Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चिटफंड पर सरकारी कवायद से शायद ही बदले स्थितियां!

 

चिटफंड कंपनियों के मकड़जाल में ये कंपनियां आम नागरिकों विशेषकर ग्रामीण भोली भाली जनता को इस कदर उलझा देती हैं कि उसे इससे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझता। जब तक वह इन कंपनियों की सच्चाई से रूबरू होता है तब तक इस तरह की कंपनियां नौ दो ग्यारह हो जाती हैं।

इस तरह की कंपनियां छोटे शहरों में जाकर अपना कार्यालय बनाती हैं। इनके कार्यालय इस कदर आकर्षक होते हैं कि ग्रामीण जनता यहां बरबस ही आकर्षित होकर पहुंचती है। इसके बाद आरंभ होता है इनका असली खेल। इनके द्वारा छोटी छोटी बचत के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाकर बड़ा ब्याज देने के लुभावने वायदे न केवल किए जाते हैं वरन हेण्ड बिलपंपलेट्स के जरिए इन्हें समझाया भी जाता है। जाहिर है इनके पंप्लेट्स और हेण्ड बिल्स की कोई वैधता नहीं होती है तो उस पर किसी का नियंत्रण भी नहीं होता है।

इसके बाद बहुत ही चतुराई से निवेशकों का पैसा दुगना या तीन गुना करने का प्रलोभन देकर इस तरह की कंपनियां इस काम को मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) में तब्दील कर देती हैं। मल्टी लेवल मार्केटिंग में कंपनियां मोटे मुनाफे का लालच देकर लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं। साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं। ज्यादा मुनाफा कमाने की चाह में लोग अपने रिश्तेदारोंनातेदारोंदोस्तों आदि को भी इस एमएलएम में भागीदार बना देती हैं। इस काम का पैसा बकरी पालनप्लांटेशन आदि योजनाओं में लगाकर लोगों को ज्यादा लाभ देने का वायदा भी किया जाता है।

देश में कमोबेश हर प्रदेश और शहर में चिटफंड कंपनियां बहुतायत में दिख जाएंगी। इस तरह की कंपनियों के द्वारा एमएलएम में एक तरह का पिरामिड तैयार किया जाता है। इसके तहत ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने से नए जुड़े सदस्य के ऊपर वाली चेन्स को बहुत लाभ होने की बात भी कही जाती है। शुरूआती दौर में तो सीाी को सभी का कमीशन बराबर मिलता है।

पर दिक्कत तब आती है जब पुराने निवेशकों की संख्या (अर्थात देनदारियां) नए निवेशकों (नए निवेश) से ज्यादा हो जाती है अर्थात जब नकद प्रवाह में असंतुलन या कमी आ जाती है और कंपनी लोगों को उनकी परिपक्वता अवधि पर पैसे नहीं लौटा पाती है तो चिट फण्ड कंपनी पैसा लेकर गायब हो जाती है।

2009 में सत्यम कंप्यूटर घोटाला तो 2013 में शारदा घोटाला सामने आया। ये घोटाले करोड़ों नहींवरन हजार करोड़ रूपए तक के थे। शारदा घोटाले में तो 34 गुना तक फायदा निवेशकों को देने की लालच दिया गया था। इस समूह के द्वारा अनेक राज्यों के लगभग तीन सैकड़ा शहरों में अपनी शाखाएं खोलीं थीं इसी तरह का एक घोटाला रोजवैली के नाम पर भी सामने आ चुका है।

ये तो वे नाम हैं जो हजार करोड़ रूपए से ज्यादा की रकम को बिना डकार लिए पचा गई कंपनियां हैं। इससे कम राशियों वाली तो अनगिनत कंपनियों के द्वारा देश भर में लोगों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है। शहरों में काम करने वाली इनकी शाखाओं के कर्मचारियों के द्वारा पूरी व्यवस्था को समझकर अब अपने खुद के द्वारा ही कंपनी खोलकर लोगों को छला जा रहा है।

