लिमटी की लालटेन 109
दुनिया के लिए नया नहीं है कोरोना का नाम!
(लिमटी खरे)
कोरोना कोविड 19 के संक्रमण से आज समूची दुनिया हिली हुई है। चीन के वुहान प्रांत से
निकला यह वायरस आज लगभग समूची दुनिया में अपना कहर बरपा रहा है। कोरोना नाम
दुनिया के लिए नया नहीं है। इस नाम से दुनिया इस सदी के आरंभ में ही परिचित हो चुकी
थी।
पुराने शोधों पर अगर नजर डाली जाए तो कोराना वायरस की उत्पत्ति के संकेत 1930 के
आसपास ही मिलने लगे थे। इस पर पहला अध्ययन एक महिला वैज्ञानिक डोरोथी हामरे के
द्वारा 1962 में किया गया था। उनका पहला शोध पत्र 1966 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें
उनके द्वारा इस बात की ओर इशारा किया था कि इस वायरस के कारण मनुष्य के श्वसन तंत्र
पर चोट पहुंचती है।
शोधों से यह भी साफ हो जाता है कि डोरोथी हामरे ही थीं, जिनके द्वारा कोरोना वायरस को
प्रथक से पता करने में कामयाबी हासिल की थी। इसके बाद अन्य वैज्ञानिक मैल्कम ब्योने और
डेविड टायरेल के द्वारा भी कमोबेश इसी तरह के शोध किए गए थे। डेविड टायरेल की
प्रयोगशाला मे ही जून अलमेदा के द्वारा पहली बार यह बताया था कि कोरोना किस तरह
दिखता है।
शोध के अनुसार इस वायरस की संरचना एक तरह से गले की माला या हार की तरह ही होती
है। ग्रीक शब्द कोरोने से लेटिन शब्द कोरोना बना था। कोरोना का मतलब हार या माला होता
है, इसलिए पहली मर्तबा 1968 में कोरोना शब्द का प्रयोग हुआ था, पर उस समय तक यह
वायरस बहुत ज्यादा खतरनाक नहीं था।
कोरोना परिवार में अनेक वायरस हैं। इस खानदान के एक अन्य वायरस सार्स ने इसी सदी के
आरंभ में आमद दी। सार्स ने 2002 एवं 2003 में लगभग 26 देशों में कहर बरपाया था। इसके
अलावा मर्स 2012 ने भी लगभग 27 देशों में अपना प्रभाव दिखाया था। कोरोना खानदान का
मर्स वायरस बहुत ज्यादा ताकतवर हुआ करता था, पर कोरोना कोविड 19 इस खानदान का
सबसे कम खतरनाक वायरस माना गया है, फिर भी इस वायरस ने समूची दुनिया को हिलाकर
रख दिया है।
आंकड़ों पर अगर गौर करें तो मर्स नामक वायरस के द्वारा तीन में से एक मरीज की जान ली
जा रही थी तो सार्स के द्वारा दस में से एक मरीज को काल के गाल में समाने पर मजबूर कर
दिया जाता था। कोविड 19 सौ संक्रमित मरीजों में से महज दो लोगों की जान भी नहीं ले पा
रहा है। इस लिहाज से इसे बहुत ही कमजोर माना जा सकता है, या इसकी मारक क्षमता बहुत
कम आंकी जा सकती है।
सबसे बड़ी त्रासदी यह मानी जा सकती है कि नए नए शोधों के बाद भी उन्नत हो चुके
चिकित्सा विज्ञान के पास इन तीनों वायरस के लिए कोई टीका या दवा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य
संगठन भी बार बार यही बात दुहरा रहा है कि अगर कोविड 19 की दवा या वैक्सीन न मिले तो
किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
वायरस के बारे में एक बात और कही जाती रही है कि वायरस अपनी प्रजाति लगाता रही
बदलते रहते हैं। कोविड 19 की भी अनेक तरह की प्रजातियों की बात वैज्ञानिक कर रहे हैं।
इसकी जो प्रजाति अमेरिका में है वह भारत में नहीं आई है, जो राहत की बात मानी जा सकती
है। संभवतः यही कारण है कि अमेरिका में जितने लोग दम तोड़ रहे हैं उससे बहुत कम तादाद
में भारत में इसका प्रभाव दिख रहा है।
यक्ष प्रश्न यही खड़ा दिख रहा है कि अगर इस वायरस का टीका, वैक्सीन या इलाज नहीं मिला
तब क्या होगा! विशेषज्ञ तो यही कहते दिख रहे हैं कि या तो इसकी कोई सटीक दवा मिल जाए
या तब तक इंतजार किया जाए जब तक दुनिया भर के लगभग 65 से 70 फीसदी लोग इसकी
चपेट में न आ जाएं। अर्थात लोगों के शरीर में इस वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज तैयार
होना आरंभ हो जाएं। जब एंटी बॉडीज लोगों के शरीर में बनने लगेंगी तब इस वायरस को ठौर
नहीं मिलने पर ही इसके संक्रमण में गिरावट दर्ज की जा सकती है।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY