05 फरवरी 2020
अपनी बात
हुक्मरानों की अनदेखी से नशे की जद में युवा पीढ़ी!
(लिमटी खरे)
इक्कीसवीं सदी का युवा नशे की गिरफ्त में बुरी तरह फंस चुका है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। बिड़ी, सिगरेट, तंबाखू, शराब का चलन जोरों पर तो है ही इसके साथ ही साथ सूखा नशा और इंजेक्शन की शक्ल में दवाओं का नशा सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। सूखा नशा करने वालों का मुंह सूंघकर आप यह पता नहीं कर सकते हैं कि उसने नशा किया है। नशे के उन्माद में युवाओं का बर्ताव आक्रमक भी हो रहा है। बात बात पर लड़ाई झगड़े, मारपीट की घटनाओं में भी तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। य़क्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि आखिर इन युवाओं को नशे की सामग्री कहां से मिल रही है और इसको खरीदने के लिए उनके पास रूपए कहां से आ रहे हैं। नशे में डूबी युवा पीढ़ी अब अपराध की अंधी सुरंग की ओर भी अग्रसर होता दिख रहा है। गांव, छोटे शहरों से लेकर महानगरों में भी जरायमपेशा लोगों में युवाओं की तादाद बढ़ती दिख रही है जो चिंता का विषय मानी जा सकती है। ऐसा लग रहा है मानो कानून का इनको कोई भय नहीं रह गया है। हुक्मरानों को इस बारे में विचार करने की जरूरत है कि आखिर उनसे चूक कहां हो रही है!
जब भी कहीं चुनाव होते हैं वहां अवैध रूप से शराब की खेप पकड़ने का सिलसिला जारी हो जाता है। इसके अलावा वाहनों की सघन चेकिंग में बिना पर्याप्त कारण के पैसा भी यहां से वहां ले जाए जाते हुए पकड़ा जाता है। जाहिर है यह सब मतदाताओं को लुभाने के लिए ही किया जाता होगा। अगर शराब और पैसे के दम पर ही चुनाव जीते जाते हैं तो फिर उन वायदों का क्या जो सियासी दल या उनके उम्मीदवारों के द्वारा जनता से किए जाते हैं। चुनाव लोकसभा के हों, विधान सभा के या स्थानीय निकायों अथवा पंचायतों के, जैसे ही आचार संहिता प्रभावी होती है वैसे ही प्रशासन, पुलिस सहित आबकारी और अन्य अमले हरकत में आ जाते हैं। इनके द्वारा छापामार कार्यवाही को अंजाम दिया जाता है।
देखा जाए तो जिन भी महकमों के द्वारा छापामार कार्यवाही को अंजाम दिया जाता है या चेकिंग की जाती है उन्हें इस काम को करने का अधिकार सरकारों के द्वारा दिया गया है। वे चाहें तो साल के 365 दिन इस काम को अंजाम दे सकते हैं, पर इन विभागों की सक्रियता महज चुनावों के दौरान ही देखने को क्यों मिलती हैं। देश के हर जिले में जिलाधिकारी का पद होता है। जिलाधिकारी का काम विभिन्न विभागों के जिलाधिकारियों के जरिए जिले में व्यवस्थाओं को बनाने के साथ ही साथ सरकारों के द्वारा बनाए गए नियम कायदों के हिसाब से उन्हें संचालित करने का होता है।
अनेक प्रदेशों में हर सप्ताह समय सीमा की बैठकों का आयोजन भी इसी बात के मद्देनजर किया जाता है कि यह पता चल सके कि विभिन्न महकमों में काम किस तरह संपादित किया जा रहा है। जिलाधिकारी चाहें तो अवैध रूप से बिक रहे मादक पदार्थों के बारे में संबंधित विभागों की मश्कें कस भी सकते हैं। देश में अनेक स्थानों पर आबकारी विभाग के द्वारा साल में अनेक बार शराब पकड़ने की खबरें आती रहती हैं। पर इस तरह की खबरों में देशी शराब, जो ग्रामीण अंचलों में बनाई जाती है के पकड़े जाने की बातें ही मुख्य रूप से सामने आती दिखीं हैं। अंग्रेजी शराब के अलावा अन्य नशे की चीजें जो नियमों को बलाए ताक पर रखकर बेची जा रही हैं उस मामले में खबरें कम ही देखने को मिलती हैं।
बहरहाल, जैसे ही चुनावों की रणभेरी बजती है, वैसे ही उस प्रदेश में प्रशासन चाक चौबंद होता दिखता है। इसमें अवैध सामान की धरपकड़ की बात सामने आती है। शराब का ही अगर उदहारण लिया जाए तो शराब की हर बोतल पर बैच नंबर अंकित होता है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि उस बैच नंबर की शराब को किस डिपो से विक्रय के लिए भेजा गया था। इसके अलावा वे लोग भी पकड़ में आते हैं जो शराब या अन्य चीजों का परिवहन करते हैं। पुलिस चाहे तो इन लोगों से यह आसानी से पता कर सकती है कि जो भी अवैध सामग्री पकड़ाई है वह किस दुकान या स्थान से उन्होंने ली थी। इस तरह पुलिस चाहे तो वास्तविक आरोपियों तक आसानी से पहुंच सकती है, किन्तु चुनावों के दौरान शराब और अन्य आपत्तिजनक सामग्री पकड़ने की बात तो सामने आती है पर इसके स्त्रोत तक प्रशासन या पुलिस के द्वारा पहुंचने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती है।
वर्तमान में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में चुनाव करीब आ चुके हैं। महज कुछ दिन बाद ही मतदान होना है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर दिल्ली पुलिस पर उसका नियंत्रण नही है। दिल्ली पुलिस सीधे सीधे केंद्र के नियंत्रण में है। जाहिर है राजनीति में सब कुछ जायज होता है। राजनीति की परिभाषा ही यह मानी जाती है कि जिस नीति से राज हासिल हो उसे ही राजनीति कहा जाता है।
दिल्ली पुलिस के द्वारा चुनावों के दौरान अब तक जप्त की गई नशीले पदार्थों की खेप से एक आश्चर्यजनक बात निकलकर सामने आई है, वह यह कि इस बार नशीले पदार्थों के जरिए सत्ता पर काबिज होने के लिए जतन किए जा रहे हैं। यह कहने का आधार महज इतना है कि अब तक दिल्ली पुलिस के द्वारा पकड़े गए नशीले पदार्थ की तादाद पिछले चुनावों की अपेक्षा चौबीस फीसदी ज्यादा है।
चुनावों के दौरान आम तौर पर शराब, कंबल, पैसा आदि बांटे जाने की खबरें आम हुआ करती हैं, पर इस बार शराब को गांजे ने पीछे छोड़ दिया है। दिल्ली में शराब की तुलना में गांजा बहुत ज्यादा पकड़ा गया है। दिल्ली में गांजे का पकड़ा जाना इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि देश भर में अवैध करार दिए गए गांजे की सबसे बड़ी मंडी देश की राजनैतिक राजधानी बन चुकी है। यह वाकई चिंता की बात मानी जा सकती है।
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा के सूत्रों का कहना है कि हो सकता है कि शराब और गांजे की बड़ी खेप चुनावों के मद्देनजर लाई गई हो। यह तो माना जा सकता है कि कोई व्यक्ति शौकिया तौर पर शराब का सेवन करता हो, पर गांजा! गांजे का सेवन शौकिया तौर पर यदा कदा करने के उदहारण कम ही देखने को मिलते हैं। इससे जाहिर होता है कि गांजा अब दिल्ली के युवाओं की रगों में नशा बनकर दौड़ने लगा है।
आम उम्मीदवार के द्वारा मतदाताओं को रिझाने के लिए इस तरह से नशे का प्रयोग करना अब प्यारा शगल बनता दिख रहा है। इसके साथ ही साथ यह बात भी विचारणीय होगी कि अपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की बढ़ती तादाद भी इस तरह से नशे को बढ़ावा देने वाली कवायद के मूल में कहीं न कहीं हो सकती है। एक समय था जब सियासी दलों और उम्मीदवारों के द्वारा लोक लुभावन वायदों के जरिए चुनावी वैतरणी पार करने का प्रयास किया जाता था, पर अब तो वायदों के बजाए नशे का ही प्रयोग किया जाने लगा है, जिस पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है। ऐसा कहने के पीछे कारण महज इतना है कि हर बार चुनवों के दौरान नशीले पदार्थों का जखीरा जो बरामद होता है।
इस तरह की परिस्थितियों को देखकर यही लगने लगा है कि अब चुनाव निष्पक्ष नहीं रह गए हैं। सियासतदारों की नैतिकता भी धीरे धीरे समाप्त हो चुकी है। कल तक सांसद विधायकों को जनसेवक कहा जाता था, पर अब इन्हें मिलने वाली सुविधाओं, पैंशन, दबदबे को देखकर हर कोई इनके जैसा रसूखदार बनने का प्रयास करता दिखता है। सियासत में सफाई की दरकार है अन्यथा आने वाले समय में सियासी बियावान का वातावरण दलदल युक्त व दमघोंटू हो सकता है। (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
----------------------
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY