आजकल सावन मास चल रहा है। एक्सटेंडेड सावन। अब सावन के सुपर स्टार तो मेघ ही हैं। शास्त्रों में ऐसे तमाम प्रसंग मिल जाएंगे जहां भगवान श्रीहरि की उपमा मेघ से दी गयी है। मेघ देखकर जैसे मयूर नाच उठता है वैसे ही भक्त का मन मयूर हर सुंदर बात, वस्तु, परिस्थिति में श्रीहरि को खोज कर प्रसन्नता से नाच उठता है। विष्णु सहस्रनाम में भगवान का एक नाम आता है, ‘सुघोष’।
सुव्रत: सुमुख: सूक्ष्म: सुघोष: सुखद: सुहृत्।
मनोहरो जितक्रोधो वीरबाहुर्विदारण:।।
भाष्यकार भगवदपाद् शंकराचार्य भले ही ज्ञानमार्गीय मनीषी हो पर उनके भीतर 24 कैरेट भक्ति से परिपूरित द्रवित हृदय है। वह भी इस ‘‘सुघोष’’ को मेघ से जोड़ कर देखते हैं। उनके अनुसार भगवान मेघ के समान गंभीर घोष वाले हैं, इसलिए वे सुघोष हैं।
निश्चय ही भगवान की वाणी घटाटोप अंधकार में मेघगर्जन करते हुआ हमारी चिंताओं को हर लेती है। ‘‘न किंचिदपि चिन्तयेत्’’…..वासुदेव के ये जादुई तीन शब्द क्या महज अर्जुन के लिए कहे गये थे? आप यदि देवकीनन्दन पर भरोसा करते हो तो कभी किसी गंभीर समस्या या चिंता के क्षणों में आंख बंद कर गीता के इन शब्दों को श्रद्धा से दोहराइये। ऐसा लगता है कि कोई पिता हमारे सिर पर हाथ रखकर मानो कह रहे हो…बेटा, चिंता मत कर (हम हैं ना)। श्रीहरि की यह अनोखी वाणी समूची मनुजता के लिए एक ‘‘सुघोष’’ है।
भगवान की वाणी केवल लायक बेटों के लिए हो, ऐसा नहीं है। उन्होंने अपने ‘सुदुराचार’ करने वाले बच्चों को भी ठीक इसी वजन की गारंटी दी है। दुराचार नहीं, खूब मजे के दुराचार करने वालों यानी सुदुराचारियों को भी भगवान निराश के पथ पर नहीं ढकेलते हैं, उन्हें भी खरा आश्वासन देते हैं, ‘‘न मे भक्त: प्रणश्यति’’।
भगवान के जो सुघोष हैं, उन्हीं के कारण वे ‘‘सुव्रत’’ हैं। प्रभु श्रीरघुनाथ का अभय प्रदान करने वाला यह सुघोष भक्तिमार्ग का आधार स्तंभ है….
‘‘सुकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचसे।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम्।।’’
भगवान की प्रत्येक वाणी वेद का निचोड़ है। न सूत भर कम न सूत भर ज्यादा। यह वाणी जैसे जैसे हमारे बाह्य और आंतरिक जीवन में प्रवेश करने लगती है, हमारे जीवन में सावन मास की हरियाली घटाएं उमड़ने लगती हैं। श्रावण शब्द के मूल में ही श्रवण यानी सुनना है। तो राजन् जब सुनना ही है तो भगवान की वाणी को सुनो। भगवान के लीला प्रसंगों को सुनो। उसमें ‘‘सुघोष’’ की मीठी ध्वनि सहज ही सुनाई देने लगती है
एकादशी की राम राम
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