Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कालिदास

 

कुछ करुन-कथा चलाइ------कहते हैं कि कालिदास ने अपने यश शरीर से प्रार्थना की थी कि वह उन पर दयालु बने अर्थात उनका यश अजर अमर रहे. अब प्रार्थना की है तो फल भी मिला.
पर हमारे बाबा ने ऐसी कोई प्रार्थना नहीं की. मानस जैसा महाग्रंथ लिखा. पर यश प्रार्थना के बजाय बस माता जानकी से यही विनती की कि उनकी करुन कथा सरकार के आगे उचित अवसर पर सुना दी जाए.. " कबहूँक अंब, अवसर पाइ, मेरिओ सुधि द्याइबी, कुछ करुन- कथा चलाइ."
अब सरकार तो दीन दयाला हैं. अपने दास पर ऐसे रीझे कि, का बताएं?
ध्यान दीजिये कि जब तुलसीदास मानस लिख रहे थे तो लगभग उसी समय सात समंदर पार शेक्सपियर अपने विश्व प्रसिद्ध नाटक और स्पेन में सरवेंटिस डॉन क्विगजॉट (सही उच्चारण मुझे नहीं आता, पर आप समझ ही गये होंगे?) लिख रहे थे. तीनों को पाठकों ने अप्रतिम प्रेम दिया. साहित्य का प्रतिमान बना दिया.
पर फिर भी बाबा की बात अलग है. बाबा का मानस हम सभी के लिए कण्ठ हार तो है. इससे भी बड़ी बात कि हममें से अधिकतर पहले इसके समक्ष शीष झुकाते हैं. फिर इसे बांचना शुरू कर देते हैं. यह अयाचित श्रद्धा कालिदास, शेक्सपियर और सरवेंटिस को अलभ्य है.
एक किस्सा मुझे बहुत अच्छा लगता है.लोक जीवन के किस्से में आप तर्क और इतिहास बुद्धि लगायेंगे तो रस से वंचित रह जाएंगे.
एक बार अकबर ने सूरदास जी से पूछा, आप और गोस्वामी जी में से कौन बड़ा कवि है?
सूरदास जी का फटाक से जवाब आया, "मैं".
अकबर को बड़ा अजीब लगा. उसने पूछा, " क्यों? आप बड़े कवि कैसे हैं? "
सूरदास जी बोले, " गोस्वामी जी कविता कहाँ लिखते हैं? वे तो जो भी लिखते हैं, मंत्र हो जाता है".
बाबा, हम सभी पर आपके अनंत उपकार हैं. यह आपका ही सामर्थ्य है कि आपकी जिन पंक्तियों को पढ़कर मेरी दादी मुंह में साड़ी का पल्लू दबाकर अपनी आंख पोंछने लगती थी, तब लगता था कि बाबा कैसे पाषाण हृदय हैं जो मेरी दादी को रुलाते हैं. पर अब बाबा की पंक्तियाँ पढ़ मेरी भी आंखें प्रायः भींग जाती हैं और यह समझ आ गया है कि दादी के आंसु दुख के नहीं असीम सुख के आंसु थे.
बस कुछ ऐसी ही चमत्कारी है बाबा की करुण-कथा..

प्रसिद्ध पातकी 

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