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Dr. Srimati Tara Singh
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मौसम परिवर्तन में विलंब दे रहा खतरे के संकेत

 

02 जनवरी 2020


अपनी बात

मौसम परिवर्तन में विलंब दे रहा खतरे के संकेत!

(लिमटी खरे)


कुछ सालों से सर्दीगर्मी और बरसात का मौसम अपने निर्धारित चक्र के अनुसार नहीं चल रहा है। मौसम के बदलावों पर लगभग एक दशक से ज्यादा समय से विमर्श चल रहा है। पर्यावरण के पहरूओं ने इस मामले में न जाने कितने पहले दुनिया को आगाह कर दिया था कि प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ के नतीजे बहुत ही भयानक रूप में सामने आ सकते हैं। कभी अतिवर्षा का सामना करना होगा तो कभी गर्मी इतनी प्रचुर मात्रा में पड़ेगी कि इसे सहन करना दुष्कर होगा तो कभी इस कदर जाड़ा पड़ेगा कि लोग असहज हो उठेंगे। यह मान लीजिए कि प्रकृति ने अलार्म बजाना आरंभ कर दिया है। अभी तो यह अंगड़ाई है आगे और लड़ाई है की तर्ज पर वक्त आ चुका है कि हम चेत जाएं और भविष्य में इसकी भयावहता का अंदाजा लगाते हुए जलवायु परिवर्तन के खतरों पर केवल विमर्श न करेंवरन इसके लिए संजीदा होकर प्रयास आरंभ करें। जलवायु परिवर्तन के असर से शायद ही कोई बच पाए।


लगभग एक दशक से यह अनुभव किया जा रहा है कि तीनों मुख्य ऋतुएं अपने निर्धारित चक्र के हिसाब से न चलकर कुछ विलंब से चल रही हैं। हाल ही में बीता अंग्रेजी साल 2019 हाड़ गला देने वाली सर्दी के लिए याद किया जाएगा। उत्तर भारत और पहाड़ी राज्यों से आने वाली सर्द हवाओं ने देश के अनेक हिस्सों को अपने आगोश में ले लिया है। दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा लोगों पर भारी ही गया। सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सर्दी से ढाई सैकड़ा के करीब लोग असमय ही काल कलवित भी हुए हैं। देश के अनेक सूबों में पारा शून्य से नीचे पहुंचा और स्थिति यह बनी कि नलों में पानी भी जम गया। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो दिल्ली में 118 साल पुराना रिकार्ड ध्वस्त हुआ है।

सर्दी का मौसम वैसे तो अक्टूबर से मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक माना जाता है। इसके साथ ही यह आम धारणा भी है कि इस दौरान जम्मू काश्मीरहिमाचलउत्तराखण्ड आदि पर्वतीय राज्यों में बर्फबारी होती है एवं शीत लहर चलती है। इन राज्यों के लिए यह आम बात है पर इस साल जिस तरह से मैदानी इलाकों को सर्दी और सर्द हवाओं ने अपनी चपेट में लिया है वह विचारणीय ही माना जाएगा।

दिसंबर माह के अंतिम दिन ओले गिरेपानी बरसासर्द हवाएं चलीं। मैदानी इलाकों में रहने वाले वे लोग जो सर्दी के मौसम में दिल्ली में रह चुके हैं उन्होंने इस सर्दी को दिल्ली की सर्दी ही करार दिया। दिल्ली में सर्दियों के मौसम में कई बार कई कई दिन तक भगवान भास्कर के दर्शन तक नहीं होते हैं। सर्द हवाएं वहां लोगों को जीना मुहाल कर देती हैं। इस बार मौसम के तेवर जिस तरह के दिख रहे हैं उससे लगने लगा है कि जनवरी और फरवरी माह में भी सर्दी अपने पूरे शवाब पर ही रहने वाली है।

सामान्यतः माना जाता है कि जब तापमान पांच डिग्री सेल्सियस से कम हो जाए और सर्द हवाएं चलने लगे तो उसे शीत लहर की संज्ञा दी जाती है। इस बार मैदानी इलाकों में भी दिन या रात का तापमान पांच डिग्री से कम हो चुका है। जिन क्षेत्रों में हरियाली है और प्रदूषण कम है वहां के निवासी तो सर्दी के इस सितम को किसी तरह झेल सक रहे हैंपर असली मरण तो महानगरों सहित उन स्थानों के निवासियों का है जहां प्रदूषण की तादाद बहुत ज्यादा है। सर्दी में बुजुर्ग और बच्चों की देखभाल की आवश्यकता वैसे भी ज्यादा ही होती है।

साधन संपन्न लोग तो एसीहीटरब्लोअर की गर्म हवाओं से अपने आप को किसी तरह गर्म रखे हुए हैंपर उनकी सोचिए जनाब जो बेघर हैंफुटपाथ पर पड़े हुए हैं। आपके घर सुबह और शाम को आकर झाड़ू बर्तन करने वाली बाई का जिगर कैसा होगा जो परिवार पालने की जद्दोजहद में इस खून जमा देने वाली सर्दी के बीच भी ठण्डे पानी में बर्तन धोकर दूसरे घर वही काम करने निकल पड़ती है।

पहाड़ी राज्यों में सर्दी पड़ना आम आत हैपर अगर मैदानी इलाकों में सर्दी की तीव्रता बढ़ रही है तो यह चिंताजनक है। यह मान लिया जाए कि प्रकृति ने हमें चेताने के लिए अलार्म बजा दिया है। सर्दीगर्मीबरसात की आवधिकता और तीव्रता पर अध्ययन की आवश्यकता है। अब समय कम है इसलिए जो भी करना है उसे समयसीमा यानि टाईमफ्रेम में बांधने की आवश्यकता है। इसके लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास जरूरी हैं।

साल दर साल गर्मी के मौसम में तापमान बहुत ज्यादा जाने लगा है। इसी तरह बारिश के दिन आने पर बादलों की ओर देखते हुए बारिश का इंतजार करना पड़ता है। जब बारिश की बिदाई का वक्त आता है तो बादल इस कदर झूमकर बरस उठते हैं कि बाढ़ आ जाती है। इस तरह की स्थितियों पर विमर्श तो जारीी है पर इससे बचनेइसे रोकने के लिए क्या प्रयास किए जाएं इस बारे में अब तक किसी भी जननेता के भाषण में स्थान नहीं मिलना बहुत ही कष्टकारी माना जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही मौसम में बदलाव महसूस किया जा रहा है। यह समस्या वैश्विक स्तर पर एक समान बनी हुई है। जिस भी देश में जब भी सर्दी पड़ती है वहां इस बार पहले की अपेक्षा ज्यादा सर्दी पड़ने की खबरें हैं। पर्यावरण विदों की चिंता बेमानी नहीं है कि अगर प्रकृति से इसी तरह छेड़छाड़ की जाती रही तो आने वाले दिनों में पर्यावरण का असंतुलन पैदा होगाजो मनुष्य और जंगली जानवरों आदि के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है। ग्रीन हाऊस गैस के ज्यादा उत्सर्जनवन क्षेत्र के कम होने और कांक्रीट जंगलों के कारण मौसम बहुत ही ज्यादा हमलावर होता प्रतीत हो रहा है।

भारत सहित अनेक देशों में औद्योगिक क्षेत्रों के हालात इस तरह के हैं कि वहां सांस लेना भी दूभर है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के लोग कांक्रीट जंगलों में रहते हैं। हरियाली देखने वे खण्डालालोनावाला की ओर रूख करते हैं। इसी तरह दिल्ली में हरियाली तो हैपर प्रदूषण का स्तर चिंताजनक स्थिति में है। देश के महानगरों के लोगों को अगर देश के हृदय प्रदेश में पचमढ़ीकान्हापेंच नेशनल पार्क जैसे वनाच्छादित क्षेत्रों में लाकर कुछ महीनों के लिए छोड़ दिया जाए तो उनके अंदर उठने वाली भावनाएं निश्चित तौर पर कांक्रीट जंगल और प्रदूषण को दिल से लानत मलानत भेजेंगी।

मौसम का मिजाज भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बदल रहा है। विश्व भर में शीत लहर के प्रकोप की खबरें हैं। यह सब प्रकृति और पर्यावरण के साथ मनुष्य द्वारा की गई अत्यधिक छेड़छाड़ का परिणाम है। जलवायु में परिवर्तन हो चुका है। ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा उत्सर्जनहरियाली के घटने तथा अनियोजित विकास के कारण ही मौसम हमलावर हुआ है। लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण देश के अधिकतम शहरों में आबोहवा सांस लेने लायक भी नहीं बची है। ठंड देर से आये या बाद में लगातार ठंड कहर बरसाने लगती है। 

जलवायु परिवर्तनबढ़ता प्रदूषणग्रीन हाऊस गैसेज का ज्यादा उत्सर्जनघटते वन क्षेत्र आदि वास्तव में चिंता का ही विषय हैं। जनता के द्वाराजनता की एवं जनता के लिए चुनी गई लोकतांत्रिक सरकारों को चाहिए कि वे हर तिमाही में जलवायु के अंकेक्षण (आडिट) की मुकम्मल व्यवस्था करें। इसके लिए इस मसले को राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना होगाइसके लिए प्रथक से एक मंत्रालय का गठन किया जाना अब वक्त की जरूरत बन चुका है।

जलवायु परिवर्तन का दौर अभी आरंभ हुआ है। यह जैसे जैसे गहराएगावैसे वैसे इसकी विभीषिका भी और अधिक भयावह होती जाएगी। जलवायु परिवर्तन से अनेक तरह के वायरस भी जन्म लेकर तरह तरह की महामारियों को फैलाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी यह माना जाता है कि अगर प्रथ्वी का तापमान एक डिग्री संल्सियस बढ़ा तो इससे पैदावार में सात फीसदी तक की कमी आ सकती है। अगर ऐसा हुआ तो खाद्य संकट भी खड़ा हो सकता है। इसलिए इस संवेदनशील मसले पर हुक्मरानों को आज ही से विचार करने की जरूरत हैजिसके लिए कोई भी फिकरमंद प्रतीत नहीं हो रहा है . . .! (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


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