लिमटी की लालटेन 96
घर वापसी के बाद अगला कदम क्या!
(लिमटी खरे)
देश में लगभग डेढ सौ से ज्यादा रेलगाड़ियों के जरिए एक लाख से ज्यादा लोग अपने अपने घरों की ओर कूच कर चुके हैं। इसके अलावा सड़क मार्ग पर चलने वाले ट्रकों के जरिए भी अनेक लोग घरों की ओर जाते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार की ही अगर बात की जाए तो इन दोनों ही सूबों में चालीस लाख से ज्यादा लोगों की घर वापसी की उम्मीद है।
जिस तरह से लोगों की घर वापसी हो रही है उसे देखते हुए एक प्रश्न देशवासियों के मन में कौंधना स्वाभाविक ही है कि आखिर कब तक और कितने लोग इस तरह वापस लौटते रहेंगे! ये घर पहुंचेंगे तो क्या करेंगे! इनकी आजीविका का साधन क्या होगा! इन लोगों की घर वापसी के बाद इन्हें 14 अथवा 21 दिन क्वारंटाईन में किस तरह रखा जा पाएगा!
जिन राज्यों में श्रमिक ज्यादा तादाद में वापस लौट रहे हैं, उन राज्यों में अफसर और नेताओं के मन में जिस तरह की शंका के बादल घुमड़ते दिख रहे हैं, उससे तो यही साबित हो रहा है कि इतनी तादाद में घर वापसी के बाद इन श्रमिकों की सुरक्षा, ईलाज, तीमारदारी आदि के लिए राज्यों के पास न तो पूरे संसाधन हैं, और न ही राज्य इसके लिए अभी तैयार ही हैं।
इसी बीच कर्नाटक से उत्तर प्रदेश और बिहार आदि जाने वलो श्रमिकों को राज्य से बाहर न जाने देने का फैसला लिया है। इस फैसले के पीछे यह बताया जा रहा है कि कर्नाटक को यह आशंका है कि अगर मजदूर अपने अपने राज्य वापस चले गए तो वे जल्द वापस नहीं आने वाले, और उन परिस्थितियों में वहां के अनेक कार्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। कर्नाट के उद्यमियों ने सरकार से अपील की है कि वे निर्माण कार्य को आरंभ कराने की अनुमति दे ताकि पलायन कर रहे मजदूरों को रोका जा सके। राज्य सरकार के द्वारा 1610 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा भी कमजोर तबके के लिए की है। जो राज्य सक्षम हैं, उन्हें भी अपने खर्चों में कटौति करते हुए इसका अनुसरण करना चाहिए।
वैसे एक बात और उभरकर सामने आ रही है कि रेलगाड़ियों के जरिए श्रमिकों की घर वापसी की कवायद के बाद जो मजदूर रेल से नहीं जा पा रहे हैं वे अपने परिवार के साथ बिना आगा पीछा सोचे ही जान जोखिम में डालते हुए परिवहन नियमों को बलाए ताक रखते हुए ट्रकों, लारियों की छतों पर बैठकर सफर कर रहे हैं। इन्हें यह भी पता नहीं कि जिस वाहन में वे बैठे हुए हैं, वह वाहन उन्हें कहां उतारेगा!
इस तरह से रेड जोन से सड़क मार्ग से असुरक्षित रूप से घर वापस लौटने वाले श्रमिकों एवं घर वापसी की मांग के दौरान एक साथ भीड़ के रूप में एकत्र होने वाले श्रमिकों की तादाद घटने का नाम नहीं ले रही है। जो कुछ भी समाचार माध्यमों से सामने आ रहा है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि जरा सी लापरवाही के कारण सरकार की संक्रमण के चक्र को तोड़ने की मंशा धरी की धरी रह जाएगी। सरकार के द्वारा तीसरे चरण में भले ही कुछ शर्तों के साथ छूट दे दी गई हो, पर जमीनी हकीकत यह भी दिख रही है कि लोगों के सब्र का बांध अब टूटने भी लगा है।
देखा जाए तो प्रवासी मजदूरों की घर वापसी, सुरक्षा के साथ ही साथ उनके हितों के संवर्धन की जवाबदेही पूरी तरह उन सूबों की राज्य सरकारों पर आहूत होती है जिनमें वे रह रहे हैं। कोरोना के संभावित संक्रमण को देखते हुए जगह जगह बनाए गए शिविरों और आश्रय स्थलों बनाए गए हैं, पर इन आश्रय स्थलों की हालत क्या है यह देखने की फुर्सत किसी ने भी नहीं उठाई है। अनेक शिविरों या क्वारंटाईन सेंटर्स से लोगों के भागने की भी खबरें हैं, यह बहुत चिंताजनक हो सकता है।
बहरहाल, अब जो मजदूर घर वापस पहुच रहे हैं वे आखिर घर पर रहकर करेंगे क्या! वे अपने परिवार का उदर पोषण कैसे करेंगे यह बड़ा यक्ष प्रश्न खड़ा हुआ है। उन राज्यों के हुक्मरानों को जिन राज्यों में ये मजदूर जा रहे है, को इनके लिए रोजगार के साधन मुहैया करना सबसे बड़ी चुनौति होगी। मनरेगा जैसी योजनओं की जमीनी हालत क्या है, यह बात किसी से छिपी नही है। इसलिए कुटीर उद्योगों पर बल देने की वर्तमान में महती जरूरत महसूस हो रही है। अगर सरकारों ने यह नहीं किया तो आने वाले समय में इन मजदूरों ने आजीविकोपार्जन के लिए गलत रास्ता अख्तियार कर लिया तो परेशानियां बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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