लिमटी की लालटेन 608
अमीन सायनी की आवाज की खनक लोगों को सड़क चलते रूकने पर मजबूर कर दिया करती थी . . .
रेडियो को घरों घर तक लोकप्रिय करने वाले अनाऊॅसर अमीन सायनी ने दुनिया को कहा अलविदा
(लिमटी खरे)
एक समय था जब लोगों के मनोरंजन के लिए रेडियो ही इकलौता साधन हुआ करता था। सिनेमाघर उन दिनों में छोटे, मझौले कस्बों में कम ही हुआ करते थे, पर रेडियो की पहुंच गांव गांव, घर घर तक हुआ करती थी। अस्सी के दशक के अंत तक और नब्बे के दशक के आगमन के पूर्व रेडियो का जादू लोगों के सर चढ़कर बोला करता था। यहां तक कि पचास की आयु पार चुकी वर्तमान पीढ़ी को यह बात बेहतर तरीके से पता होगी कि अस्सी के दशक तक शादी विवाह में दहेज में रेडियो अनिवार्य ही हुआ करता था।
रेडियो पर वैसे तो न जाने कितने कार्यक्रम प्रसारित होते थे किन्तु बिनाका गीतमाला का अपना एक अलग महत्व हुआ करता था। बिनाका गीत माला को अलग पहचान देने वाले रेडियो की दुनिया के ग्रेंड ओल्ड मेन या गोल्डन मेन कहे जाने वाले अमीन सायनी ने 91 साल की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अमीन सायनी इकलौते ऐसे रेडियो अनाऊॅसर माने जा सकते हैं जिन्होंने रेडियो के जमाने में भारत ही नहीं वरन संपूर्ण एशिया में लोकप्रियता की बेहतर मिसाल कायम की थी।
1950, 1960 या 1970 के दशक में पैदा हुई पीढ़ी खुद को अमीन सायनी की तरह ही बनाना चाहती थी। लोग अपनी आवाज को अमीन सायनी की आवाज की तरह नकल करके निकालना चाहते थे। अमीन सायनी का तकिया कलाम ‘जी हां, बहनों और भाईयों‘ उस दौर में सभी की जुबान पर हुआ करता था। अमीन सायनी की आवाज में खनक थी, कशिश थी, उनकी आवाज उर्जा से लवरेज हुआ करती थी। आपने 54 हजार से ज्यादा रेडियो कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, यह बात लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में दर्ज है।
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जो लोग रेडियो की दुनिया में पैदा हुए हैं, उनके लिए अमीन सायनी कोई नया नाम नहीं है। 21 दिसंबर 1931 को देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में जन्मे अमीन सायनी ने पहले रूपहले पर्दे पर अभिनेता बनने का असफल प्रयास भी किया। वे गायक भी बनना चाहते थे, पर उनकी आवाज गाने के बीच में फट जाने से उनके हौसले पस्त हो गए थे। उनके भाई हामिद अंसारी ने उन्हें रेडियो में काम दिलवाया। अमीन सायनी के जीवन से अनेक किस्से जुड़े हुए हैं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन अगर रेडियो जॉकी नहीं बन पाए तो उसके पीछे इकलौती वजह अमीन सायनी ही थे। दरअसल, अमिताभ बिना समय लिए ही अमीन सायनी से मिलने जा पहुंचे, जो बात अमीन सायनी को नागवार गुजरी और उन्होंने अमिताभ से मिले बिना ही उन्हें खारिज कर दिया था।
गुजरे जमाने में रेडियो सीलोन जो बाद में श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन हो गया था के सबसे मशहूर कार्यक्रम जो बुधवार की रात 08 बजे प्रसारित होता था, जिसका प्रसारण समय महज आधे घंटे का ही था, एवं जिसका नाम बिनाका गीत माला जिसे 1952 में आरंभ किया गया था को अमीन सायनी के द्वारा 42 साल तक होस्ट किया गया। इसके बाद इसका नाम बदलकर सिबाका गीतमाला कर दिया गया था। अमीन सायनी ने रविवार को सुबह 10 बजे आने वाले एस कुमार्स का फिल्मी मुकदमा भी होस्ट किया जो काफी मशहूर हुआ करता था। आज की युवा पीढ़ी शायद यह न जानती हो कि बुधवार की रात 08 बजे जैसे ही बिनाका गीतमाला का प्रसारण आरंभ होता था वैसे ही गलियां सूनी हो जाया करती थीं, इतना ही नहीं मोहल्लों, बगीचों में ऊॅचे स्थान पर ट्रांजिस्टर रख दिया जाता था और आसपास भीड़ इसे सुना करती थी। प्रौढ़ हो रही पीढ़ी के कानों में आज भी बिनाका गीतमाला के एनाऊॅसर अमीन सायनी की आवाज ‘जी हां, बहनों और भाईयों‘ गूंजा करती है। साल के आखिरी बुधवार को जब बिनाका गीतमाला में साल भर के गानों को अलग अलग स्थान जिसे अमीन सायनी पायदान कहा करते थे में पहली पायदान पर कौन सा गाना गाया है यह जाने की उत्कण्ठ इच्छा लोगों के मन में रहा करती थी। वैसे हर बुधवार को जब पहली पायदान के गाने के बारे में अमीन सायनी उद्घोषणा करते थे तब इससे पहले एक बिगुल बजा करता था।
अमीन सायनी ने एक बार साक्षात्कार में बताया था कि उन्होंने अपने पिता से पारसी सीखी, मॉ से गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी। इस तरह उनकी भाषाओं पर जबर्दस्त पकड़ हुआ करती थी। उस दौर में जब संसाधनों का अभाव तो था ही साथ ही तकनीक उतनी विकसित नहीं थी, तब अमीन सायनी के द्वारा जिस तरह अपनी भाषा, प्रस्तुतिकरण, आवाज आदि के जरिए श्रोताओं के मन में जगह बनाई वह वास्तव में रेडियो जॉकी बनने की इच्छा रखने वाले नौजवानों के लिए नज़ीर से कम नहीं माना जा सकता है।
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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