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बदनाम गली

 
Mohan Srivastava Poet

"बदनाम गली "
 (ऐसी ही दर्द भरी चित्कारों से)

 इतना मत जुल्म ढहावो मुझ पर,
ना मुझ पर इतना अत्याचार करो ।
मैं भी किसी की हूं बेटी,
 ना हमसे इतना क्रूर व्यवहार करो ॥

 आंटी,अंकल मैं पांव पड़ रही,
मुझ पर इतना ना जुल्म करो ।
जिस्म फरोशी के धंधे के लिये,
 नहीं मुझे मजबूर करो ॥

 मेरा जीवन तबाह हो जायेगा,
ना ही मुझे कोई अपनायेंगे ।
मेरे घर के परिवार सभी,
 जीते जी मर जायेंगे ॥

 माँ जीते जी मर जायेगी,
मेरे पापा कहां मुंह दिखायेंगे ।
जब तक जियेंगे लोगों में,
 नफरत से देखे जायेंगे ॥

 ऐसी ही दर्द भरी चित्कारों से,
वो उन सबसे विनती करती होगी ।
जब कोई अबला या बेटी,
जिस्म फरोशों के जाल मे फसती होगी ॥
जब कोई अबला या बेटी,
 जिस्म फरोशों के जाल मे फसती होगी.....

 मोहन श्रीवास्तव(कवि)

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