29 जनवरी 2020
अपनी बात
विवादित मुद्दों पर बंटा नजर आ रहा है वालीवुड!
(लिमटी खरे)
इस समय नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन (एनआरसी) और नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) पर माहौल गरमाया हुआ है। इन सभी मामलों में सियासी दलों के नुमाईंदों के विचारों में भिन्नता तो दिख रही है साथ ही देश को परोक्ष रूप से दिशा देने वाले रूपहले पर्दे की दुनिया जिसे वालीवुड के नाम से जाना जाता है वह भी बटा हुआ ही दिख रहा है। इन मामलों में वालीवुड दो फाड़ ही नजर आ रहा है। इन मामलों में वालीवुड में भी गहमा गहमी महसूस की जा रही है। अभिनेता नसरूद्दीन शाह और अनुपम खेर के बीच जिस तरह की बयानबाजी चल रही है वह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं मानी जा सकती है। वालीवुड में फिल्मों के किरदार बनने वाले अभिनेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में उनके लाखों करोड़ों फेन हैं जो उनके द्वारा किए जाने वाले अभियन और कही जाने वाली बातों को अपने जीवन में अंगीकार भी करते हैं, वे लाखों करोड़ों लोगों के पायोनियर (अगुआ) की भूमिका में भी नजर आते हैं।
सीएए, एनआरसी, एनपीआर जैसे मामलों को विवादित की श्रेणी में इसलिए रखा जा सकता है, क्योंकि इन मसलों में देश भर में बखेड़ा खड़ा हुआ है। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली सहित अनेक शहरों में इसके समर्थन और विरोध में रैलियां की जा रहीं हैं, प्रदर्शन हो रहे हैं। सियासी बियावान में नेताओं के द्वारा अपने अपने हिसाब से इस मामले में पैंतरे बदले जा रहे हैं। एनआरसी, सीएए, एनपीआर वास्तव में है क्या इसे जाने बिना, बताए बिना ही इस मामले में चारों ओर कोहराम ही मचा दिख रहा है।
वर्तमान परिदृश्य में वालीवुड अभिनेताओं के द्वारा एक दूसरे पर जिस तरह से बयानबाजी कर वार किए जा रहे हैं, वह स्वस्थ्य परंपार तो कतई नहीं मानी जा सकती है। अभिनेता नसीरूद्दीन शाह के द्वार अनुपम खेर को जोकर निरूपित कर दिया गया। यहां तक कह दिया गया कि अनुपम खेर की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। पलटवार करते हुए अनुपम खेर ने नसीरूद्दीन शाह को कुंठित मानसिकता से ग्रस्त अभिनेता बता दिया गया।
केंद्र सरकार के फैसलों पर पहली बार वालीवुड बटा हुआ नजर आ रहा है। वालीवुड के उदय को ज्यादा दशक नहीं बीते हैं, इस लिहाज से आज उमर दराज हो रही पीढ़ी के सामने वालीवुड के अभिनेताओं की कारगुजारियां, बयानबाजी उनके जेहन में ताजा ही होंगी। वालीवुड का इतिहास अगर देखा जाए तो संभवतः यह पहली बार ही हो रहा होगा, जब फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अभिनेता अपने ही साथियों के बारे में तल्ख टिप्पणियां कर रहे हों। सिने अभिनेता फिल्म में किरदार निभाते समय चाहे जैसी भी भाषा का प्रयोग (चूंकि वह कहानी और किरदार को जीवंत करने की मांग होती है) करते हों, पर जब वे रील लाईफ से रियल लाईफ में आते हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें भाषा में संयमित रहने की जरूरत है, जिसका अभाव वर्तमान में अभिनेताओं की रियल लाईफ में साफ परिलक्षित हो रहा है। नसीरूद्दीन शाह के द्वारा सीएए और संभावित एनआरसी का विरोध किया जाकर इसकी आलोचना की जा रही है तो अनुपम खेर केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
सरकार के हालिया निर्णयों पर वालीवुड दो खेमों में बटा हुआ साफ दिखाई दे रहा है। एक साफ लकीर सरकार के समर्थन और विरोध में दिखाई दे रही है। सरकार के समर्थन में कंगना रनौत, अनुपम खेर, मधुर भण्डारकर, परेश रावल, विवक ओबेराय, विवेक अग्निहोत्री, प्रसून जोशी तो विराधे में जो सितारे दिखाई दे रहे हैं, उनमें दीपिका पादुकोण, नसीरूद्दीन शाह, अनुभव सिन्हा, फरहान अख्तर, स्वरा भास्कर, अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, सुशांत सिंह, अनुराग बसु आदि दिखाई दे रहे हैं।