मजे की बात तो यह है कि इस तरह की कंपनियां जैसे ही देनदारी बढ़ती है वैसे ही रातों रात बोरिया बिस्तर समेटकर गायब हो जाती हैं। कुछ महीनों बाद वे सारे कर्मचारी जो पहली कपनी के कर्मचारी हुआ करते थे वे ही नए नाम की कंपनी बनाकर उसी शहर के अन्य स्थान पर अपना कार्यालय खोल लेते हैं।

चिटफंड कंपनियों के द्वारा अनेक प्रदेशों की अर्थव्यवस्था का ही कचूमर निकालकर रख दिया गया है। अगर त्रिपुरा का उदहारण लिया जाए तो त्रिपुरा की आबादी 37 लाख और इस राज्य का बजट 16 हजार करोड़ रूपए है। इस राज्य में चिटफंड कंपनियों के द्वारा 16 लाख से अधिक लोगों को अपने जाल में फंसाकर यहां लगभग दस हजार करोड़ का ही घोटाला कर दिया है।

अब सरकार के द्वारा चिटफंड कंपनियों की मश्कें कसने की कवायद आरंभ की गई है। चिटफंड संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा ने अपनी मंजूरी दे दी है। इसके तहत पोंजी स्कीम (इटली में जन्मे चाल्स पौंजी के नाम पर चलने वाली स्कीम) को इसके तहत अवैध माना गया हैकिन्तु चिटफंड को वैध करार दिया गया है।

केंद्र सरकार ने द बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल2018 में आधिकारिक संशोधनों को पारित कर दिया गया है। इसके कानून का रूप लेने के बाद जो भी जमा योजनाएं इस कानून के तहत पंजीकृत नहीं होंगीवे अवैध हो जाएंगी। ऐसी कंपनियों के मालिकएजंेट्स और ब्रांड एंबेसडर के खिलाफ कार्रवाई होगी।

उनकी संपत्ति बेचकर गरीबों की पूंजी वापस कराई जाएगी। इसके तहत अनियमित जमा राशि से संबंधित गतिविधियों पर पूर्ण रोक लग सकेगी। इसके साथ ही अनियमित जमा राशि लेने वाली योजना को बढ़ावा देने अथवा उनके संचालन के लिए सजा का प्रावधान होगा। संसद की वित्त मामलों की स्थायी समिति ने इस विधेयक के प्रावधानों के संबंध में अपनी रिपोर्ट दी थी। समिति की सिफारिशों के आधार पर ही सरकार ने संबंधित धाराओं में आधिकारिक संशोधन करने का फैसला किया। सरकार ने यह विधेयक 18 जुलाई2018 को संसद पेश किया था। इसके बाद इसे संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था। संसदीय समिति ने तीन जनवरी2019 को ही रिपोर्ट दी थी।

कानून में चिटफंड की मौद्रिक सीमा तीन बढ़ाने तथा फोरमेन के कमीशन को 07 फीसदी करने का प्रावधान है। अनियमितताओं को लेकर चिंता सामने आने पर सरकार ने एक परामर्श समूह बनाया। 1982 के मूल कानून को चिटफंड के विनियमन का उपबंध करने के लिए लाया गया था। संसदीय समिति की सिफारिशों पर ही संशोधन लाए गए।

पारित कानून में स्पष्ट कहा गया है कि सिक्योरिटी जमा को सौ से 50 फीसदी करना उन लोगों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने निवेश किया है। जिन लोगों ने निवेश किया है उनको उनकी रकम वापस मिलना ही चाहिए। इसमें सजा का प्रावधान भी कर दिया गया है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि पहले से चल रही चिटफंड कंपनियां इस विधेयक के दायरे के बाहर होंगी। यक्ष प्रश्न यही खड़ा है कि जिन चिटफंड कंपनियों को सियासी संरक्षण मिला हुआ है उन कंपनियों का क्या बाल भी बांका हो पाएगा! (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)

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