मोबाईल विकिरण से दुष्प्रभावों को किया जाना चाहिए सार्वजनिक
मोबाईल फोन व टावर हैं जीवधारियों के लिए बड़ी समस्या!
(लिमटी खरे)
विकास का अपना अलग आनंद है, पर विकास के साथ ही अभिषाप के रूप में अनेक नुकसानदेह चीजें भी इसके साथ चिपककर आती हैं। कहा जाता है कि तकनीक के अपने फायदे हैं पर उसके साथ ही अनेक बातें जो हानिकारक भी होती हैं, उन्हें भी स्वीकार करना मजबूरी ही होता है। जिस तरह प्लास्टिक आपके लिए फायदेमंद तो है पर इसको निष्पादित अगर तरीके से नहीं किया गया तो यह इंसान के लिए खतरा बन जाता है।
हमने लिमटी की लालटेन के 278वें एपीसोड में आपको मोबाईल के लिए 5जी तकनीक के जल्द ही आरंभ होने की बात बताई थी, साथ ही यह भी कहा था कि मोबाईल और मोबाईल टावर के विकिरण से नुकसान भी होगा। आशंका जताई जा रही है कि वर्तमान में मोबाईल विकिरण को झेल रहे लोगों की सेहत पर 5जी तकनीक भी बुरा प्रभाव ही डालेगी।
इस मामले में माननीय न्यायालयों का मत है कि इस संबंध में पर्याप्त शोध अभी तक उपलब्ध नहीं हैं जो यह साबित कर सकें कि मोबाईल के टावर या मोबाईल से निकलने वाला विकिरण इंसानों, पर्यावरण और अन्य जीव जंतुओं के लिए घातक साबित हो सकता है।
वहीं दूसरी ओर इंटरनेट पर अगर आप खंगालें तो आपको पता चलता है कि अनेक शोध इस तरह के भी हैं जो यह दर्शाते हैं कि रिहाईशी इलाकों में लगे मोबाईल टावर्स बहुत ही हानिकारक विकिरण फैला रहे हैं। यद्यपि इस तरह के शोधों की वैधानिकता की पुष्टि तो नहीं हो पाई है पर सोशल मीडिया पर इन्हें पंख जरूर लगे दिखते हैं।
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इस मामले में 2011 में केंद्र सरकार की संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय समिति के द्वारा इस मामले में यह नतीजा दिया था कि मोबाईल टावर और मोबाईल फोन दोनों ही मनुष्य, जीव जंतुओं एवं पर्यावरण के लिए समस्या से कम नहीं है।
इतना ही नहीं इस समिति के द्वारा मोबाईल फोन और उसके टावर्स से रेडियो फ्रिक्वेंसी एनर्जी अर्थात रेडियो आवृति उर्जा से निकलने वाले विकिरण के चलते तितलियों, गौरैया और मधुमक्खियां विलुप्त होती जा रही हैं। यह सच है कि आज शहरों में पहले की तुलना में तितलियां और गोरैया दिखाई नहीं देती हैं।
2011 में ही कमोबेश इसी तरह की बात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एक सरकारी परियोजना के तहत किए जाने वाले शोध में भी निकलकर सामने आया था। इसमें चूहों पर हुए अध्ययन के बाद पता चला था कि यह विकिरण चूहों की प्रजनन क्षमता को न केवल प्रभावित करता है, वरण मानव शरीर की कोशिकाओं के रक्षा तंत्र को भी प्रभावित किए बिना नहीं रहता है।
जानकारों का कहना है कि इस तरह के शोधों से आए परिणामों से यह निश्कर्ष निकाला जा सकता है कि मोबाईल फोन और मोबाईल टावर्स से उतपन्न रेडियो आवृति क्षेत्र मनुष्य के शरीर के ऊतकों पर असर डालता है। इसी तरह से कुछ शोध इस ओर भी इशारा करते दिखते हैं कि यह उर्जा कैंसर, इल्झाईमर, हृदय संबंधी बीमारियां, गठिया, ब्रेन ट्यूमर आदि के जनक भी हो सकते हैं। वरना क्या कारण है कि मोबाईल टावर्स के जरिए सेवा प्रदाता कंपनियां अपने नेटवर्क की क्षमता को नहीं बढ़ा पा रही हैं।
तकनीकि जानकारों का यह कहना भी है कि नेटवर्क की क्षमता नहीं बढ़ाए जाने से काल ड्राप की समस्या आती है, क्योंकि सीमित दायरे से बाहर निकलने पर आपको नेटवर्क की समस्या से दो चार होना पड़ता है। इसके लिए मोजूदा टावर की क्षमता बढ़ाने के बजाए कुछ कुछ दूरी पर टावर्स की संस्थापना करवाई जाए, पर यह बहुत मंहगी प्रक्रिया होने के कारण कंपनीज इससे किनारा ही करती नजर आतीं हैं।
अपेक्षाकृत कम टावर्स होने के कारण मोबाईल उपभोक्ताओं को कॉल ड्राप के अलावा धीमि गति से डाऊन लोड या इंटरनेट की धीमि गति का सामाना भी करना पड़ता है। उपभोक्ताओं का यह आम आरोप है कि उनसे 4जी का शुल्क लेने के बाद भी उन्हें 2जी या 3जी जैसी सेवाएं मिल रहीं हैं। इसकी शिकायतें भी होती रही हैं।
इस तरह की शिकायतों के बाद सेवा प्रदाता कंपनियों के द्वारा यह दलील दी जाती है कि भारत जैसे गरीब देश में हर माह डाटा की औसत खपत 20जीबी की है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह खपत महज 10जीबी की है। इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में सेवा प्रदाता कंपनीज का बुनियादी ढांचा ही असल खपत के अनुरूप नहीं है, जिसके कारण इस तरह की समस्याओं से दो चार होना उपभोक्ताओं की नियति ही बन गया है।
बहरहाल, इस सबसे निपटने के लिए केंद्र सरकार को इस मामले में ठोस कानून बनाने की जरूरत महसूस होने लगी है। आम उपभोक्ता विशेषकर युवा इंटरनेट या मोबाईल पर सारा दिन उलझा रहता है जिससे उसका ध्यान सकारात्मक बातों की ओर नहीं जाता है और न ही वह कमाने खाने की ओर ही ध्यान लगाता दिखता है। आने वाली पीढ़ी के लिए मोबाईल और इंटरनेट अभिशाप बनेगा या वरदान यह तो वक्त ही बताएगा . . .
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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
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