Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मोबाईल फोन व टावर हैं जीवधारियों के लिए बड़ी समस्या!

 

मोबाईल विकिरण से दुष्प्रभावों को किया जाना चाहिए सार्वजनिक

मोबाईल फोन व टावर हैं जीवधारियों के लिए बड़ी समस्या!

(लिमटी खरे)

विकास का अपना अलग आनंद हैपर विकास के साथ ही अभिषाप के रूप में अनेक नुकसानदेह चीजें भी इसके साथ चिपककर आती हैं। कहा जाता है कि तकनीक के अपने फायदे हैं पर उसके साथ ही अनेक बातें जो हानिकारक भी होती हैंउन्हें भी स्वीकार करना मजबूरी ही होता है। जिस तरह प्लास्टिक आपके लिए फायदेमंद तो है पर इसको निष्पादित अगर तरीके से नहीं किया गया तो यह इंसान के लिए खतरा बन जाता है।

हमने लिमटी की लालटेन के 278वें एपीसोड में आपको मोबाईल के लिए 5जी तकनीक के जल्द ही आरंभ होने की बात बताई थीसाथ ही यह भी कहा था कि मोबाईल और मोबाईल टावर के विकिरण से नुकसान भी होगा। आशंका जताई जा रही है कि वर्तमान में मोबाईल विकिरण को झेल रहे लोगों की सेहत पर 5जी तकनीक भी बुरा प्रभाव ही डालेगी।

इस मामले में माननीय न्यायालयों का मत है कि इस संबंध में पर्याप्त शोध अभी तक उपलब्ध नहीं हैं जो यह साबित कर सकें कि मोबाईल के टावर या मोबाईल से निकलने वाला विकिरण इंसानोंपर्यावरण और अन्य जीव जंतुओं के लिए घातक साबित हो सकता है।

वहीं दूसरी ओर इंटरनेट पर अगर आप खंगालें तो आपको पता चलता है कि अनेक शोध इस तरह के भी हैं जो यह दर्शाते हैं कि रिहाईशी इलाकों में लगे मोबाईल टावर्स बहुत ही हानिकारक विकिरण फैला रहे हैं। यद्यपि इस तरह के शोधों की वैधानिकता की पुष्टि तो नहीं हो पाई है पर सोशल मीडिया पर इन्हें पंख जरूर लगे दिखते हैं।

इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए

इस मामले में 2011 में केंद्र सरकार की संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय समिति के द्वारा इस मामले में यह नतीजा दिया था कि मोबाईल टावर और मोबाईल फोन दोनों ही मनुष्यजीव जंतुओं एवं पर्यावरण के लिए समस्या से कम नहीं है।

इतना ही नहीं इस समिति के द्वारा मोबाईल फोन और उसके टावर्स से रेडियो फ्रिक्वेंसी एनर्जी अर्थात रेडियो आवृति उर्जा से निकलने वाले विकिरण के चलते तितलियोंगौरैया और मधुमक्खियां विलुप्त होती जा रही हैं। यह सच है कि आज शहरों में पहले की तुलना में तितलियां और गोरैया दिखाई नहीं देती हैं।

2011 में ही कमोबेश इसी तरह की बात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एक सरकारी परियोजना के तहत किए जाने वाले शोध में भी निकलकर सामने आया था। इसमें चूहों पर हुए अध्ययन के बाद पता चला था कि यह विकिरण चूहों की प्रजनन क्षमता को न केवल प्रभावित करता हैवरण मानव शरीर की कोशिकाओं के रक्षा तंत्र को भी प्रभावित किए बिना नहीं रहता है।

जानकारों का कहना है कि इस तरह के शोधों से आए परिणामों से यह निश्कर्ष निकाला जा सकता है कि मोबाईल फोन और मोबाईल टावर्स से उतपन्न रेडियो आवृति क्षेत्र मनुष्य के शरीर के ऊतकों पर असर डालता है। इसी तरह से कुछ शोध इस ओर भी इशारा करते दिखते हैं कि यह उर्जा कैंसरइल्झाईमरहृदय संबंधी बीमारियांगठियाब्रेन ट्यूमर आदि के जनक भी हो सकते हैं। वरना क्या कारण है कि मोबाईल टावर्स के जरिए सेवा प्रदाता कंपनियां अपने नेटवर्क की क्षमता को नहीं बढ़ा पा रही हैं।

तकनीकि जानकारों का यह कहना भी है कि नेटवर्क की क्षमता नहीं बढ़ाए जाने से काल ड्राप की समस्या आती हैक्योंकि सीमित दायरे से बाहर निकलने पर आपको नेटवर्क की समस्या से दो चार होना पड़ता है। इसके लिए मोजूदा टावर की क्षमता बढ़ाने के बजाए कुछ कुछ दूरी पर टावर्स की संस्थापना करवाई जाएपर यह बहुत मंहगी प्रक्रिया होने के कारण कंपनीज इससे किनारा ही करती नजर आतीं हैं।

अपेक्षाकृत कम टावर्स होने के कारण मोबाईल उपभोक्ताओं को कॉल ड्राप के अलावा धीमि गति से डाऊन लोड या इंटरनेट की धीमि गति का सामाना भी करना पड़ता है। उपभोक्ताओं का यह आम आरोप है कि उनसे 4जी का शुल्क लेने के बाद भी उन्हें 2जी या 3जी जैसी सेवाएं मिल रहीं हैं। इसकी शिकायतें भी होती रही हैं।

इस तरह की शिकायतों के बाद सेवा प्रदाता कंपनियों के द्वारा यह दलील दी जाती है कि भारत जैसे गरीब देश में हर माह डाटा की औसत खपत 20जीबी की हैजबकि वैश्विक स्तर पर यह खपत महज 10जीबी की है। इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में सेवा प्रदाता कंपनीज का बुनियादी ढांचा ही असल खपत के अनुरूप नहीं हैजिसके कारण इस तरह की समस्याओं से दो चार होना उपभोक्ताओं की नियति ही बन गया है।

बहरहालइस सबसे निपटने के लिए केंद्र सरकार को इस मामले में ठोस कानून बनाने की जरूरत महसूस होने लगी है। आम उपभोक्ता विशेषकर युवा इंटरनेट या मोबाईल पर सारा दिन उलझा रहता है जिससे उसका ध्यान सकारात्मक बातों की ओर नहीं जाता है और न ही वह कमाने खाने की ओर ही ध्यान लगाता दिखता है। आने वाली पीढ़ी के लिए मोबाईल और इंटरनेट अभिशाप बनेगा या वरदान यह तो वक्त ही बताएगा . . .

लिमटी की लालटेन के 279वें एपीसोड में फिलहाल इतना ही। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज में लिमटी की लालटेन अब हर रोज दोपहर 02 बजे एवं शनिवार एवं रविवार को सुबह 07 बजे प्रसारित की जा रही है। आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की वेब साईट या चेनल पर जाकर इसे रोजाना दोपहर 02 बजे एवं शनिवार व रविवार को सुबह 07 बजे देख सकते हैं। अगर आपको लिमटी की लालटेन पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईकशेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम लिमटी की लालटेन का 280वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगेतब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


--

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