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एनआरसी, एनपीआर व सीएए को लेकर क्यों मचा है बवाल

 

18 जनवरी 2020


अपनी बात

एनआरसीएनपीआर व सीएए को लेकर क्यों मचा है बवाल!

(लिमटी खरे)


संशोधित नागरिकता कानून एवं राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण जैसे संवेदनशील मामलों में विपक्ष पूरी तरह बंटा ही नजर आया। इस मामले में कांग्रेस को उम्मीद थी कि विपक्ष के सभी दल कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई देंगे। वस्तुतः ऐसा होता दिखा नहीं। विरोधी दलों की बैठक में अनेक सियासी दलों ने शिरकत न करते हुए यह संदेश देने का प्रयास कि वे अपने अपने प्रभाव वाले सूबों में रसूखदार हैं और अपनी लड़ाई अपने स्तर पर खुद ही लड़ने में पूरी तरह सक्षम हैं। ये सभी दल इन दोनों ही मामलों में खुलकर विरोध कर रही हैंपर जब एक छत के नीचे आकर विरोध की बात आई तो कुछ दलों ने अपने कदम वापस खींच लिए। विपक्ष की इस फूट पर भाजपा अंदर ही अंदर प्रफुल्लित अवश्य हो रही हो पर उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि विपक्ष के जो दल इस बैठक में अनुपस्थित रहे वे इसका विरोध तो कर रहे हैं पर यह संदेश कतई नहीं देना चाह रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे कांग्रेस के अनुयायी या अनुगामी हैं।


नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर देश भर में बहस आज भी जारी है। इस कानून को लेकर देश भर में घमासान मचा दिख रहा है। सोशल मीडिया तो एक माह से अधिक समय से सीएएनेशनल पाप्युलेशन रजिहस्टर (एनपीआर)राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर पूरी तरह लाल पीला होता दिख रहा है। भाजपा समर्थकों के द्वारा इसके पक्ष में तो भाजपा विरोधियों के द्वारा इसके खिलाफ मानो मुहिम छेड़ रखी हो। सोशल मीडिया से दिशा और दशा दोनों ही तय होना आरंभ हो चुकी हैंइस लिहाज से अब लोगों की मानसिकता भी इसके पक्ष और विरोध में बनती दिख रही है।

दरअसलकम समय के अंतराल में ही सीएएएनपीआर और एनआरसी को लागू कर दिए जाने से एकाएक भ्रम की स्थितियां निर्मित होती दिख रही हैं। देश की सबसे बड़ी पंचायत (संसद) के पंच (सांसद) सहित सियासी नुमाईंदे भी इस भ्रम को दूर करने में असफल ही दिख रहे हैं। अगर कोई उनसे एपपीआर या एनआरसी के बारे में पूछता है तो यह कहते हुए बात को टालने की कोशिश करते दिखते है कि जब इन्हें लागू किया जाएगा तब इस बारे में बात की जाएगीफिलहाल सीएए के बारे में बात की जाए!

एनआरसी को लेकर शिक्षा के मंदिरों में भी धरना प्रदर्शन आरंभ हुएइस लिहाज से इसका विरोध करने में श्रेय विपक्षी दलों को नहीं मिल पा रहा है। विद्यार्थियों के विरोध को समझना होगाक्योंकि विद्यार्थियों का किसी तरह का सियासी एजेंडा नहीं होता है। विद्यार्थी अगर किसी बात का विरोध करने पर अमादा हैं तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं गफलत अवश्य है। अभी यह विरोध कुछ ही जगहों पर विश्वविद्यालयों में हो रहा हैपर अगर आने वाले समय में विद्यालयोंमहाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की तादाद बढ़ी तो इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।

वैसे भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार इस पूरे मामले में पूरी तरह सधे और नपे तुले कदम उठाती दिख रही है। भाजपा सांसदों सहित सूबाई संगठनों को यह निर्देश दिए गए हैं कि वे जनता के बीच जाएं और सीएए क्या है! इससे किसे फायदा है! इससे कौन कौन प्रभावित नहीं होगा! इसका दूरगामी प्रभाव क्या है! जैसी बातों को समझाए। केंद्रीय इशारे के बाद भाजपा के सूबाई संगठनों ने इस बात को आगे बढ़ाना भी आरंभ कर दिया गया। इस विषय पर समर्थन और विरोध के लिए अभियान जारी हैं। सोशल मीडिया पर भी भाजपा इस मामले में दीगर विपक्षी पार्टियों के मुकाबले ज्यादा वजनदार दिख रही है।

