उच्च सदन यानी राज्य सभा में अधिकारियों की मदद के लिए तैनात मार्शल्स के गणवेश को बदलने के साथ ही इस पर रार भी आरंभ हो गई है। राज्य सभा के 250वें सत्र के साथ ही मार्शल्स के गणवेश को भी बदल दिया गया है। मार्शल्स का गणवेश राज्य सभा सांसदों के साथ विचार विमर्श के उपरांत बदलने का निर्णय लिया गया है तो इसमें आपत्ति की कोई बात नहीं है, किन्तु जिस तरह से राज्य सभा के सभापित के द्वारा मार्शल्स के गणवेश को बदलने को लेकर लिए गए निर्णय पर एक बार फिर विचार करने का निर्देश दिया है, उसे देखकर यही लग रहा है कि यह काम आम सहमति के आधार पर शायद ही किया गया हो।
पहले मार्शल्स कलगी वाली सफेद पगड़ी के साथ पारंपरिक औपनिवेशिक परिधान में दिखाई देते थे। अब उन्हें गहरे नीले रंग की वर्दी और पीकेप पहनना अनिवार्य किया गया है। कहा जा रहा है कि यह बदलाव मार्शल्स की मांग पर ही किया गया है। राज्य सभा सचिवालय में सभापति एवं अन्य पीठासीन अधिकारियों के काम में मदद के लिए मार्शल्स की तैनाती होती है।
बताते हैं कि मार्शल्स का पूर्व में पहना जाने वाला परिधान 1950 में निर्धारित किया गया था। इसके लगभग 70 सालों बाद इसमें परिवर्तन किया गया है। मार्शल्स चाहते थे कि उन्हें मार्डन लुक वाला परिधान पहनने के लिए दिया जाए। इसके लिए राज्य सभा सचिवालय एवं सुरक्षा अधिकारियों के बीच कई दौर की बैठकों के बाद इसमें परिवर्तन कर नई गणवेश तैयार की गई है।
देखा जाए तो गणवेश का निर्धारण करना किसी कार्यालय का अंदरूनी मामला होता है, किन्तु जब बात देश की सबसे बड़ी पंचायत की हो तो इसमें पंचायत के सदस्यों की राय भी महत्वपूर्ण ही मानी जानी चाहिए। इस गणवेश को अंतिम रूप देने के पहले अगर राज्य सभा सदस्यों को विश्वास में ले लिया जाता तो निश्चित तौर पर इस फैसले पर इस तरह से पुर्नविचार की जरूरत शायद नहीं ही पड़ती।
मींिडया में जारी खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सेना की वर्दी से मिलते जुलते गणवेश पर पूर्व आमी प्रमुख सेवानिवृत जनराल वी.पी. मलिक के द्वारा एक ट्वीट कर कहा है कि असैनय कर्मियों द्वारा सैन्य वर्दी को पहनना गैर कानूनी और सुरक्षा के लिए खतरा माना जा सकता है।
इसके पूर्व में भी निजि सुरक्षा एजेंसियों के द्वारा सेना या पुलिस के समान वर्दी का उपयोग अपने कर्मचारियों के लिए किए जाने पर कोहराम मचा था। इसके बाद निजि सुरक्षा एजेंसियों को अपने कर्मचारियों के गणवेश का रंग बदलना पड़ा था। सेन्य कर्मियों, अर्ध सैनिक बलों और राज्य की पुलिस फोर्स की अपनी गणवेश है, उनके रंग अलग अलग हैं।
वैसे देखा जाए तो आज भी देश में परिधान का मामला हो या दीगर कोई और, हर मामले में आज भी आजादी के पहले बनाए गए नियम कायदों को ही देश में लागू किया गया है। देश को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा होने के बाद भी हुक्मरानों के द्वारा अपना स्वदेशी सिस्टम पूरी तरह से विकसित नही किया है।
आज भी दासता की प्रतीक न जाने कितनी इमारतें हैं जिनमें देश के गणमान्य नागरिक निवास कर रहे हैं। आजादी के बाद बनाई गई इमारतों, पुल पुलियों पर ही अगर नजर डाली जाए तो नब्बे के दशक के उपरांत बनाए गए ढांचे बहुत ही कमजोर साबित हुए हैं। इसका कारण निश्चित तौर पर इन सबकी नींव में भ्रष्टचार का होना ही माना जा सकता है।
बहरहाल, राज्य सभा में मार्शल्स के गणवेश को बदले जाने पर ज्यादा शोर शराबा करना शायद उचित नहीं माना जा सकता है। अब जबकि राज्य सभा के सभापति एवं उपराष्ट्रपति के द्वारा इस मामले में पुर्नविचार की बात कही है तो माना जाना चाहिए कि अब कुछ बेहतर ही निकलकर सामने आ सकता है।
इसके लिए राज्य सभा के सांसदों को चाहिए कि विशुद्ध देशी परिधानों में से जो भी परिधान उचित लगें, जो मार्शल्स को पहनने में सुगम और सुलभ हों उन्हें ही अंतिम रूप दिया जाकर मार्शल्स को नए क्लेवर में पेश किया जाना चाहिए।
राज्य सभा एक ऐसा मंच है जहां अनेक महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगती है। यहां की तस्वीरें देश विदेश के मीडिया में भी प्रमुखता के साथ स्थान पाती हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि यहां के कर्मचारियों के गणवेश इस तरह का हो जिससे देश के लिए अच्छा और सकारात्मक संदेश देश दुनिया के सामने जाए। लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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