इसके अलावा सदी के महानायक माने जाने वाले अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, राकेश रोशन, धर्मेंद्र जैसे गुजरे जमाने के अभिनेताओं सहित अक्षय कुमार, अजय देवगन आदि का मौन आश्चर्य जनक ही माना जाएगा। ये सभी इस तरह के विवादित मुद्दों से बचते नजर आ रहे हैं। वालीवुड के अनेक सितारे पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। उनका फोटो सेशन भी हुआ था, जो सोशल मीडिया पर वायरल भी हुआ था।
अस्सी के दशक तक वालीवुड में फिल्मों को बनाने के पहले निर्माता और निर्देशकों के द्वारा इसके विषय पर गहन अध्ययन किया जाता था। सामाजिक कुरीतियों, देश के हालातों पर आधारित फिल्में इस दौर में बनीं, जिनका समाज पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। वालीवुड के द्वारा राजनैतिक दशा और दिशा पर भी अनेक फिल्में दी हैं, जो कि सुपर हिट भी रहीं। सियासत में मची गंदगी को भी वालीवुड की फिल्मों से जनता के सामने रखा, इसके बाद भी इससे जुड़े लोग केंद्र सरकार के निर्णयों पर बोलने से बचते ही दिखते हैं। पहली बार 2014 में चुनावों के दौरान पहली बार दिखाई दी, जब लगभग पांच दर्जन फिल्मी सितारों ने धर्म निरपेक्ष दलों को वोट देने की अपील की थी, इसके बाद वर्तमान हालातों में उनकी चुप्पी आश्चर्य जनक ही मानी जाएगी।
देश में 2014 में भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार के सत्ता में आते ही वालीवुड में भी सरगर्मियां तेजी से बढ़ीं। मोदी सरकार के पक्ष में गायक अभिजीत और अनुपम खेर न केवल खड़े दिखे, वरन उनके द्वारा मोर्चा संभाल लिया गया। कुछ कलाकारों के द्वारा मोदी सरकार की ढाल के रूप में अपने आप को सामने लाते हुए सरकार के बचाव के जतन किए गए। अनेक सितारों ने नरेंद्र मोदी के पक्ष में खुलकर अपील भी की गई।
ऐसा माना जाता है कि कवि, पत्रकार, सिनेमा के कलाकार सहित अनेक विधाओं के लोग सत्ता की आलोचना ही करते हैं। इसका कारण यह है कि इनके द्वारा सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया जाता है। जरूरत पड़ने पर सरकार के अच्छे कदमों का स्वागत भी इनके द्वारा किया जाता है। समय समय पर सरकार के क्रिया कलापों का आंकलन वालीवुड के अदाकारों को करना चाहिए और अपनी राय सार्वजनिक करते हुए सरकारों को चेताया भी जाना चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि पिछले कुछ सालों से इस तरह की कवायद होने के बजाए या तो सरकार के धुर विरोधी या सरकार के पिछलग्गू की भूमिका में अदाकार दिख रहे हैं।
वालीवुड ही नहीं, हालीवुड भी इस तरह की कवायद से अछूता नही है। अमेरिका को दुनिया का चौधरी माना जाता है। अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालीवुड के अदाकारों के निशाने पर हैं। रॉबर्ट डि नोरो एवं मेरिल स्ट्रीप जैसे हालीवुड के सुपर स्टार्स के द्वारा डोनाल्ड ट्रंप पर जमकर निशाना साध रहे हैं। हालीवुड के सुपर स्टार्स जिस तरह से अमेरिका की सियासत में टीका टिप्पणी कर रहे हैं उसका प्रभाव वहां पड़े बिना नहीं है।
कुल मिलाकर देश के जरूरी मुद्दों के बारे में वालीवुड के अभिनेताओं को अपनी राय को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। उनकी राय से देश में मुद्दों पर समर्थन और विरोध में तेजी आ सकती है। रूपहले पर्दे के अदाकार चूंकि जनता के बीच अपेक्षाकृत अच्छी छवि के साथ लोकप्रियता भी रखते हैं इसलिए मीडिया में भी उन्हें पर्याप्त तवज्जो मिलना तय है, इसके बाद भी उनकी चुप्पी को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि वालीवुड के सितारे देश में लिए जाने वाले निर्णयों, घटने वाली घटनाओं पर अपनी राय सार्वजनिक करेंगे। (लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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