देश भर में सीएए को शुक्रवार को औपचारिक रूप से लागू कर दिया गया है। भाजपा के साथ रहने वाले सियासी दलों ने इसका विरोध तो नहीं किया है पर विपक्ष के प्रभाव वाले सूबों जहां उनकी सरकारें हैं के द्वारा इस कानून को लागू करने में अपनी सहमति जताना आरंभ कर दिया गया है। केरल विधान सभा में तो इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित कर दिया गया है। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार के द्वारा एनपीआर की आड़ में एनआरसी का ताना बाना बुना जा रहा हैजिसे बर्दाश्त नही किया जा सकता है।

पिछले एक महीने से यही बहस सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा गरम दिख रही है कि एनपीआरएनआरसी और सीएए की अचानक आवश्यकता क्यों पड़ी। केंद्र सरकार के द्वारा यह सब कुछ रूटीन का हिस्सा ही बताया जा रहा है। केंद्र कह रही है कि जो कुछ भी हो रहा है वह सालों से चल रहा थाबस भाजपा सरकार के द्वारा इसमें तेजी लाकर इसे अंजाम तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है। विपक्ष की बोथरी धार भाजपा सरकार की दलीलों को काट नहीं पा रही है।

हाड़ गलाने वाली सर्दी के बीच जब यह मामला गर्माया तो अब केंद्रीय मंत्रियों के सुर बदलते दिख रहे हैं। अब उनके द्वारा कान को घुमाकर पकड़ने का प्रयास किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृहमंत्री अमित शाहसभी यह दलील देते दिख रहे हैं कि यह कानून किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहींवरन नागरिकता देने के लिए लाया गया है।

इधरगरीब गुरबोंकमजोर तबके के लोगों के मन में यह भय बैठ गया है कि कागजात न दिखाए जाने पर उनका जीना मुहाल कर दिया जाएगा। आज से चार पांच दशक पहले तक जन्म प्रमाण पत्र बनाना बहुत जरूरी नहीं था। साथ ही यह बात भी आईने के मानिंद ही साफ है कि सत्तर के दशक के पहले किसी का जन्म होने के सालों बाद अगर उससे पूछा जाए तो वह अपने बुजुर्गों का मुंह ताकता और बुजुर्ग बताते कि हल्की बारिश हो रही थी! पूनो (पूनम) की रात थीबहुत गर्मी पड़ रही थीहोली दहन के पहले की बात हैकड़ाके की सर्दी थी . . . अर्थात वे उस समय का मौसम या तीज त्यौहार बताकर ही जन्म तिथि का अंदाजा लगाते थे। इतना ही नहीं उस दौर में बच्चों का जन्म अधिकतर घरों में ही दाईयों के माध्यम से होता थाइसलिए यह आवश्कय नहीं कि सरकारी अस्पतालों के दस्तावेजों में यह दर्ज हो!

एनपीआरएनआरसीसीएए के प्रकाश में आई भ्रांतियोंसोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं के चलते भय और अफरा तफरी तो साफ देखी जा सकती है। अनेक राज्यों में स्थानीय निकायों में लोग जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए भीड़ की शक्ल में जाते भी दिख रहे हैं। इन तीनों ही व्यवस्थाओं में कौन कौन से दस्तावेज मान्य होंगे इस बारे में भी अभी कुहासा हट नहीं सका है।

विपक्ष के द्वारा यह कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार के द्वारा इन मामलों में गुमराह किया जा रहा है तो सरकार में बैठे नुमाईदे यह कहते नहीं थक रहे हैं कि सीएए को लेकर जनता को बरगलाया जा रहा है। दोनों ही पक्ष अपनी अपनी दलील एक ही लाईन में देते नजर आ रहे हैंजो जनता को समझाने में नाकाम ही दिख रही है। हुक्मरानों और विपक्ष में बैठे जनता के नुमाईंदों को आम जनता के रूप में खुद को रखकर सारे सवाल जवाब करना चाहिए। आखिर क्या वजह है कि देश का एक बहुत बड़ा तबका इन मामलों को लेकर बुरी तरह आशंकित है! विपक्ष और सरकार दोनों ही सीएए को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए हुए हैपर कोई यह नहीं बता पा रहा है कि जनता के लिए बनाए गए इस कानून से जनता को क्या लाभ और क्या हानि हो सकती है! संभवतः एनपीआरसीएए और एनआरसी को लेकर मचे बवाल की जड़ में यही मुख्य वजह है!  (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


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