिया की उपस्थिति में बैठक कराई जाए एवं इसका सीधा प्रसारण भी कराया जाए। इसके अलावा देश भर के सूबों के निजामों (मुख्यमंत्रियों) की बैठक भी बुलाई जाकर उनका पक्ष भी सुना जाए और उन्हें भी वस्तु स्थिति से आवगत कराया जाएताकि सोशल मीडिया पर चल रहे वाद विवाद पर विराम लग सके। यह सही है कि किसी भी बात के पक्ष या विपक्ष में माहौल तैयार करने में सोशल मीडिया की महती भूमिका होती है। सोशल मीडिया पर अगर इस तरह की व्यर्थ की बहसों में युवा अपनी उर्जा जाया करते रहेंगे तो हम कब उनकी उर्जा को सकारात्मक दिशा में ले जाकर उसका उपयोग देश की उन्नति के मार्ग प्रशस्त करने में कर सकेंगे! इसलिए यह जरूरी है कि जल्द से जल्द केंद्र सरकार के द्वारा इस तरह के संवेदनीशल मामले में ठोस कदम उठाए जाएं! (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


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